जीएसटी अर्थव्यवस्था को कहीं डुबो न दे

By: Aug 8th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

डा. भरत झुनझुनवालाजीएसटी के द्वारा छोटे उद्योगों पर हुए प्रहार की बीमारी पूरी अर्थव्यवस्था में फैलेगी जैसे डेंगू की बीमारी फैलती है। बड़े उद्योगों को बाजार चाहिए। यह बाजार छोटे उद्यमों द्वारा बनता है। छोटे उद्योगों की बलि चढ़ाकर बड़े उद्योग उसके प्रभाव से अछूते नहीं रहेंगे। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाए रखना होता है। कार के चार पहियों तथा स्टीयरिंग व्हील में संतुलन बनाए रखना जरूरी होता है। गाड़ी के पहियों की हवा निकाल दी जाए और पावर स्टीयरिंग लगा दी जा जाए, तो गाड़ी नहीं चलेगी…

जुलाई माह में उद्योगों द्वारा माल की खरीद के सूचकांक में भारी गिरावट आई है। जापानी कंपनी निक्की द्वारा हर माह भारत के मैन्यूफेक्चरिंग उद्योगों के पर्चेज मैनेजरों का सर्वेक्षण किया जाता है। उनसे पूछा जाता है कि उनकी कंपनी द्वारा कच्चे माल आदि की खरीद की क्या दशा है। पर्चेज मैनेजरों द्वारा अधिक खरीद किए जाने से संकेत मिलता है कि उद्योग उत्साहित है, जबकि खरीद कम किए जाने से संकेत मिलता है कि उद्योग दबाव में है। जून में सूचकांक 50.9 था, जो कि जुलाई में घट कर 47.9 रह गया है। यह पिछले नौ वर्षों का न्यूनतम स्तर है। 50 से ऊपर का सूचकांक ग्रोथ दर्शाता है, जबकि 50 से नीचे का सूचकांक सकुंचन दर्शाता है। निक्की की रपट के अनुसार नए आदेश में कमी आने के कारण उत्पादन तथा खरीद कम हुई है। बिक्री कम होने से गोदाम मे माल अटका हुआ है। इस गिरावट का तात्कालिक कारण जीएसटी के क्रियान्वयन से जुड़ी समस्याएं हैं। निश्चित रूप से एक दो माह में क्रियान्वयन सुचारू हो जाएगा और वर्तमान में पर्चेज मैनेजर सूचकांक पुनः उठ सकता है। लेकिन दूसरी संभावना है कि अर्थव्यवस्था नीचे गिरती जाए। कारण यह कि जीएसटी का छोटे उद्योगों पर तीन प्रकार से दीर्घकालीन नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पहला प्रभाव कागजी कार्रवाई का है। जीएसटी के अंतर्गत छोटे उद्योगों को हर माह एक रिटर्न दाखिल करना होगा। इस रिटर्न में माह में तीन बार ऑनलाइन सूचनाएं दाखिल करनी होंगी। इसलिए व्यावहारिक स्तर पर माह में तीन अथवा वर्ष में 36 रिटर्न दाखिल भरने होंगे। छोटे उद्यमों के लिए यह कठिन होगा। तमाम छोटे उद्यमियों को जीएसटी के ऑनलाइन पोर्टल पर सूचना अपलोड करना नहीं आता है। उन्हें चार्टर्ड अकाउंटेंट को नियुक्त करना होगा।

इससे उनके ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। उनका ध्यान माल खरीदने और बेचने के स्थान पर जीएसटी का रिटर्न भरने की तरफ मुड़ेगा। बड़े उद्योगों के पास पूर्व में ही चार्टर्ड अकाउंटेंटों की फौज रहती है। उन पर यह नकारात्मक प्रभाव कम ही पड़ेगा। जीएसटी का छोटे उद्योगों पर दूसरा नकारात्मक प्रभाव अंतरराज्यीय व्यापार की सुगमता के कारण पड़ेगा। पुरानी व्यवस्था में अंतरराज्यीय व्यापार कठिन था। सूरत के साड़ी एवं पर्दे के निर्माता के लिए हरिद्वार में माल बेचना कठिन था। इससे हरिद्वार के पर्दे के निर्माता को सहज ही संरक्षण उपलब्ध था। जीएसटी लागू होने के बाद सूरत के निर्माता के लिए हरिद्वार में माल बेचना आसान हो जाएगा। तदानुसार हरिद्वार के छोटे निर्माता को सूरत के माल से अब सीधे प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी। गांव में शहरी औजार की दुकान खुल जाने से गांव के लोहार का धंधा चौपट हो जाता है। अथवा शहर से आयातित प्लास्टिक के घड़े उपलब्ध हो जाने से गांव के कुम्हार का धंधा चौपट हो जाता है। इसी प्रकार जीएसटी से सभी छोटे उद्योगों का धंधा दबाव में आएगा। जीएसटी का छोटे उद्योगों पर तीसरा प्रभाव गैर पंजीकृत उद्यमियों पर पड़ेगा। जीएसटी में व्यवस्था है कि यदि कोई पंजीकृत कंपनी किसी गैर पंजीकृत आपूर्तिकर्ता से माल खरीदती है तो उसे ‘सेल्फ इन्वायस’ बनाना होगा। जैसे किसी पंजीकृत कंपनी ने नुक्कड़ के चाय वाले से दिन में 200 रुपए की चाय खरीदी। शाम को इस खरीद पर पंजीकृत कंपनी स्वयं एक बिल बनाएगी और इस खरीद पर जीएसटी को जमा करेगी। इसके बाद माह के अंत में जमा की गई इस रकम का क्रेडिट वह अपने देय जीएसटी में लेगी। अंत में पंजीकृत कंपनी पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। परंतु सेल्फ इन्वायस बनाने एवं उस पर जीएसटी जमा करने का अतिरिक्त बोझ ‘पंजीकृत’ कंपनी पर आ पड़ेगा। इसलिए पंजीकृत कंपनी की पसंद होगी कि पंजीकृत चाय वाले से चाय खरीदे। कंपनी चाय वाले से कहेगी कि अपना पंजीकरण कराओ और बेची गई चाय का जीएसटी पेड बिल दो। कंपनी छोटे गैर पंजीकृत चाय वाले को छोड़ कर बड़े फास्ट फूड कंपनी को कैंटीन का काम देगी। जीएसटी के छोटे उद्योगों पर पड़ने वाले इन दुष्प्रभावों का ब्यौरा जापानी वित्तीय कंपनी नोमूरा तथा भारतीय रेटिंग कंपनी इकरा ने अपनी रपटों में दिया है। जीएसटी से छोटे उद्योगों को नुकसान होगा और उतना ही बड़े उद्योगों को लाभ होगा।

प्रथमदृष्टया इससे अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। कंपनी द्वारा पहले 200 कप चाए नुक्कड़ के चाय वाले से खरीदी जाती थी। अब वही 200 कप चाय फास्ट फूड आउटलेट से खरीदी जाएगी। लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। कारण यह कि छोटे उद्यमी द्वारा श्रम का उपयोग ज्यादा और मशीन का कम होता है। जैसे किसी औद्योगिक क्षेत्र में 10 चाय वाले और पांच ढाबे चलते थे। हर ढाबे मे चार कर्मी कार्यरत थे। कुल 30 लोगों को रोजगार मिल रहा था। जीएसटी लागू होने के बाद इन 15 इकाइयों के स्थान पर दो फास्ट फूड आउटलेट खोले गए। इनमें कुल आठ लोगों को रोजगार मिला। चाय की कुल आपूर्ति पूर्ववत रही, परंतु रोजगार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। पहले 30 कर्मी कमाकर खाते थे, अब आठ कर्मी कमाएंगे और खाएंगे। 22 कर्मी बेरोजगार हो जाएंगे। इन 22 द्वारा बाजार से कपड़े, चप्पल, साइकिल आदि कम खरीदे जाएंगे। इससे संपूर्ण बाजार में मांग में गिरावट आएगी। जीएसटी के द्वारा छोटे उद्योगों पर हुए प्रहार की बीमारी पूरी अर्थव्यवस्था में फैलेगी जैसे डेंगू की बीमारी फैलती है। बड़े उद्योगों को बाजार चाहिए। यह बाजार छोटे उद्यमों द्वारा बनता है। छोटे उद्योगों की बलि चढ़ाकर बड़े उद्योग उसके प्रभाव से अछूते नहीं रहेंगे। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाए रखना होता है। कार के चार पहियों तथा स्टीयरिंग व्हील में संतुलन बनाए रखना जरूरी होता है। गाड़ी के पहियों की हवा निकाल दी जाए और पावर स्टीयरिंग लगा दी जा जाए, तो गाड़ी नहीं चलेगी।

तीस के दशक में अमरीका में ग्रेट डिप्रेशन इसी प्रकार की नीतियों के कारण आया था। शेयर बाजार उछल रहा था, चूंकि बड़ी कंपनियों की बल्ले-बल्ले थी। परंतु अर्थव्यवस्था में मांग कम होती गई और पूरी व्यवस्था संकट में पड़ गई। कार्ल मार्क्स ने इसी संकट की ओर ध्यानाकर्षण किया था। उन्होंने कहा था कि पूंजीवादी द्वारा निरंतर मजदूर की तनख्वाह कम करने से बाजार में मांग कम हो जाती है। ऐसा ही परिदृश्य हमारी आंखों के सामने जीएसटी खोल रहा है। एक तरफ शेयर बाजार उछल रहा है। दूसरी तरफ हमारी ग्रोथ गिर रही है और पर्चेज मैनेजरों का सूचकांक नौ वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गिरा है। यद्यपि सूचकांक के गिरने का तात्कालिक कारण जीएसटी के क्रियान्वयन की समस्याएं हैं, परंतु इसी गिरावट में दीर्घकालीन संकट भी छिपा हुआ है। जैसे मरीज को बुखार लगाने का तात्कालिक कारण ठंड लगना हो सकता है, परंतु साथ-साथ दीर्घकालिक कारण मलेरिया भी विद्यमान हो सकता है। मेरा व्यक्तिगत आकलन है कि जीएसटी के कारण हमारी ग्रोथ रेट दीर्घकाल में दबाव में आएगी। मोदी सरकार की ईमानदारी तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम इसमें कुछ बचाव अवश्य करेगी, परंतु छोटे उद्योगों को मार कर अंततः अर्थव्यवस्था पनप नहीं सकती।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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