पीडि़त तो पुरुष भी है

By: Aug 17th, 2017 12:05 am

( डा. शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल, तेलंगाना )

डीएम मुकेश पांडे एक सीधा-साधा व सरल इनसान, जिसने अपनी घेरलू परेशानियों के चलते ट्रेन के ट्रैक से कट कर खुदखुशी कर ली। खुदखुशी करने से पहले उन्होंने बाकायदा अपना वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने अपनी परेशानी साझा की। पारिवारिक झगड़ों के चलते यह इनसान बेतहाशा दुखी हो गया था। उन्होंने इतना तक कहा कि अति हर चीज की बुरी है, रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर उन्हें आत्महत्या एक बेहतर उपाय लगा। सवाल है कि लोग एक मर्द का दर्द क्यों नही समझते? इंटरनेट पर सोशल मीडिया पर लोग मुकेश को एक कायर इनसान बता रहे हैं, पर उस इनसान ने किन परिस्थितियों में यह कदम उठाया, यह कोई क्यों नही समझता? अकसर बीवी और मां-बाप के झगड़े में बेचारा फंसता मर्द ही है। बीवी की सुने तो जोरू का गुलाम, मां-बाप की सुने तो बीवी के ताने। इसमें कोई शक नहीं कि इमोशनल अत्याचार मर्द पर होता ही है। औरतों की खूबी है कि वे रो धोकर अपना दर्द हल्का कर लेती हैं, पर बेचारा मर्द कहां जाए। जरूरी नहीं पीडि़त हमेशा महिला ही हो, महिलाओं के साथ पुरुषों को भी अपनी जिंदगी में बहुत सारे बलिदान देने पड़ते है। वे इसे ढिंढोरा पीट कर बता नहीं सकते। ऐसे दोहरे मापदंडों में बदलाव लाकर पुरुष की समस्याओं को भी बराबर समझना होगा।

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