राम दर्शन को शिव बने भिक्षुक

By: Aug 19th, 2017 12:05 am

श्रीराम का जन्म अयोध्या नगरी में होने के बाद भगवान शंकर उनकी बाल-लीलाओं का दर्शन करने के लिए अयोध्या आते और चले जाते। कभी-कभी अयोध्या में रुक भी जाते। श्रीराम के दर्शनों की अभिलाषा से कभी उन्हें ज्योतिषी तथा कभी भिक्षुक बनना पड़ता। एक बार भोलेनाथ श्रीराम के महल में मदारी बन कर आए। उनके साथ बहुत सुंदर नाचने वाला वानर था। मदारी डमरू बजाते-बजाते राजमहल के द्वार पर पहुंच गया। डमरू की आवाज से राजमहल के बाहर कई बालक दौड़ते हुए मदारी का खेल देखने आ गए। भगवान श्रीराम भी अपने भाइयों के साथ खेल देखने आए। यह वानर साधारण नहीं था, अपने भगवान को रिझाने एवं प्रसन्न करने के लिए हनुमान रूप में प्रकट स्वयं शिव जी ही थे। वानर की लीला देखकर श्रीराम अपने भाईयों सहित बहुत खुश हुए तथा उसके खेल पर रीझ गए। भगवान श्रीराम ने हठ कर लिया कि वह इस वानर को महल में रखकर खेलना चाहते हैं। श्रीराम एक साधारण बालक नहीं वरन राजकुमार थे। अतः उनका यह हठ कैसे पूरा नहीं किया जाता। महाराज  दशरथ ने आज्ञा दी कि बंदर के बदले में मदारी जितना मूल्य मांगे उसे तत्काल दे दिया जाए। वानर श्रीराम को ही दिया जाए। मदारी धन का भूखा नहीं था वह तो अपने प्रभु के दर्शन तथा अपने आप को उनके चरण कमलों में समर्पित करने आया था। भगवान श्रीराम ने वानर को प्राप्त किया और उसके साथ नाचने लगे। शंकर जी की युग-युग की मनोकामना आज पूरी हुई। शंकर जी प्रसन्न होकर वानर रूप में नाचने लगे तथा उनका साथ श्रीराम भी दे रहे थे। जब सभी वानर के नाच में मंत्र मुग्ध थे, तब मदारी उनके बीच से अंतर्ध्यान हो गया। वह मदारी वानर में प्रवेश कर गया । अपना कार्य पूर्ण कर कैलाश पर्वत चला गया । वानर के रूप में हनुमान बहुत दिनों तक भगवान श्रीराम की सेवा और मनोरंजन में लगे रहे। कुछ वर्ष बाद महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को राक्षसों के वध के लिए वन ले जाने के लिए आए । भगवान श्रीराम ने उन्हें  (हनुमान को) एकांत में बुलाकर समझाया। श्रीराम ने हनुमान से कहा, हनुमान तुम मेरे अनन्य भक्त अंतरंग सखा हो, तुमसे मेरी कोई भी लीला छिपी नहीं है। अब इस लीला में आगे मैं रावण का वध करूंगा । उस समय मुझे तुम्हारी तथा अन्य वानरों की आवश्यकता होगी। मैं ताड़का, सुबाहु, खर-दूषण, त्रिशिरा, मारीच आदि का भी वध करूंगा। तुम शबरी से भेंट कर ऋष्यमूक पर्वत जाओ और सुग्रीव से मित्रता करो। मैं सीता जी की खोज में वहां आऊंगा तब तुम सुग्रीव से मुझे मिलाना और उसकी सहायता से वानरों की एक विशाल सेना एकत्रित करने में सहायता करना। रावण का वध कर मैं अपने अवतार का कार्य पूर्ण करूंगा। हनुमान को भगवान श्रीराम को छोड़कर जाने की इच्छा नहीं थी । किंतु अपने स्वामी की आज्ञा पालन करने के लिए उसी समय ऋष्यमूक पर्वत के लिए चले गए।  यही प्रसंग श्रीराम तथा हनुमान के अनन्य प्रेम का है। उनके बिछोह होने पर दुःख तो हुआ किंतु स्वामी की आज्ञा को परम धर्म मानकर चले गए। क्योंकि हनुमान श्रीराम के परम भक्त थे। उनके मन में अपने स्वामी से मिलने की इच्छा इतनी तीव्र थी कि उन्होंने हंसते-हंसते इस जुदाई को भी सहन कर लिया। इस तरह भगवान शिव को भी अपने प्रभु के दर्शन करने के लिए क्या-क्या बनना पड़ा और कई वेश धारण करने पड़े।

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