कतार से बेरोजगार का मुकाबला

By: Sep 21st, 2017 12:05 am

ये सवा लाख नए मतदाता हिमाचल के भाग्य विधाता भी हैं, क्योंकि युवा अभिलाषा का समुद्र अपने आप में एक विचार की तरह शांत होते हुए भी ज्वार-भाटे का शक्ति स्रोत है। इसलिए भाजपा जैसे-जैसे युवा हुंकारे बढ़ा रही है, कांग्रेसी लक्ष्यों की पड़ताल बढ़ रही है और इसी बीच सरकारी नौकरी के इंतजाम में बहता युवा पसीना भी देखा जा सकता है। मैदान पर पुलिस भर्ती का आलम यह कि हर कतार से बेरोजगार का मुकाबला बढ़ रहा है। कितनी बार अलग-अलग विभागों में नई भर्तियों की चयन प्रक्रिया पर रोक लग चुकी है, लेकिन पारदर्शिता के हिसाब से लांछित माहौल में पुनः बेरोजगारों की दौड़ जारी है। ऐसे में करीब उनचास लाख मतदाताओं  के समूह में युवाओं का भीड़ बन जाना इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टियां इस वर्ग के तपते रेगिस्तान में किस तरह का छिड़काव करती हैं। युवा मुद्दों की असलीयत में केंद्र सरकार के खिलाफ भी आशंकाएं हैं, लेकिन प्रदेश का युवा अपनी महत्त्वाकांक्षा के साथ, हिमाचल सरकार की कर्त्तव्य परायणता का हिसाब लेगा। बेशक नए शिक्षण संस्थानों की शृंखला में रिकार्ड दर्ज कर चुकी वीरभद्र सरकार अपनी पूरी पारी को युवाओं से जोड़ती रही, लेकिन छात्र जब मतदाता बनता है, तो सोच की लकीरें आगे बढ़ जाती हैं। ऐसे में आगामी चुनाव का मुद्दा भले ही पूरी तरह बेरोजगारी न हो, लेकिन युवा मंतव्यों में सियासत को घेरने का अंदाज निराला अवश्य है। दिल्ली के युवा मतदाताओं को पिछली बार अरविंद केजरीवाल की धाकड़ छवि पसंद आई, तो मतदान उनके पक्ष का कारवां बन गया। भाजपा भी इसी तलाश में कांगड़ा मैदान पर चमत्कार की आशा कर रही है। इस संदर्भ में युवा तहजीब का हिमाचल जिस दुनिया के ख्वाब देख रहा है, उसे समझना होगा। जिस शिक्षा हब की कामना में कद से कहीं अधिक निजी बीएड कालेज, विश्वविद्यालय या इंजीनियरिंग कालेज खुल गए, उन्हें ठुकरा कर हिमाचली युवा किधर जा रहा है, इस पर गौर करना होगा। सरकारी नौकरी के बजाय उस ढांचे पर तवज्जो कौन देगा, जिसके आधार पर युवा क्षमता फलती-फूलती है। प्रदेश से बाहर निकले युवा से हिमाचल का मिलन केवल मां-बाप की पुकार नहीं, बल्कि अपनी माटी का प्यार है। चंडीगढ़-गगल हवाई अड्डों पर उतरती उड़ानों के माध्यम से उन खुशहाल युवाओं की क्षमता को अंगीकार करना होगा, जो बंगलूर या देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित किसी आईटी पार्क में सफल हो चुकी है। बेशक हम मुनादी करा दें कि हिमाचल पैंतालीस साल तक की आयु में सरकारी नौकरी की अर्जी स्वीकार करता है, लेकिन उस अपराध की सीमा नहीं जो युवाओं को इस मकड़जाल में फंसा कर सियासी इच्छापूर्ति कर रहा है। क्या युवाओं के कमाने-खाने की उम्र पैंतालीस वर्ष हो सकती है। अगर राजनीति में उम्रदराज होने पर चुनाव न लड़ने पर बहस जायज है, तो युवा रहते नौकरी पाने की भी तो कोई आयु सीमा होनी चाहिए। युवाओं को सियासी पोस्टर में सजाने के बजाय, इनके नसीब जगाने को धरती चाहिए। एक अदद संभावना, जो नेक नीतियों से पैदा होगी। ऐसी शिक्षा, जो रोजगार की हकदार हो। एक आईटी पार्क, जो सैकड़ों इंजीनियरों की प्रतिभा को छत दे सके या मेक इन हिमाचल को चिन्हित करती क्षमता को पनपने की अधोसंरचना प्रदान कर दे। हिमाचल के चुनावी परिदृश्य में सवा लाख नए मतदाताओं का समावेश अपने आप में भविष्य की पताका है। ये तमाम युवा अपने लिए युग की भाषा-परिभाषा लिख रहे हैं और इसीलिए इनके द्वारा किया गया मतदान सारी राजनीति के अर्थ बदल सकता है। इस पीढ़ी के मकसद को समझें, तो देश के जज्बात एक-एक मत के रूप में नए हिमाचल के संकल्प बनेंगे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App