‘पप्पू जी’ बोलत अमरीका में
राहुल गांधी भारतीय हैं। भारतीय संसद के लोकसभा सदन में सांसद हैं। उनका संसदीय क्षेत्र अमेठी भी भारत के उत्तर प्रदेश में है। राहुल भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। यदि वह प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं, तो वह सपना भी भारत में ही साकार होगा। जिस विपक्षी एकता के वह प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने की सहमति दे रहे हैं, वह भी भारत में ही सक्रिय है। राहुल गांधी ने बीते कुछ दिनों में, अमरीका के अलग-अलग शहरों में, भारत की मोदी सरकार को निशाना बनाया है। उन्होंने भारत में असहिष्णुता, बेरोजगारी और महंगाई आदि मुद्दों को 2019 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा करार दिया है। राहुल गांधी अमरीका से चुनाव लड़ेंगे या अमेठी से? राहुल को अमरीकी-भारतीय वोट देंगे या भारत के नागरिक वोट करेंगे? आखिर राहुल गांधी किस जमीन पर प्रचार करके भारत के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं? राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी नवंबर के बंगलूर अधिवेशन में हो सकती है। अब उन्होंने इस बड़ी जिम्मेदारी के लिए अपनी सहमति दे दी है। कांग्रेस अधिवेशन बंगलूर के साथ-साथ हिमाचल की राजधानी शिमला में होना था, लेकिन हिमाचल में चुनाव प्रक्रिया के चलते यह संभव नहीं था, लिहाजा बंगलूर तक ही सोचा गया। अधिवेशन 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर या 19 नवंबर को इंदिरा गांधी की जयंती के मौके पर किया जा सकता है। अभी अंतिम निर्णय लिया जाना है। बहरहाल भारत में तो कांग्रेस की जमीन सरकती और सूखती जा रही है, लेकिन राहुल गांधी के संबोधन और साक्षात्कार अमरीका में जारी रहे हैं। ये बाकायदा राजनीतिक अभियान के तौर पर आयोजित किए जा रहे हैं। इससे पहले कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में राहुल ने संबोधित किया था। अब अमरीका की राजधानी वाशिंगटन में अपने ही देश-भारत-को बेनकाब किया है। यूपीए सरकार में मंत्री रहे मिलिंद देवड़ा और राजीव गांधी के निकटस्थ सलाहकार रहे सैम पित्रोदा ने अमरीका के वाशिंगटन और न्यूयार्क में बंद दरवाजे के ये संवाद आयोजित कराए थे। उनमें अमरीका के कंजरवेटिव और डेमोक्रेट्स नेता-सांसद आए थे। उनके अलावा, सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस और अमेरिकन फॉरेन पॉलिसी काउंसिल सरीखे थिंक टैंक ने भी राहुल गांधी को सुना। प्रिंस्टेन यूनिवर्सिटी में राहुल ने छात्रों से बातचीत की। अमरीका में दोनों आयोजनों के पीछे मिलिंद देवड़ा का ही दिमाग काम कर रहा था। भारत लौटने से पहले इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस के यूएस चैप्टर ने मेरियट होटल में दावत दी। यह शानदार होटल ‘टाइम्स स्क्वायर’ पर स्थित है। सवाल यह है कि इन संवादों और संबोधनों से राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को भारत में हासिल क्या होगा? बेहतर होता कि राहुल गांधी भारत के पश्चिम बंगाल, केरल और कर्नाटक राज्यों के नामों का उल्लेख भी करते। उससे मोदी सरकार की किरकिरी होने के बजाय या तो कांग्रेस सरकारें बदनाम होतीं अथवा तृणमूल कांग्रेस जैसे सहयोगी दल की छवि पर कालिख पुतती। इन राज्यों में हिंदुओं की सैकड़ों हत्याएं की जा रही हैं, बलात्कार किए गए हैं, मौलाना शब्बीर जैसी शख्सियत सरेआम बोल रही है कि भारत के मुसलमान और रोहिंग्या भाई-भाई हैं। दोनों का खुदा एक है। हम हुसैनी मुस्लिम हैं, जिसके 32 मुसलमान लाखों का जनाजा निकाल देते हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोई कार्रवाई नहीं करती, बल्कि आदेश जारी करती है कि दुर्गा विसर्जन और मुहर्रम पर्व एक ही दिन साथ-साथ न मनाए जाएं, लिहाजा दुर्गा का त्योहार एक दिन बाद में मनाया जाए। इस आदेश पर हाई कोर्ट ने मुख्यमंत्री को खूब फटकार लगाई और सवाल किया कि दोनों पर्व एक साथ क्यों नहीं मनाए जा सकते? ऐसी असहिष्णुता क्यों है? राहुल गांधी से ही सवाल किया जाए कि असहिष्णुता उनकी सरकारों या उनके सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों में है या भाजपा शासित राज्यों में है? बेरोजगारी का सवाल भी अधूरा और एकतरफा है। राहुल गांधी ने आंकड़े दिए हैं कि नौकरी पाने वाले युवाओं की रोजाना की औसत संख्या 30,000 है, लेकिन उनमें से करीब 450 को ही नौकरी मिल पाती है। दरअसल ये श्रम ब्यूरो के आंकड़े हैं और सरकार के आठ विभागों तक ही सीमित हैं। राहुल गांधी सरकारी नौकरी को ही रोजगार मानते हैं। मोदी सरकार की ‘मुद्रा ऋण योजना’ के जरिए 7.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपने काम-धंधे के लिए कर्ज दिया गया है। ऐसा एक व्यक्ति अपने साथ कमोबेश दो-तीन लोगों को काम जरूर देता है। फिर देश में राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों का जो जाल बिछाया जा रहा है और लाखों मजदूर-हाथ उनमें काम कर रहे हैं। क्या वह रोजगार नहीं है? 2017 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत, गरीबों के लिए, नौ लाख से ज्यादा मकान बनाए जाने हैं। वह काम देश भर में जारी है। उनमें जो श्रम लगा है, क्या उसे रोजगार नहीं कहेंगे? ऐसी ढेरों योजनाएं हैं। इनके अलावा, देश का निजी सेक्टर भी है, जिसमें लाखों लोग काम पाते रहे हैं। इनके अलावा, राहुल गांधी ने नोटबंदी, किसान कर्ज, महिला सुरक्षा, भ्रष्टाचार आदि के मुद्दे भी उठाए हैं। ये मुद्दे बीते तीन सालों में लगातार उठाए जाते रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार चुनाव हारती रही है। पंजाब एक अपवाद है, लेकिन वह जनादेश कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम है। दरअसल यह राहुल गांधी का ‘पिकनिक एजेंडा’ है। उन्हें घुमक्कड़ी करने दीजिए। वह ऐसी हरकतें करते रहेंगे, तभी तो उन्हें ‘पप्पू’ कहते हैं। सोचिए जब कांग्रेस पूरी तरह ‘पप्पू जी’ के कब्जे में आ जाएगी, तो उसके चुनावी एजेंडे कैसे होंगे?
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