ब्लू व्हेल के जाल में जकड़ता युवा

By: Sep 18th, 2017 12:02 am

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं

आधुनिकता ने मनुष्य की जिंदगी को आसान तो कर दिया है, पर जिंदगी को खतरों से भी भर दिया है। आज के बच्चे आजादी चाहते हैं, ताकि उनकी जिंदगी में किसी का दखल न हो। यहां तक कि वे अपने माता-पिता का भी दखल अपनी जिंदगी में नहीं चाहते। ऐसी आजादी किस काम की, जो जिंदगी को बेनूर कर दे। उम्र का यही दौर ऐसा होता है, जो किसी की जिंदगी बनाता है या बिगाड़ता है …

सूचना प्रौद्योगिकी की सुगमता से मनुष्य का जीवन आसान तो बना, लेकिन अनेक अव्यावहारिक समस्याओं ने भी घेर लिया। पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट पर ‘ब्लू व्हेल गेम’ का आतंक मासूमों की मृत्यु का कारण बन रहा है। इस खेल से जुड़े एक रूसी व्यक्ति बुदेडकिन को गिरफ्तार करके उसे 16 किशोरों की ‘आत्महत्या करने के लिए उकसाना’ का दोषी ठहराया गया है। वर्ष 2016 में रूस में ब्लू व्हेल किशारों के बीच में एक लोकप्रिय खेल के रूप में उभरी, लेकिन एक सजक पत्रकार ने इसे आत्मघाती खेल बताकर इसकी भर्त्सना की थी। उस समय इस खेल की असलियत का किसी को कोई अंदाजा नहीं था। जैसे-जैसे समय व्यतीत हुआ इस खेल का खूंखार चेहरा जगजाहिर हुआ। इस खेल में नाबालिग बच्चों को एक चैलेंज के रूप में उकसाया जाता है। हर मोड़ पर उसका सामना करके एडमिन को रिपोर्ट करता है। सर्वप्रथम आसान सी टास्क दी जाती है। तदोपरांत धीरे-धीरे मासूमों को इस कद्र फंसा दिया जाता है कि वे अंत में आत्महत्या तक कर लेते हैं। इस खेल में बच्चों की कुछ गोपनीय सूचना संगृहीत करके खेल को छोड़ने पर ब्लैक मेलिंग भी की जाती है। इस खेल में खिलाड़ी को सुबह चार बजे उठने के लिए कहा जाता है, या कभी किसी ऊंची इमारत या रेल ट्रैक पर जाकर अपनी सेल्फी लेना या अपने शरीर पर किसी चिन्ह को अंकित करना प्रमुख लक्षण है।

ब्लू व्हेल के चित्र को बाजू पर अंकित करके अंतिम चरण में आत्महत्या के लिए उकसाया जाता है। आज का युवा इंटरनेट पर गेमों के खेलने का आदी बन चुका है। इंटरनेट न मिलने पर बेचैनी, बौखलाहट उत्पन्न हो जाती है। खेल के मैदान सूने पड़े हैं, जो समय समाज, परिवार व आस-पड़ोस में बीतता था, वह आज टीवी चैनलों, मोबाइल फोनों तथा टैव व लैपटॉप ने छीन लिया है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, पढ़ाई में मन न लगना, आज के युवाओं में आम बात हो गई है। आंखों पर चश्मे, शरीर में अनेक बीमारियों के बीज अंकुरित होने शुरू हो गए हैं। खाने के टेबलों, बेडरूमों, अध्ययन कक्षों में भी स्मार्ट फोन ने अपनी जगह बना ली है। माता-पिता का बच्चों के साथ घुलना-मिलना महज औपचारिकता भर ही रह गया है। ऐसे वातावरण में बच्चों के सर्वांगीण विकास की बात महज कोरी कल्पना मात्र ही है।  शरारती तत्त्वों की नजरें हमेशा सामाजिक जीवनयापन पर रहती है। इसी का परिणाम ‘ब्लू व्हेल खेल’ है। यह गेम आज भारत के लिए ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया के लिए गले की फांस बन गई है। माता-पिता चिंतित हैं। बच्चे आत्मघाती खेलों के आदी हो गए हैं। हजारों बच्चे इस खेल की चपेट में आकर अपनी जिंदगी की लौ को हमेशा के लिए बुझा गए हैं और बहुत से अभी भी इसकी चपेट में हैं।

ऐसे खतरे मानवजनित हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ ने आज कइयों के घर सूने कर दिए हैं। ऐसे खेल के संचालकों को दुनिया में मौजूद टेक्नोलॉजी भी धरे की धरे रह गई है। आज तक हजारों युवा अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं, लेकिन अभी तक  साइबर विशेषज्ञ इस खेल को रोकने में असमर्थ साबित हुए हैं। जब कानून व्यवस्था तथा मौजूद टेक्नोलॉजी किसी आत्मघाती व अनैतिक कार्यों को रोकने में असमर्थ हो, तब पुराने दिन हमें बहुत अच्छे लगने लगते हैं। आधुनिकता ने मनुष्य की जिंदगी को आसान तो कर दिया है, पर जिंदगी को खतरों से भी भर दिया है। आज के बच्चे आजादी चाहते हैं, ताकि उनकी जिंदगी में किसी का दखल न हो। यहां तक कि वे अपने माता-पिता का भी दखल अपनी जिंदगी में नहीं चाहते। ऐसी आजादी किस काम की, जो जिंदगी को बेनूर कर दे। उम्र का यही दौर ऐसा होता है, जो किसी की जिंदगी बनाता है या बिगाड़ता है। ऐसे में अभिभावकों को बच्चों के उम्र के इस दौर में बहुत ही सजग रहना चाहिए। पर पाबंदी इतनी भी न हो कि बच्चे खुद को असहज महसूस करें और कुछ कर बैठें। बच्चों को समझाने का ऐसा ढंग होना चाहिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। बच्चों की इंटरनेट पर आजादी की वजह से यही हाल आज ‘ब्लू व्हेल खेल’ ने पूरी दुनिया का कर दिया है। अभी भी वक्त है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में मानव अपने आपको जागरूक करे  और सजगता से कार्य करे। इंटरनेट सूचनाओं का समुद्र माना जाता है, जिसके दुरुपयोग का कोई भी ठिकाना नहीं है।

वर्तमान में इस समस्या से बचने का एकमात्र उपाय जागरूकता व सजगता ही है। माता-पिता व संरक्षकों को चाहिए कि अपने बच्चों की हर गतिविधि पर पैनी नजर रखें। खान-पान, व्यवहार में परिवर्तन, सुबह जल्दी उठना, सैर पर अचानक निकलना, किसी डरावनी फिल्म को देखना, शरीर पर कोई चित्र अंकित करना मतलब आपका बच्चा ‘ब्लू व्हेल खेल’ का शिकार होने के कगार पर है। ऐसी स्थिति में बच्चे का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जरूर करवाएं तथा इसकी सूचना तुरंत निजी पुलिस स्टेशन में दें। बस इतनी सी जागरूकता व सजगता किसी लाल की जिंदगी बचा सकती है। अकेला प्रशासन कुछ नहीं कर सकता। इस मामले में जन सहयोग भी जरूरी है। हर व्यक्ति को अपने आसपास नजर रखनी चाहिए कि कहीं कोई बच्चा इस गेम के जाल में तो नहीं फंस रहा।


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