कांग्रेस को चमत्कार की आस

By: Oct 20th, 2017 12:05 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

यह सही है कि राहुल अभी मोदी के मुकाबले में कहीं नहीं दिखते। वह कांग्रेस उपाध्यक्ष बने रहें या अध्यक्ष बन जाएं, इससे आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता, पर राहुल गांधी किसी भी रूप में मोदी की बराबरी करते नहीं दिखते। समस्या यह है कि विपक्ष के पास फिलहाल कोई चेहरा नहीं है, लेकिन क्रिकेट और राजनीति संयोगों का खेल है। अभी 2019 दूर है और सवा अरब की आबादी वाले देश में कोई नाचीज सी चीज कब कोई नया चमत्कार कर जाए, यह कहना मुश्किल है…

गुजरात के दौरे के समय राहुल गांधी जमकर बोले। कांग्रेस डिजिटल सैल द्वारा गढ़ा गया ट्वीट ‘विकास पागल हो गया है’ तेजी से वायरल हुआ और राहुल गांधी के नए ट्वीट न केवल चुटीले हैं, बल्कि वे मोदी सरकार पर प्रभावी तंज कसने के साथ विभिन्न मुद्दों की तरफ ध्यान दिलाने में भी समर्थ हैं। कांग्रेस का डिजिटल सैल छोटा है, लेकिन अच्छा काम कर रहा है। मोदी का डिजिटल सैल बहुत बड़ा है और उसमें विभिन्न कौशल वाले लोगों की भरमार है। खुद मोदी भी प्रभावी वक्ता हैं और नारे उछालने में माहिर, लेकिन इस समय मोदी के अपने नारे ही उनके जी का जंजाल बन गए हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी का दिया नारा ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ इतना प्रभावी साबित हुआ कि वह जन-जन की जुबान पर चढ़ गया। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नाम कमाने के बाद मोदी ने सिलसिलेवार ढंग से प्रधानमंत्री बनने की तरफ कदम बढ़ाने शुरू किए और उनके रणनीतिकारों ने उनकी छवि चमकाने का अद्भुत काम किया। वाइब्रेंट गुजरात से शुरू हुआ उनका सफर अंततः प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने पर खत्म हुआ। ‘अच्छे दिन’ के इस एक नारे ने जब मोदी का भी दिल जीता तो मोदी इस बात के मुरीद हो गए कि नारे जनता का नजरिया बदलते हैं और उन्होंने हर सप्ताह औसतन एक नया नारा उछालने की तकनीक अपना ली। वे जब भी भाषण देते हैं, जहां भी भाषण देते हैं, नारों में ही बात करते हैं। शुरू-शुरू में यह ताजी हवा के झोंके सा एक सुखद परिवर्तन लगता था, लेकिन अब उनके नारों की तादाद इतनी ज्यादा हो गई है और जमीन पर उनका असर इतना कम है कि नारों के मुकाबले में उनका काम बहुत छोटा लगने लगा है। परिणाम यह है कि सरकार से अब न निगलते बन रहा है, न उगलते। फिलहाल यही उनकी मुसीबत है।

यह कहना सरासर गलत होगा कि मोदी काम नहीं कर रहे हैं या यह कि उनकी नीयत काम करने की नहीं है लेकिन कुछ उनके स्टाइल और कुछ उनकी विवशताओं ने उन्हें ऐसे जाल में जकड़ा है कि उन्हें ‘फेंकू’ कहना सही लगने लगा है। दरअसल, नौकरशाही अपने ढंग से काम करती है। नौकरशाह एक सुविधाभोगी जमात है और अपनी सारी काबिलीयत और सारे योगदान के बावजूद नौकरशाह अपने तौर-तरीके बदलने को तैयार नहीं हैं। कांग्रेस का राज साहिबी का जमाना था। खुद नेतागण भी अत्यंत सुविधाभोगी थे और नौकरशाह उनसे चार कदम आगे थे। मोदी के राज में पीएमओ के कामकाज में तो परिवर्तन आया है, लेकिन सभी नौकरशाह उस ढंग पर चल पड़ें, ऐसा संभव नहीं है। यह कामकाज में अड़चन का एक बड़ा कारण बन रहा है। मोदी कट्टर हिंदूवादी हैं। सन् 2014 के चुनावों में उनकी वह सोच खुल कर सामने आई थी जब उन्होंने मुस्लिम टोपी पहनने से सार्वजनिक रूप से इनकार कर दिया था। वह जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, भाजपा ने किसी मुस्लिम को विधानसभा की टिकट नहीं दी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के समय भी भाजपा ने मुस्लिम बहुल इलाकों में भी किसी मुस्लिम को टिकट देने से गुरेज किया। इससे पहले सपा, बसपा और कांग्रेस इस हद तक मुस्लिम तुष्टीकरण में जुटी रहीं कि हिंदुओं के दिलों में इन दलों के प्रति आक्रोश पनपने लगा। इन मतदाताओं को जब भाजपा के रूप में हिंदूवादी विकल्प मिला तो उनकी बांछें खिल गईं और हिंदू समाज का एक बड़ा तबका भाजपा की इस नीति के समर्थन में आ खड़ा हुआ। कभी लड़कियों के कपड़ों को लेकर, कभी लड़कियों से छेड़छाड़ को लेकर, कभी राम मंदिर को लेकर और कभी गाय को लेकर भाजपा शासित राज्यों में ऐसे अभियान छिड़े, जिनसे परंपरावादी हिंदू समाज भाजपा के नजदीक होता चला गया, लेकिन उदार हिंदुओं का एक वर्ग ऐसा भी है जो इन्हीं कारणों से भाजपा से विमुख हुआ।

मोदी हिंदू राष्ट्रवाद स्थापित करने की जल्दी में हैं। दिखावे के लिए सार्वजनिक मंचों पर कभी-कभार ‘मॉब लिंचिंग’ की आलोचना कर देना अलग बात है और ‘मॉब लिंचिंग’ को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम उठाना बिलकुल अलग बात है। दरअसल, मोदी ने ऐसी कोई कोशिश भी नहीं की है। मुझे यह दोहराने में कोई गुरेज नहीं है कि वे हिंदू राष्ट्रवाद स्थापित करने की जल्दी में हैं। सच तो यह है कि हिंदू राष्ट्रवाद एक मुद्दा होते हुए भी ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसने मोदी की मुसीबतें बढ़ाई हों। मोदी की मुसीबत खुद मोदी हैं। जब भी वह भाषण देते हैं, जहां भी भाषण देते हैं, नारों में बात करते हैं। इससे लोगों को उनकी बात याद रहती है और मन पर उनकी छाप छूटती है। समस्या सिर्फ यह है कि वह नारे उछालने की एक मशीन बन कर रह गए हैं, क्योंकि न तो नौकरशाही और न ही उनके दल के लोग उस गति से काम कर पा रहे हैं, जिस गति से वह नारे उछाल डालते हैं। यही कारण है कि जनता का मूड बदला है और मोदी के गुजरात दौरे का मजाक उड़ाने वाली राहुल गांधी की ट्वीट ‘मौसम का हाल ः चुनाव से पहले गुजरात में आज होगी जुमलों की बारिश’ की खूब चर्चा हो रही है और यह ट्वीट लोगों का ध्यान खींच रहा है। इसका कारण यह है कि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग उन्हें ‘फेंकू’ मानने पर विवश है। गुजरात के व्यापारियों में एक नाराजगी यह भी है कि वे नोटबंदी और जीएसटी से हुए नुकसान को स्वीकार करने के बजाय अहंकारवश उसे सही ठहराने में लगे हैं और ऐसे बदलाव कर रहे हैं, जो राहत के बजाय दरअसल सजा हैं।

महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और गोवा में भाजपा की गठबंधन सरकार है। महाराष्ट्र में शिवसेना की तलवार हमेशा म्यान से बाहर ही रहती है और उद्धव ठाकरे उन पर वार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। मोदी जिस शिवसेना को हफ्ता-वसूली पार्टी बताते थे, उन्हें अंततः उसी पार्टी से गठबंधन करना पड़ा। भाजपा ने हर जगह दल-बदल को बढ़ावा दिया है, गठबंधनों को तोड़ा है। दक्षिण और पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय नेताओं को छोटे टुकड़ों में बांटकर हराने में लगे रहते हैं। मोदी और अमित शाह का ज्यादा समय इसी जुगत में बीतता रहा है तथा विदेशी दौरों रैलियों में व्यस्तता, प्रधानमंत्री के रूप में खुद उनकी जिम्मेदारियों के निर्वहन में बाधा बनी हुई है। आज मोदी की तीन छवियां हैं। पहले वह जो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में बहुत से दावे करते थे। दूसरे वह जो प्रधानमंत्री बनने के बाद बोल्ड फैसले लेते नजर आ रहे थे। तीसरे वह जो अहंकारवश अपने गलत फैसलों की पैरवी करने और उन्हें सही ठहराने की जिद पकड़े बैठे हैं। हां, यह सही है कि राहुल अभी भी उनके मुकाबले में कहीं नहीं दिखते। वह कांग्रेस उपाध्यक्ष बने रहें या अध्यक्ष बन जाएं, इससे आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता, पर राहुल गांधी किसी भी रूप में मोदी की बराबरी करते नहीं दिखते। समस्या यह है कि विपक्ष के पास फिलहाल कोई चेहरा नहीं है, लेकिन क्रिकेट और राजनीति संयोगों का खेल है। अभी 2019 दूर है और सवा अरब की आबादी वाले देश में कोई नाचीज सी चीज कब कोई नया चमत्कार कर जाए, यह कहना मुश्किल है। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोदी बहुत अनुभवी खिलाड़ी हैं और वह विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में करने की कला में माहिर हैं। वह कब क्या चाल चल दें, यह कहना मुश्किल है। इसलिए यह तो स्पष्ट है कि इस साल होने वाले गुजरात और हिमाचल विधानसभाओं के चुनाव ही नहीं, बल्कि और अगले वर्ष होने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने वाला हर चुनाव, पक्ष विपक्ष के नए-नए पहलुओं को उजागर करेगा।

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