गीता रहस्य

By: Oct 21st, 2017 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

कविम पद श्लोक 40/8 से लिया है जिसका अर्थ है कि संसार के कण-कण को जानने वाले तथा सभी जीवात्माओं को भली प्रकार जानने वाला परमात्मा। वेदों में ईश्वर को पुराणम अर्थात अनादि सनातन पुरुष कहा है। जैसे कि सामवेद मंत्र 1633 में ईश्वर से उत्पन्न वेद वाणी को भी ‘‘पुराण्या सनातन गाथया’’ माने योग्य वेद वाणी द्वारा ‘‘अभ्यनूषत’’ विद्वान स्तुति करते हैं, ऐसा कहा है। ऋग्वेद मंत्र 3/58/6 में कहा कि जीव विद्वानों से विद्या प्राप्त करके ‘‘पुराणम अनादि काल से सिद्ध ओकः’’ सब ऋतुओं में सुख देने वाले स्थान के समान शिवम कल्याणकारी ब्रह्म के ऐश्वर्य और विज्ञान को प्राप्त करके सुखी होएं। ऋग्वेद मंत्र 10/29/7  का भाव है कि यह विधि प्रकार की सृष्टि जड़ प्रकृति से ईश्वर की शक्ति द्वारा उत्पन्न होती है। परमात्मा इस सृष्टि कस स्वामी है। वह सृष्टि को उत्पन्न करके पालना एवं संहार करता है। प्रकृति को लक्ष्य करके जब परमात्मा की शक्ति प्रकृति में कार्य करती है तो ईश्वर प्रकृति से सृष्टि को उत्पन्न करता है। रचना, पालना, प्रलय एवं जीवों को कर्मानुसार शरीर देना यह सब परमात्मा के आधीन है। इन सभी व्याख्याओं को श्रीकृष्ण महाराज ने ‘‘अनुशासिताम’’ पद में प्रस्तुत किया है। अर्थात परमात्मा प्रकृति में उत्पन्न जड़ संसार एवं संसार के शरीर धारण करने वाले चेतन जीवों, दोनों पर अनुशासन करता है। ‘‘अण्ों:’’ वह परमात्मा परमाणुओं से भी अति सूक्ष्म है। श्रीकृष्ण महाराज ने इन ‘अणोः अणीयांस’ शब्दों को भी अथर्ववेद मंत्र 10/8/25 के भाव को लेकर प्रस्तुत किया है। यह अथर्ववेद मंत्र कहता है ‘एकम’ एक तत्त्व ‘बालात्’ एक बाल से भी ‘अणियस्कम्’ अधिक सूक्ष्म है। अर्थात वह परमात्मा सूक्ष्म से भी अतिसूक्ष्म होकर प्राणियों के भीतर रम रहा है। इन वेदों के वचन और इन वचनों से लिए हुए श्रीकृष्ण महाराज के श्लोक 8/9 में कहे गए शब्द उस निराकार, सर्वशक्तिमान, संसार के रचयिता, सर्वव्यापक परमेश्वर की महिमा गा रहे हैं और श्रीकृष्ण महाराज श्लोक 8/9 के अंत में कह रहे हैं ‘अनुस्मरेत्’ अर्थात वेदाध्ययन के बाद इन्हीं गुणों वाले परमेश्वर का जो भी ध्यान,स्मरण करता है, वह इस परमेश्वर को पा जाता है।


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