आस्था का अनूठा संगम श्रीरेणुकाजी

By: Nov 4th, 2017 12:08 am

मां-पुत्र के पावन मिलन का श्री रेणुका जी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है। जो हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका में मनाया जाता है। जनश्रुति के अनुसार इस दिन भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुका से मिलने आते हैं।  यह मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य व पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा संगम है। यह स्थान नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है। रेणुका झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं। परंपरा के मुताबिक पूर्णमासी के पावन अवसर पर सुबह रेणुका झील में स्नान करने का विशेष पर्व होता है। इस दौरान असंख्य श्रद्धालु रेणुका झील के पवित्र जल में स्नान करके पुण्य प्राप्त करते हैं।

मेले से जुड़ी पौराणिक कथा

मान्यताओं के अनुसार महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा, ऋषि लालायित थे। एक दिन राजा अर्जुन (सहस्रबाहु) महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु मांगने पहुंच गया। महर्षि जमदग्नि ने सहस्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया तथा उसे समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत थी, जिसे किसी को नहीं दिया जा सकता। यह सुनकर गुस्साए सहस्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी, जिससे व्यथित होकर  मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई।  राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने का प्रयास किया, जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया। उधर, भगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे, लेकिन योगशक्ति से उन्हें अपनी जननी एवं जनक के साथ हुए घटनाक्रम का एहसास हुआ और उनकी तपस्या टूट गई। सहस्रबाहु की इस करतूत से परशुराम अति क्रोधित हुए और सेना सहित उसका वध कर दिया।  इसके बाद भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्नि तथा मां रेणुका को जीवित कर दिया। तब से लेकर यहां मेला लगता है। पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-पुत्र के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं।


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