एक टीस छोड़ गया चुनाव

By: Dec 9th, 2017 12:05 am

अशोक पुरोहित

लेखक, पालमपुर से हैं

किसी ने संकल्प पत्र जारी किया तो किसी ने घोषणा पत्र जारी किया, परंतु पहले की घोषणाओं का क्या हुआ? इसका किसी ने भी चुनाव में उत्तर नहीं दिया, तो भविष्य की घोषणाओं व संकल्पों का क्या होगा? प्रदेश का मतदाता अब इसी सोच के साथ चुनावी परिणामों की बाट जोह रहा है…

इस बार हिमाचल प्रदेश का चुनाव अपने पीछे अनेक अनसुलझे प्रश्न और आने वाले समय की अनेक भविष्यवाणियों के साथ संपन्न हो गया। हिमाचल प्रदेश में चुनाव मुख्य तौर पर दो ध्रुवों में ही सिमट कर रह गया। एक ध्रुव कांग्रेस और दूसरा ध्रुव भाजपा। यही दो ध्रुव हिमाचल प्रदेश के चुनाव में छाए रहे, बाकी सभी नगण्य मात्र ही दिखे। राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं के बीच फिर कुछ सियासतदां पुनः सत्तासीन होने के सपने देखने लगे हैं और कुछ सत्ता को रिपीट होने के सपने देख रहे हैं। राजनीतिक बहसबाज गली-चौराहों में अपने-अपने समीकरणों के आधार पर परिणामों की भविष्यवाणियों के मजे ले रहे हैं। चुनावी कयासों पर आधारित ऐसी जितनी भी जिरह हो जाए, वास्तविक तस्वीर तो 18 को ही प्रदेश से रू-ब-रू होगी।

हिमाचल प्रदेश की सत्तासीन कांग्रेस के चुनाव प्रचार का मुख्य आकर्षण वीरभद्र, राहुल गांधी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंदर सिंह और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री आदि तक ही सीमित रहा। यह भी कहना गलत नहीं होगा कि हिमाचल प्रदेश में मुख्य तौर पर वीरभद्र ही कांग्रेस चुनाव प्रसार का बोझ ढोते देखे गए, लेकिन हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में देश के प्रधानमंत्री के चुनाव प्रवास से लेकर हर विधानसभा क्षेत्र में अन्य स्टार प्रचारकों का भी लंबा-चौड़ा काफिला हिमाचल प्रदेश भाजपा के पक्ष में प्रचार हेतु जुटा रहा। अनेक केंद्रीय मंत्री एवं साथ लगने वाले प्रांतों के मंत्री प्रभारी के रूप में चुनाव की अंतिम वेला तक डटे रहे। परिणाम तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह चुनाव आने वाले समय की कुछ भविष्यवाणियां भी कर गया। सत्तासीन कोई भी हो, राह अब इतनी आसान नहीं है, क्योंकि दलों ने जातिवाद का एक दुखद अध्याय पुनः प्रदेश में प्रारंभ कर दिया, जो आने वाले समय में शुभ संकेत नहीं देता। देश में जातिवाद की राजनीति करने में आज कई दलों ने महारत हासिल कर ली है। इनमें अधिकतर क्षेत्रीय दल ही नजर आते हैं। बिहार में लालू यादव, उत्तर प्रदेश में मुलायम यादव, अखिलेश यादव, मायावती, महाराष्ट्र में शिव सेना, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी आदि अनेक क्षेत्रीय दल जाति-धर्म की राजनीति में विश्वास रखते रहे और अपना जनाधार भी बनाते रहे हैं। समय ने उन्हें सत्ता से ही विलुप्त नहीं किया, अपितु यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि वह अब भी जातिवाद राजनीति करेंगे, तो उनका क्या हश्र होगा। हिमाचल प्रदेश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा बेशक जाति मुक्त राजनीति करने का दम भरती रही हों, परंतु इस चुनाव में दोनों ने जमकर जाति की राजनीति की। इससे दोनों राष्ट्रीय दलों के बारे में देश-प्रदेश में एक बहस प्रारंभ हो चुकी है। कांग्रेस के बारे में जब प्रदेश की जनता इस बात से आश्वस्त हो गई कि यह प्रदेश को जातिवादी के आगोश में समेट कर अपनी विफलताओं को छिपाने की कोशिश कर रही है, तो प्रदेश का मतदाता सचेत हो गया। परिणाम को चुनावों के दौरान महसूस किया गया और अब 18 दिसंबर को तो पूरी तस्वीर ही बेपर्दा होगी।

जनसंघ डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रारंभ हुआ, पंडित दीनदयाल, अटल बिहारी वाजपेयी, आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी और प्रदेश में शांता कुमार जैसे नेताओं ने उस कारवां को आगे बढ़ाया और जो भाजपा आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है, वह हमारे समक्ष है। अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का वह सपना ‘अंत्योदय’ यानी अंतिम पंक्ति में बैठे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना राजनीति में विलुप्त होता हुआ नजर आ रहा है। मैं और मेरा ही सब तरफ नजर आ रहा है। अनेक साधुवाद प्राप्त लोग यह सब दूर से देख ही नहीं रहे, अपितु यह चिंता भी कर रहे हैं कि यह उसी विचार वाली पार्टी है, जो कहती थी कि मैं पहले हिंदू हूं उसके बाद कुछ और। क्या सत्ता की भूख में विचार इस तरह से डगमगा जाएगा। ऐसा इसकी स्थापना करने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा। पार्टी के नेता देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज उसी विचार के दम पर सत्ता में हैं, लेकिन उस विचार को किस हद तक अंगीकार किया उन्होंने? तर्क, विर्तक या कुर्तक कुछ भी हो सकते हैं, परंतु सत्ता विचारधारा को अपने में ऐसे समेट लेगी, यह किसी भी राष्ट्रीय विचारधारा के लिए भयावह और दुखदायी होगा।

रणनीति या राष्ट्रनीति में विचार प्रधान होता है। संगठन सज्जनों के होते हैं। यह मेरी गैंग, वह तेरी गैंग, यह सब क्या है? गैंग तो गुंडों की होती है। इसलिए गैंग संगठन का स्वरूप नहीं हो सकते। स्वास्थ्य संगठन ही देश-प्रदेश की बागडोर संभालने के लिए उपयोगी रहेंगे। किसी ने संकल्प पत्र जारी किया तो किसी ने घोषणा पत्र जारी किया, परंतु पहले की घोषणाओं का क्या हुआ? इसका किसी ने भी चुनाव में उत्तर नहीं दिया, तो भविष्य की घोषणाओं व संकल्पों का क्या होगा? प्रदेश का मतदाता इसी सोच में मतदान के परिणामों की बाट जोह रहा है। कुल मिलाकर मतदाता एक बार फिर ठगा गया और सियासी कलाकार चुनावी उत्सव में बहुत कुछ बेच गए।

ई-मेल : purohita005@gmail.com


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