जीवन की असली जरूरत है आनंद

By: Jan 13th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं आनंद पर उनके विचार:

हम अपने होने की स्थिति में ऐसे क्षणों का आनंद लेते हैं। इसमें कोई संभावना और पछतावा नहीं है। आनंद हमें विकास के क्षण देता है और ऐसे क्षण केवल ‘होने’ की स्थिति में आते हैं। ईमर्सन कहते हैं कि ‘होना’ विकास का निरंतर बहाव है और इसमें कोई स्थायित्व नहीं है। एक आदेश, एक आदेश ही होता है, चाहे यह आपका ही क्यों न हो। अगर आपको नींद लगी है और आप अपने आपको आदेश देते हैं कि बाहर जाओ और चढ़ते सूर्य को देखो, यह सुखद नहीं होगा। आनंद के क्षण तब निरंतर व बिना किसी बाधा के आते हैं जब हम सहज अवस्था में होते हैं। आप अपनी आजादी का आनंद लेने के लिए कमाई करते हैं। अगर आपके पास पैसे होंगे तो आप अंद्रेटा जैसे सुंदर स्थान पर आ सकते हैं, लेकिन आपका दिमाग इस तरह की सुंदरता को स्वीकार करने के लिए तैयार होना चाहिए। यदि आप अपनी आय से आनंद के क्षण प्राप्त नहीं कर सकते, तो यह मानना चाहिए कि आपने अपने पैसे का प्रयोग अपनी आत्मा के लिए नहीं किया है। धर्म का मतलब है आत्मा का कर्त्तव्य। वह व्यक्ति जो अपना व्यवसाय कर रहा है, वह गधा जो बोझ ढो रहा है, वे दोनों अपना धर्म निभा रहे हैं। हम अपने काम को बहाना बना ले लेते हैं, अपने चारों ओर पाबंदियों की दीवार खड़ी कर लेते हैं, चमकने को कोई समय नहीं देते या प्रकृति के लिए अनावृत्त होने के लिए बाहर नहीं जाते। आपका कर्त्तव्य है कि आप वह सब कुछ करें जो आत्मा यानी आनंद के साथ संगत में हो।  जीवन बड़ी तेजी से बदल रहा है। जीवन में कई तरह के ऊंच और नीच हैं। व्यक्ति इसमें से आनंद ढूंढने के बारे में मुश्किल से ही सोच पाता है। प्रख्यात उर्दू कवि इकबाल ने कहा है कि यह कितना दुखदायी है कि विश्व में हर्ष का कोई प्रेमी नहीं है।  हमारे जीवन, जो आनंद के क्षण देने के लिए थे, धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक के अलावा कुछ और नहीं हैं तथा इसमें कोई संतुलन नहीं है। हमारे बच्चे बड़े होते हैं और हम उनको प्रोत्साहित करते रहते हैं कि हम जो चाहते हैं, वैसा बनने के लिए वे ज्यादा से ज्यादा अध्ययन करें। फिर हम उनके लिए उपयुक्त जीवन साथी की तलाश शुरू कर देते हैं। हम अपने आपको एक मजाकिया संघर्ष में डाल देते हैं। हम उनको वह समय नहीं देते जिससे जीवन के सर्वाधिक मूल्यवान क्षण की झलक मिले। हम उन्हें अपना विकृत दर्शन देते हैं। वे चाहे कुछ भी बन सकते हों, हमें उनमें जीवन की असली जरूरत-आनंद की समझ पैदा करनी है। अपने आपको अच्छा बनाएं। दूसरों को वह दें, जो आप अपनी कमाई में से दे सकते हैं। खाने, पीने और संबंधों में आ रहे बदलावों को देखते रहें। सभी चीजों में तार्किकता व वैचारिकता होनी चाहिए। शिक्षा, भाग्य व शराब व्यक्ति को अभिव्यक्त करते हैं। किसी व्यक्ति के पास अगर पैसे हों, चाहे वह मूलतः बुरा व्यक्ति ही हो, तो वह शराब पीने तथा कुछ इसी तरह का कुछ करने के लिए जाएगा। शिक्षा के सहारे एक चतुर व्यक्ति समझदार बन सकता है। एक अच्छा आदमी, जिसके पास शिक्षा भी हो, एक संत बन जाता है। व्यसन के बाद एक सामान्य आदमी निर्बाध रूप से बोलना शुरू कर देगा, बुरा व्यक्ति दुर्व्यवहार शुरू कर देगा और अच्छा आदमी भक्ति गीत गाना शुरू कर देगा। आनंद पाने के लिए जरूरी है कि आप विवेक के भीतर रहें। आजादी तक के लिए पूर्व शर्त होती है अच्छाई। प्रसन्नता आत्मा की विशेषता है। आप खुश होकर जन्मे और आपने बाहर से जो चीजें ली, उन्होंने आपको दुखी बना दिया।


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