सबरीमाला तीर्थ

By: Jan 13th, 2018 12:10 am

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा…

दक्षिण भारत के केरल राज्य में बसा है सबरीमाला श्री अयप्पा मंदिर। सबरीमाला मंदिर में भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ है। यहां हर साल नवंबर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। क्योंकि बाकी पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज्यादा भक्त पहुंचते हैं। वहीं, आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे।

 कौन थे अयप्पा

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं, उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

क्या है खास

यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाडि़यों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाडि़यों से घिरा हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढि़यों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। पहली पांच सीढि़यों को मनुष्य की पांच इंद्रियों से जोड़ा जाता है। इसके बाद वाली 8 सीढि़यों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। अगली तीन सीढि़यों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढि़यों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीजें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।इस मंदिर के पट साल में दो बार खोले जाते हैं, 15 नवंबर और 14 जनवरी को। मकर संक्रांति और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के संयोग के दिन, पंचमी तिथि और वृश्चिक लग्न के संयोग के समय ही श्री अयप्पन का जन्म माना जाता है। इन दिनों घी से भगवानकी मूर्ति का अभिषेक कर के मंत्रों का उच्चारण होता है।


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