वित्तीय घाटा बढ़ने दीजिए

By: Feb 6th, 2018 12:10 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

वित्तीय घाटे पर नियंत्रण करने के मंत्र के पीछे सोच थी कि मेजबान सरकार भ्रष्ट होने से सरकारी निवेश पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसलिए सरकारी निवेश घटाओ और निजी निवेश बढ़ाओ। वित्त मंत्री द्वारा विश्व बैंक के इसी मंत्र का अनुपालन किया जा रहा है। इसी दिशा में सरकार द्वारा मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। सोच है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश करेंगी और हमारी अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। अस्सी के दशक में जब वित्तीय घाटे का मंत्र बनाया गया था और वर्तमान स्थिति में बहुत अंतर है…

वित्त मंत्री ने आगामी वर्ष के बजट में वित्तीय घाटे पर नियंत्रण रखने का क्रम जारी रखा है। वर्ष 2013-14 में सरकार का वित्तीय घाटा देश की आय का 4.5 प्रतिशत था। चालू वर्ष 2017-2018 में यह 3.5 रह गया है। आगामी वर्ष में इसे और घटा कर 3.2 प्रतिशत पर लाने की योजना है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण का मंत्र अस्सी के दशक में विश्व बैंक ने दक्षिण अमरीका के संदर्भ में बनाया था। वहां की कई सरकारें अति भ्रष्ट थीं। उनके नेता विश्व बैंक से ऋण लेकर रकम का रिसाव कराकर स्विस बैंक के अपने व्यक्तिगत खातों में जमा करा रहे थे। तब विश्व बैंक ने मंत्र बनाया कि विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को निजी निवेश के आधार पर बढ़ाया जाए। निजी निवेशकों द्वारा लाई गई रकम को मेजबान देश के नेता रिसाव कराकर गबन नहीं कर पाएंगे।

अगला प्रश्न था कि निजी निवेशकों को कैसे आकर्षित किया जाए? विश्व बैंक ऋण न दे तो भी मेजबान सरकार के नेता नोट छापकर रकम का गबन कर सकते थे। ऐसे में विदेशी निवेशकों को भरोसा नहीं बनता था, इसलिए वित्तीय घाटे पर नियंत्रण का मंत्र बनाया गया। विश्व बैंक ने सलाह दी कि विकासशील देशों की सरकारें अपने वित्तीय घाटे पर नियंत्रण करें। वित्तीय घाटा कम होगा तो अर्थव्यवस्था स्थिर रहेगी और विदेशी निवेश आएगा। ज्ञात हो कि वित्तीय घाटा वह रकम होती है, जो सरकार ऋण लेती है। अपनी आय से अधिक खर्चों को सरकार इस रकम से पोषित करती है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण के लिए सरकार को अपने कुल खर्च कम करने होंगे। इन्हें कम करने हेतु सरकार को निवेश भी कम करना होगा। इससे विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता था, परंतु विश्व बैंक ने कहा कि निजी विदेशी निवेश आएगा और आर्थिक विकास सुचारू रूप से चलता रहेगा। अतः वित्तीय घाटे पर नियंत्रण करने के मंत्र के पीछे सोच थी कि मेजबान सरकार भ्रष्ट होने से सरकारी निवेश पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसलिए सरकारी निवेश घटाओ और निजी निवेश बढ़ाओ। वित्त मंत्री द्वारा विश्व बैंक के इसी मंत्र का अनुपालन किया जा रहा है। इसी दिशा में सरकार द्वारा मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। सोच है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश करेंगी और हमारी अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। अस्सी के दशक में जब वित्तीय घाटे का मंत्र बनाया गया था और वर्तमान स्थिति में बहुत अंतर है। उस समय बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन में फैक्टरियां लगा रही थीं, चूंकि चीन में वेतन कम थे। आज चीन तथा भारत में वेतन बढ़ रहे हैं, इसलिए सस्ते वेतन का आकर्षण कम हो गया है। बीते दशक में आटोमेटिक मशीनों से उत्पादन होने लगा है। रोबोट द्वारा कार बनाई जा रही है। आज विनिर्माण क्षेत्र में श्रम की जरूरत कम हो गई है। तमाम फैक्टरियां विकासशील देशों से वापस यूरोप एवं अमरीका को जा रही हैं, चूंकि अब श्रम की जरूरत ही कम रह गई है। बहुराष्ट्रीय कंपनी में 10,000 श्रमिक हों तो सस्ते वेतन का गहरा प्रभाव पड़ता है। उसी कंपनी में केवल 100 श्रमिक हों, तो उन्हें अधिक वेतन देने का कम प्रभाव पड़ता है, इसलिए विदेशी निवेश भारत में नहीं आ रहा है। एक और कारण है कि वर्तमान समय में अमरीकी अर्थव्यवस्था में तकनीकी आविष्कार हो रहे हैं। वह अर्थव्यवस्था गतिमान है। वहां के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू कर दिया है। विदेशी निवेशकों को अब अमरीका के सुरक्षित वातावरण में पर्याप्त आय मिल रही है, इसलिए उनका भारत जैसे विकासशील देशों की तरफ रुझान कम हो गया है। रोबोट के उपयोग तथा अमरीका में ब्याज दर बढ़ने से विदेशी निवेशक भारत को कम ही आ रहे हैं।

इस परिस्थिति में वित्त मंत्री के सामने दो रास्ते खुले थे। एक रास्ता था कि सरकारी निवेश को नियंत्रण में रखते, वित्तीय घाटा कम बनाए रखते और विदेशी निवेश के भरोसे भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते। दूसरा रास्ता था कि सरकारी निवेश बढ़ाते, वित्तीय घाटा बढ़ने देने और घरेलू निवेश के सहारे अर्थव्यवस्था को बढ़ाते। वित्त मंत्री ने विश्व बैंक द्वारा बताए पहले रास्ते को चुना है। वित्तीय घाटे को कम करने का प्रयास जारी है जैसा इस लेख के प्रारंभ में बताया गया है, परंतु यह रास्ता सफल नहीं है। विदेशी निवेश धीमी गति से ही आ रहा है। घरेलू निवेश भी कम हो रहा है, चूंकि सरकार ने अपने खर्च कम कर रखे हैं। निवेश के दोनों स्रोत ढीले पड़े हुए हैं। हमारी अर्थव्यवस्था सात प्रतिशत की विकास दर पर ही अटकी हुई है। 15 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने की तो चर्चा भी नहीं हो रही है।

वित्त मंत्री को वित्तीय घाटे पर नियंत्रण करने के विश्व बैंक के मंत्र को त्याग कर घरेलू निवेश बढ़ाना चाहिए था। वर्तमान एनडीए सरकार मूल रूप से ईमानदार है। विदेशी और घरेलू निवेश दोनों में सुस्ती के बावजूद हमारी विकास दर सात प्रतिशत की दर पर है, चूंकि वर्तमान सरकार ने सरकारी रकम के रिसाव पर लगाम लगाई है। इस परिस्थिति में ऋण लेकर निवेश करना चाहिए था। उद्यमी के लिए बैंक से ऋण लेकर फैक्टरी लगाना अच्छा माना जाता है। फैक्टरी द्वारा अर्जित रकम से ऋण को अदा किया जा सकता है, लेकिन शराबी द्वारा पड़ोसी से ऋण लेना अच्छा नहीं माना जाता, चूंकि लिए गए ऋण को वह अदा नहीं कर पाता है। इसी प्रकार सरकार बाजार से ऋण लेकर हाई-वे एवं एयर पोर्ट में निवेश करे तो अच्छा है। हाई-वे बनने से अर्थव्यवस्था में गति आएगी, सरकार को टैक्स अधिक मिलेगा और लिए गए ऋण को अदा किया जा सकेगा।

आज दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है। वर्तमान सात प्रतिशत विकास दर विश्व के प्रमुख देशों में अधिकतम हो तो भी बात नहीं बनती है। नब्बे के दशक में चीन ने 13 प्रतिशत की विकास दर हासिल की थी। आज हमारा लक्ष्य 15 प्रतिशत विकास दर हासिल करने का होना चाहिए। सरकार को विश्व बैंक के मंत्र से उबरना चाहिए। विश्व बैंक पर मूल रूप से अमरीकी सरकार का वर्चस्व है। अमरीकी सरकार पर अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का वर्चस्व है। ये कंपनियां चाहती हैं कि विकासशील देशों की सरकारें स्वयं ऋण लेकर निवेश न करें, जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निवेश करने एवं लाभ कमाने का खुला मैदान मिल जाए, लेकिन इस समय बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में निवेश पसंद नहीं आ रहा है, चूंकि रोबोट ने अमरीका में निवेश करना लाभप्रद बना दिया है और अमरीकी केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। इस प्रकार हम पर दोहरी मार पड़ रही है। विदेशी और घरेलू दोनों ही निवेश ढीले पड़े हुए हैं और हम सात प्रतिशत की विकास दर पर अटके हुए हैं। वित्त मंत्री को चाहिए कि वित्तीय घाटा नियंत्रित करने के विश्व बैंक के मंत्र को त्याग दें, ऋण लेकर सरकारी निवेश बढ़ाएं और देश को 15 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ाएं।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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