युवा पीढ़ी के नए फलक

By: Apr 16th, 2018 12:05 am

हिमाचली युवा के भविष्य की लकीर सींचने का यथार्थ कहीं गुमराह तो नहीं हो रहा है या सरकारों की माथापच्ची का तरीका पुराना पड़ गया है। युवा अपनी आशाओं को समेटे, शिक्षा के कालखंड में जो सपने देखता है या ज्ञान की ऊर्जा में प्रवाहित होने का मकसद पालता है, तो क्या हिमाचल ने इस पीढ़ी के संबोधन पूरी तरह समझ लिए। क्या अब यह संभव है कि सरकारी नौकरी के झांसे में तस्वीर बड़ी की जाए या कोई ऐसा चित्र खींचा जाए, जो हकीकत के दर्पण को भी मंजूर हो। प्रसन्नता का एक विषय निजी जिंदगी की दौड़-धूप के बीच उस समय दिखाई दिया, जब युवाओं ने हिमाचली पुस्तकालयों की प्रासंगिकता बढ़ा दी। धर्मशाला के बाद मंडी के सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थिति सुधारने के लिए अगर युवाओं ने आवाज उठाई, तो संकल्प की ऐसी इबादत का अर्थ समझना होगा। सरकारी नौकरी के लिए स्कूल की घंटी के बजाय अगर युवा वर्ग राष्ट्रीय फलक के दरवाजे खोलना चाहता है, तो इस दिशा में भी राज्य को प्रयास करने होंगे। दिक्कत तो राष्ट्रीय सेवाओं के लिए उपयुक्त परीक्षा केंद्रों की है, ताकि अपने आंगन में ही बच्चे कांटों और फूलों के बीच सही चयन कर सकें। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड एक पहल करके राज्य स्तरीय प्रवेश या राष्ट्रीय सेवा चयन का परीक्षा केंद्र स्थापित कर सकता है। बहरहाल हिमाचली युवाओं के लिए आत्मनिर्भरता के मायनों का विस्तार करना इससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रदेश के कृषि व बागबानी विश्वविद्यालयों के सान्निध्य में स्वरोजगार के तत्त्व अगर मजबूत हों, तो हिमाचली खेत को बचाया जा सकता है। यह इसलिए भी कि प्रदेश में उपभोक्ता जरूरतों के साथ एक बड़ा बाजार पनप रहा है, लेकिन युवा दृष्टि को सियासत ने नौकरी की भीख से जोड़ रखा है। प्रदेश में दुग्ध, मशरूम, मछली, रेशम, बेमौसमी सब्जियों तथा फलोत्पादन की जगह लगभग खाली है और अगर युवा का रुख इस तरफ मोड़ा जाए तो क्रांति आ सकती है। इसके लिए विश्वविद्यालयों को अपने लक्ष्य निर्धारित करके काम करना होगा या पाठ्यक्रम की शरण में वेतनभोगी माहौल को बदलना पड़ेगा। रोजगार उत्पादक राज्य बनने की कसौटी पर उपलब्ध समाधानों और संसाधनों पर गौर करें, तो सारा ढांचा इस लायक बनाना पड़ेगा। राशन की सस्ती दुकान या स्कूल में दोपहर की खिचड़ी का सामान हमारा भविष्य कतई नहीं लिख पा रहा, बल्कि बेरोजगारी की उत्तेजना में मेहनत का पसीना सूख रहा है। ऐसे में युवा मन में अभी तक जो रुचियां घर कर गई हैं या समाधानों की भीख में अभिभावक भी जिस दिशा को आसानी से चिन्हित करते रहे हैं, उनसे हटकर वातावरण तैयार करना होगा। यह लाजिमी नहीं कि स्किल इंडिया के पैमानों में हिमाचली युवा परिपक्व हो जाए और नीली वर्दी पहनकर जीवनयापन कर ले। ऐसे में न्यू इंडिया की सोच में हिमाचली युवा की क्षमता और प्रतिभा का मूल्यांकन केवल राज्य के वर्तमान दायरों में संभव नहीं। आईआईटी मंडी ने युवाओं के लिए इनक्यूबेटर की स्थापना करके मानसिक पटल खोलने का इजहार किया है। ऐसे में भविष्य की निधि का तात्पर्य नए विचारों का सृजन है और इसके लिए हिमाचली समुदाय को मुख्य भूमिका में उतरना पड़ेगा। भविष्य के जिन संदर्भों से अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा देखते हैं या जिस नापतोल की शिक्षा ने हमें सरकारी नौकरी की अर्जी बना दिया, उससे हटकर हिमाचल को अपने स्वरोजगार क्षेत्र का क्षितिज बढ़ाना होगा। सामाजिक दबाव, शिक्षा का ढर्रा तथा असफल होने का खौफ नहीं छूटा, तो युवा पीढ़ी पैंतालीस साल की उम्र तक खुद को सरकारी अनुबंध के रोजगार का पात्र बनाती रहेगी। आत्मविश्वास से लबालब तथा दृढ़ प्रतिज्ञ युवाओं का संगम, शिक्षा के निर्देशन, कामकाज के माहौल तथा उपयुक्त वित्तीय व ढांचागत सुविधाओं से ही फले-फूलेगा।

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