कालिका सहस्रनाम

By: May 12th, 2018 12:15 am

-गतांक से आगे…

स्वयंभुवा शिवा धात्री पावनी लोक-पावनी।

कीर्तिर्यशस्विनी मेधा विमेधा शुक्र-सुंदरी।। 141।।

अश्विनी कृत्तिका पुष्या तैजस्का चंद्र-मंडला।

सूक्ष्माऽसूक्ष्मा वलाका च वरदा भय-नाशिनी।। 142।।

वरदाऽभयदा चैव मुक्ति-बंध-विनाशिनी।

कामुका कामदा कांता कामा या कुल-सुंदरी।। 143।।

दुःखदा सुखदा मोक्षा मोक्षदार्थ-प्रकाशिनी।

दुष्टादुष्ट-मतिश्चैव सर्व-कार्य-विनाशिनी।। 144।।

शुक्राधारा शुक्र-रूपा-शुक्र-सिंधु-निवासिनी।

शुक्रालया शुक्र-भोग्या शुक्र-पूजा-सदा-रतिः।। 145।।

शुक्र-पूज्या-शुक्र-होम-संतुष्टा शुक्र-वत्सला।

शुक्र-मूर्त्तिः शुक्र-देहा शुक्र-पूजक-पुत्रिणी।। 146।।

शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्र-संस्पृहा शुक्र-सुंदरी।

शुक्र-स्नाता शुक्र-करी शुक्र-सेव्याति-शुक्रिणी।। 147।।

महा-शुक्रा शुक्र-भवा शुक्र-वृष्टि-विधायिनी।

शुक्राभिधेया शुक्रार्हा शुक्र-वंदक-वंदिता।। 148।।

शुक्रानंद-करी शुक्र-सदानंदाभिधायिका।

शुक्रोत्सवा सदा-शुक्र-पूर्णा शुक्र-मनोरमा।। 149।।

शुक्र-पूजक-सर्वस्वा शुक्र-निंदक-नाशिनी।

शुक्रात्मिका शुक्र-संपत् शुक्राकर्षण-कारिणी।। 150।।

शारदा साधक-प्राणा साधकासक्त-रक्तपा।

साधकानंद-संतोषा साधकानंद-कारिणी।। 151।।

आत्म-विद्या ब्रह्म-विद्या पर ब्रह्म स्वरूपिणी।

सर्व-वर्ण-मयी देवी जप-माला-विधायिनी।। 152।।

पाठ समाप्ति के बाद महाकाली और महाकाल को प्रणाम करें क्योंकि जहां महाकाल हैं, वहीं महाकाली जी हैं और कर्पूर से आरती करें। आप सभी के कल्याण हेतु यह पाठ कलियुग में कल्पवृक्ष के समान है, जो समस्त कार्यों में सफलता प्रदान करता है।

-समाप्त

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