किसी अजूबे से कम नहीं हैं रामायण के पात्र

By: Jun 9th, 2018 12:05 am

जटायु रामायण का एक प्रसिद्ध पात्र है। जब रावण सीता का हरण करके लंका ले जा रहा था तो जटायु ने सीता को रावण से छुड़ाने का प्रयत्न किया था। इससे क्रोधित होकर रावण ने उसके पंख काट दिए थे जिससे वह भूमि पर जा गिरा…

-गतांक से आगे…

कौशल्या

कौशल्या रामायण की एक प्रमुख पात्र हैं। वे कौशल प्रदेश (छत्तीसगढ़) की राजकुमारी तथा अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी थीं। कौशल्या को राम की माता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

खरदूषण

राधेश्याम रामायण के अनुसार खरदूषण रावण के रिश्ते के भाई थे। जब लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए तो वह रोती हुई खरदूषण के पास गई जो वहीं चित्रकूट के समीप रहते थे। वे दोनों चौदह सहस्र सेना लेकर राम-लक्ष्मण से युद्ध करने आए, परंतु अकेले राम ने उन सबका वध कर दिया।

जटायु

जटायु रामायण का एक प्रसिद्ध पात्र है। जब रावण सीता का हरण करके लंका ले जा रहा था तो जटायु ने सीता को रावण से छुड़ाने का प्रयत्न किया था। इससे क्रोधित होकर रावण ने उसके पंख काट दिए थे जिससे वह भूमि पर जा गिरा। जब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते-खोजते वहां पहुंचे तो जटायु से ही सीता हरण का पूरा विवरण उन्हें पता चला।

जनक

जनक नाम से अनेक व्यक्ति हुए हैं। पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुपुत्र निमि ने विदेह के सूर्यवंशी राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी मिथिला हुई। मिथिला में जनक नाम का एक अत्यंत प्राचीन तथा प्रसिद्ध राजवंश था जिसके मूल पुरुष कोई जनक थे। मूल जनक के बाद मिथिला के उस राजवंश का ही नाम जनक हो गया जो उनकी प्रसिद्धि और शक्ति का द्योतक है। जनक के पुत्र उदावयु, पौत्र नंदिवर्धन और कई पीढ़ी पश्चात हृस्वरोमा हुए। हृस्वरोमा के दो पुत्र सीरध्वज तथा कुशध्वज हुए। जनक नामक से एक अथवा अनेक राजाओं के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में हुए हैं। इतना निश्चित प्रतीत होता है कि जनक नाम के कम से कम दो प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए। एक तो वैदिक साहित्य के दार्शनिक और तत्वज्ञानी जनक विदेह और दूसरे राम के ससुर जनक, जिन्हें वायुपुराण और पद्मपुराण में सीरध्वज कहा गया है। असंभव नहीं, और भी जनक हुए हों और यही कारण है, कुछ विद्वान वशिष्ठ और विश्वामित्र की भांति जनक को भी कुलनाम मानते हैं। सीरध्वज की दो कन्याएं सीता तथा उर्मिला हुईं जिनका विवाह, राम तथा लक्ष्मण से हुआ। कुशध्वज की कन्याएं मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति हुईं जिनके विवाह भरत तथा शत्रुघ्न से हुए। श्रीमद्भागवत में दी हुई जनकवंश की सूची कुछ भिन्न है, परंतु सीरध्वज के योगिराज होने में सभी ग्रंथ एकमत हैं। इनके अन्य नाम विदेह अथवा वैदेह तथा मिथिलेश आदि हैं। मिथिला राज्य तथा नगरी इनके पूर्वज निमि के नाम पर प्रसिद्ध हुए।

जामवंत

जामवंत रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे ऋक्ष प्रजाति के थे। उनका संदर्भ महाभारत से भी है। स्यमंतक मणि के लिए श्री कृष्ण एवं जामवंत में नंदिवर्धन पर्वत (तत्कालीन नांदिया, सिरोही, राजस्थान ) पर 28 दिनों तक युद्ध चला। जामवंत को श्री कृष्ण के अवतार का पता चलने पर उन्होंने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्री कृष्ण द्वारा स्थापित शिवलिंग (रिचेश्वर महादेव मंदिर नांदिया) की शाक्शी में करवाया। जामवंत जी का जन्म ब्रह्मा जी से ही हुआ था। यह जब जवान थे, तब भगवन त्रिविक्रम वामन जी का अवतार हुआ। तब भगवान बलि के पास तीन पग भिक्षा मांगने गए और बलि तैयार भी हो गया। भगवान ने अपना स्वरूप बढ़ाया और देखते ही देखते दो पग से ही पूरा ब्रह्मांड नाप लिया। अब भगवान बलि को बांधने लगे। तब जामवंत जी ने बलि को बांधते हुए प्रभु की सात प्रदक्षिणा कर ली और तब तक प्रभु बलि को पूरा बांध भी नहीं पाए थे। जब सुग्रीव जी, बाली के डर से ऋषिमुख गिरि पहाड़ पर था, तब भी जामवंत जी उनके साथ थे। अब उनके ज्ञान के बारे में बात करते हैं। जब राम जी बाली को मारने जाने वाले थे, तब जामवंत जी ने बताया था कि इन सात पेड़ों को एक बाण से जो भेदेगा, वही बाली को मारेगा और ऐसा ही हुआ। एक कथा यह भी है कि जब हनुमान जी लंका को जाने वाले थे, तब भी वह जामवंत जी की सलाह लेकर गए थे। अब उनके बल की बात करते हैं। जब भगवान राम ने रावण को मारा तो जामवंत जी ने भगवान से ये वर मांगा कि मुझे युद्ध में ललकारने वाला कोई हो, तब भगवान ने कहा कि द्वापर में मैं ही तुमसे युद्ध करूंगा और ऐसा ही हुआ।                        -क्रमशः

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