खूंटे से बंधे की यात्रा

By: Jul 29th, 2018 12:04 am

विराम

किसी खूंटे से बंधे रहकर की गई यात्रा उस दूरी तक ले जा सकती है जितनी बड़ी रस्सी है। कोल्हू के बैल को ताउम्र चलाते रहिए, हजारों मील की थकावट के बाद भी मंतव्य नहीं मिलेगा। आप मानसिक तौर पर किसी विशेष आदर्श या वैचारिक आग्रहों के कथित धनी हो सकते हैं, लेकिन आप उस बंधन से इतर जाने की मजबूरी के कारण मनस गरीबी में झूलते रहेंगे। हमारी अस्तित्वगत आजादी तब तक अर्थहीन है जब तक दिमागी आजादी की बयार हमें आनंदित नहीं करती।

मनस विवशताओं के फफोले स्व के तंत्र को समझने में रोड़े अटकाया करते हैं। समझ के लिए किताबों का आसरा भी बैसाखी हो जाता है, अगर स्वगत क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं के प्रति चैतन्य सोया हुआ है। चेतनता महज चलना, फिरना नहीं। यह भीतर की वह समझ है जो इसके हर स्पंदन के प्रति जागरूक है। हर क्रंदन के प्रति जागरूक है। हमारी तल्लीनता किसी विषय को तब तक समझाने में असमर्थ रहेगी, जब तक हम इस लीनता के प्रति सोए हैं। ज्ञान को ग्रंथों में ढूंढने वाले अकसर अपने आप को भूले रहते हैं। मानो ज्ञान बाहर पड़ा वह धन है, जो उनके जीवन की गरीबी को दूर कर देगा। जिंदगी का गुरु बनने की बजाय हम उन चतुर महारथियों का चेला बनने में जीवन गुजार देते हैं जो महज गुरु घंटाल हैं और अपनी इस धूर्तता से संसार को लूटते रहे हैं। इनमें नेताओं की जमात वह श्रेणी है, जिसे हम आदर भी देते हैं और चादर भी कि आइए, हमें लत्ते लीजिए। हम किंचित से प्राणी आपके आशीर्वाद के लोभी हैं।

अपने आपको सम्मान ने दे सकने वाला आदर पा जाता है और अनादृत सामान्यजन इसे भाग्य का हिस्सा कह खुद को सांत्वना देने में ही जिंदगी गुजार जाता है। अपने को जाने बिना दूसरे को जानने की कोशिश महज मृग मरीचिका है। मानो गधे को कंधे पर लादे हम अपनी जग हंसाई कराने में तल्लीन हैं। मूर्खता को अपने में ढूंढकर ही हम बाकी मूर्खों से दो-चार हो सकते हैं। उनके कथित शृंगार से आप भी सजने की मंशा पाले हैं तो न जिंदगी के तन का भला होगा और न मन को जानने की सार्थक कोशिश रास आएगी।

-भारत भूषण ‘शून्य’


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