सोलन में मिले साढ़े चार करोड़ साल पुराने जीवाश्म

By: Jul 27th, 2018 12:20 am

धर्मपुर में एनएच-5 पर भू-स्खलन के बाद निकला खजाना, वैज्ञानिकों के चेहरे खिले

सोलन — जिला सोलन के धर्मपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर हुए भू-स्खलन में जीवाशम (फॉसिल) का खजाना बाहर निकल कर सामने आया है। इससे जल,भू-वैज्ञानिकों के चेहरे खिल उठे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह जीवाश्म करीब 4.5 करोड़ वर्ष पुराने हैं। इस स्थान पर सिपियों व पेड़ों के जीवाश्मों के मिलने से कई अहम खुलासे हुए हैं और ऐसे में दो करोड़ वर्ष पूर्व माने जाने वाली हिमालय की उत्पति की समय सीमा बढ़कर साढ़े चार करोड़ वर्ष तक पहुंच गई है। गौर रहे कि वैज्ञानिकों के अनुसार करीब 20 करोड़ वर्ष पूर्व भारत एक द्वीप था। इन ताजा जीवाश्मों के मिलने से यह स्पष्ट हो गया है कि करीब साढ़े चार करोड़ वर्ष पूर्व भारत द्वीप चीन से टकराया और इससे हिमालय की उत्पति हुई। भारतीय द्वीप जब चीन से टकराया तो इस स्थान पर टेथिस समुद्र था। भारतीय द्वीप के चीन से टकराने पर हिमालय की उत्पति हुई और भारत के एक तरफ अरब सागर व दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी का निर्माण हुआ। इस विषय पर समय-समय पर अध्ययन के साथ अनुसंधान भी होते रहे हैं, लेकिन इन जीवाश्मों के मिलने से वैज्ञानिकों को जो तथ्य हासिल हुए हैं, वे हिमालय की उत्पति को लेकर काफी अहम साबित माने जा रहे हैं। गौर हो कि  गत शनिवार को शाम करीब चार बजे धर्मपुर के समीप हुए भू-स्खलन के कारण जहां आम लोगों को परेशानी झेलनी पड़ी थी, वहीं इस भू-स्खलन ने वैज्ञानिकों के चेहरे खिला दिए हैं।  इस स्थान पर गिरे मलबे के नीचे मॉलस्क मिले हैं। इनमें सीपियों, ऑयस्टर, गैस्ट्रोपोड व बाइवाल्व व पेड़ों के जीवाश्म शामिल हैं। इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि ये जीवाश्म करीब साढ़े चार करोड़ वर्ष पुराने हैं। इनमें से कई जीवाश्म पेड़ व सीपियों का मिश्रण हैं। इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस स्थान पर लगभग साढ़े चार करोड़ वर्ष पूर्व समुद्र था। जीवाश्म कितने वर्ष पुराने हैं इसके लिए पैरामीटर स्ट्रेटीग्राफिक कोरिलेशन द्वारा तय किए जाते हैं। स्ट्रेटीग्राफी जियोलॉजी विज्ञान की एक ब्रांच है जिसमें रॉक्स (चट्टानों) के स्तरों की फॉरमेशन, कंपोजिशन, स्क्विंस व कोरिलेशन का अध्ययन किया जाता है।

कसौली में मिल चुके हैं जीवाशम

कसौली व आसपास के क्षेत्रों में जीवाश्म मिलने का सिलसिला ब्रिटिशकाल से जारी है।  1864 में अंग्रेज वैज्ञानिकों ने कसौली के अपर माल पर कसौली क्लब के पास जीवाश्मों को ढूंढा था। वहीं, जल,भू-वैज्ञानिक डा. रितेश आर्य ने 1989 में कसौली में  पीएचडी के दौरान रिसर्च शुरू की और उन्हें काफी संख्या में जीवाश्म भी मिले। कसौली में मिलने वाले करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्म उन पेड़-पौधों के हैं, जो अंडमान निकोबार द्वीप सहित मलेशिया व इंडोनेशिया में पाए जाते हैं। इनमें गार्सिन, गलुटा, कोमब्रिटम व पाम मुख्य हैं और ये पेड़-पौधे कसौली व आसपास के क्षेत्रों में नहीं पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का तर्क है कि कसौली व आसपास मिलने वाले यह जीवाश्म उस समय के हैं जब कसौली की पोजिशन इक्वेटर (भूमध्य रेखा) के समीप हुआ करती थी।


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