हिमाचली नाफरमानी का गैंग

By: Jul 14th, 2018 12:05 am

हिमाचल में नाफरमानी गैंग की बाहों को मरोड़ने के लिए माननीय अदालतों का शुक्रिया करना होगा, वरना सियासी ओहदों की खुमारी में प्रदेश कितना लुट गया, इसकी हमें खबर तक नहीं। अब किस्से सामने हैं और परतें जब खुलने लगीं, तो अवैध निर्माण के हमाम में हर कोई नंगा दिखाई दे रहा है। पर्यावरण की खबर में एनजीटी ने जो सुर्खियां बनाईं, उन्हें हम अपनी संवेदना का मरहम लगाते रहे, लेकिन जिस तरह रोहतांग से बर्फ की परत मिटती देखी उसे भी तो अंगीकार करना होगा। जो कसौली की गलियों में पत्थरों से ढके फुटपाथ पर चले या जिन्होंने मनाली के दरख्तों से लड़ते गर्मी के मौसम और कड़कते सूरज को देखा, उन्हें मालूम है कि पहाड़ का होना तथा पहाड़ में होने की शर्तें क्या थीं। करीब तीन दशक पुराना हिमाचल आज की तरह प्रगति का लबादा नहीं ओढ़ता था और न ही नागरिक समाज, प्रकृति और सरकार के बीच तकरार पैदा करता था। अदालत सख्त हुई, तो पता चल रहा है कि किस तरह की क्रूरता, अवज्ञा और असंवेदनशीलता का प्रदर्शन बेरोकटोक हुआ। कैसे वनभूमि के आंचल में अतिक्रमण के छेदक पैदा हुए और सेब के बूटे सियासत ऊंची करने लगे। कैसे होटलों ने पर्वतीय ढांचे में सुराख करके अस्मत लूट ली और प्रशासन को बांझ बनाकर सत्ता का प्रभाव, निरंकुश हो गया। नए हिमाचल के क्षितिज पर बैठा नाफरमानी का गैंग यूं ही बुलंद नहीं हुआ, बल्कि बाकायदा इसकी ताजपोशी होती रही है। अगर अब अदालत पूछ रही है कि राजस्व, वन तथा अन्य विभागों की परिपाटी क्यों सोई रही, तो यह प्रशासनिक माफिया ही रहा होगा, जिसने तरक्की के महल खड़े करते हुए हिमाचल को विद्रूप बना दिया। यानी हम तो आबाद हुए, लेकिन हिमाचली परिमल हारता गया। इमारतें हमारे जुनून से भी ऊंची होती गईं, तो चारित्रिक स्खलन उसी रफ्तार से कबूल होता गया। जिन्हें स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधित्व मिला, वही धरती को लूटते और चरित्र को गिराते देखे गए। जिम्मेदारियों, जवाबदेही और दायित्व से अलग शिखंडियों के कदमताल ने सारी व्यवस्था का मजाक उड़ाया है, इसीलिए चार दशक पहले आया ग्राम एवं शहरी योजना कानून केवल एक अपाहिज फरमान है। शहरी संपत्तियों को हजम कर चुके पार्षद या जिन राजस्व अधिकारियों ने खाते बदलकर हाथ साफ किए, उन्हें ढूंढने की ताकत चाहिए। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और हाई कोर्ट के सख्त निर्देशों के कारण हम हिमाचल की गंदी गलियों को साफ कर सकते हैं, लेकिन अदालत को ही अगर हमारे वजूद को पाक साफ करना है तो हम समय की आंखों में धूल झोंककर, ईमानदार नागरिक नहीं ठहराए जा सकते। अब जबकि अवैध सेब बागानों की जड़ें खोदी जा रही हैं, तो तर्क और दर्द का बहाना सही नहीं हो सकता। यह दीगर है कि वन की सरहद ने हिमाचली संभावना और आर्थिक क्षमता को अवरुद्ध किया है, लेकिन सार्वजनिक संपत्ति की लूट जायज नहीं है। जिन्होंने हिमाचल में सेब उत्पादन, पर्यटन या होटल व्यवसाय के जरिए प्रदेश की जमीन को लूटा है, वे अक्षम्य हैं, लेकिन व्यवस्था के पहरेदार ही अगर कातिल रहे, तो उन्हें क्या सजा मिली। जिस व्यवस्था को उदाहरण पेश करने थे, वह नाफरमानी गैंग को प्रश्रय देती रही है और इसीलिए अतिक्रमण हमारी आदत में शुमार है। ऐसे में सड़कों की एक बार तसल्ली से पैमाइश हो जाए, तो मौके पर पांव पसारे अनेक घर अवैध घोषित हो जाएंगे। गांव की कूहलों और शहर की नालियों पर अड्डा जमाए कितने ही खलनायक आज इसलिए नजर नहीं आते, क्योंकि यही वे प्रभावशाली लोग हैं जो धन व बाहुबल के अलावा राजनीतिक शक्ति का प्रमाणित स्रोत बन चुके हैं। माननीय अदालत ने फिलहाल पर्यटक स्थलों पर चाबुक चलाया है, तो ज्वालाजी तक के बाजार का अतिक्रमण टूट रहा है, लेकिन पूरे प्रदेश की मानसिकता में छिपा अतिक्रमणकारी आज भी कहीं न कहीं कायदे-कानूनों को धकियाने की हिमाकत कर रहा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App