जनता, विपक्ष और सरकार

By: Mar 22nd, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

बिहार और उत्तर प्रदेश उप चुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित विपक्ष गाल बजा रहा है, लेकिन जनता की भलाई के लिए कोई वैकल्पिक योजना या नीति का खुलासा नहीं कर रहा। क्यों? क्योंकि उसके पास कोई योजना है ही नहीं। समस्या जनता की है। देश में सरकार भी है, विपक्ष भी है, जनता भी है, लेकिन असल में न सरकार है, न विपक्ष है और न जनता है। सरकार गवर्न नहीं कर रही, विपक्ष के पास मुद्दा नहीं है और जनता की सुनवाई नहीं है…

चंद्रबाबू नायडू अंततः एनडीए से अलग हो गए। उन्होंने कई बार गुहार लगाई। धन के लिए प्रार्थना की, राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की, वादे होते रहे, हां-ना का दौर चलता रहा और अंततः नायडू समझ गए कि केंद्र में उनकी सुनवाई नहीं है और अब अलग होने का समय आ गया है। शिव सेना ने तो पहले ही 2019 का चुनाव स्वतंत्र रूप  से लड़ने का ऐलान कर दिया था, लेकिन नायडू की तेलुगु देशम पार्टी उद्धव ठाकरे की शिव सेना में एक मूल अंतर है। शिव सेना उगाही के लिए जानी जाती है और महाराष्ट्र में  पहली बार उसे छोटे भाई की भूमिका में आना पड़ा है। मुख्यमंत्री भाजपा का होने की वजह से उसकी चल नहीं रही है और भाजपा राज्य में अपने पैर मजबूत करती जा रही है। शिव सेना के लिए यह एक बड़ा खतरा है। भाजपा मजबूत होगी तो शिव सेना की उगाही के स्रोत सूख जाएंगे। उसे यह कैसे मंजूर हो सकता है। राजनीति के लबादे में शिव सेना एक माफिया संगठन है, लेकिन टीडीपी गुंडा पार्टी नहीं है। वह एक विशुद्ध राजनीतिक पार्टी है। आज हर दल में बाहुबली हैं। टीडीपी में भी हैं, लेकिन इससे पूरी पार्टी का चरित्र नहीं बदल जाता। इसलिए टीडीपी की विश्वसनीयता बरकरार है, सारी असफलताओं के बावजूद भी बरकरार है।

हालांकि, तेलुगु देशम और वाईएसआर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव से केंद्र सरकार को कोई खतरा नहीं है और यदि सभी विपक्षी दल और सहयोगी दल भी आपस में मिल जाएं, तो भी सरकार नहीं गिरेगी। पिछले सप्ताह में शुरुआत के दिन जब उत्तर प्रदेश की सरकार अपने एक साल की उपलब्धियों को लेकर जश्न मना रही थी, तो योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल सहयोगी दल ‘सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी’ के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने सरकार की खूब फजीहत की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरकार के सारे दावे खोखले हैं, पूरे प्रदेश में किसी एक भी गांव में सभी गरीबों के राशन कार्ड नहीं बने हैं, न ही लोगों को आवास मुहैया करवाया गया है। अपने विधानसभा क्षेत्र जहूराबाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार सड़कों को गड्ढामुक्त करने की बात करती है, लेकिन इस साल भर में पूरे जहूराबाद क्षेत्र में किसी एक भी सड़क का एक भी गड्ढा नहीं भरा गया है। कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद न मुख्यमंत्री उनकी बात सुनते हैं और न ही डीएम। उन्होंने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार बढ़ा है और हर काम की दरें निश्चित हैं। शौचालय के लिए, आवास के लिए, एफआईआर दर्ज करवाने के लिए अलग-अलग रेट हैं। पैसे दे दिए तो पात्रता की जरूरत नहीं है, काम हो जाएगा। राजभर ने आगे कहा कि मंदिर से किसी का पेट नहीं भरता। गरीबों को मंदिर नहीं, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और दवा चाहिए। मंदिर उन्हें चाहिए जिनका  पेट भरा है। इसके बाद जब दिल्ली में उनकी मुलाकात भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से हुई तब वे शांत हुए। लेकिन इससे पहले उन्होंने सरकार का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया। कश्मीर जल रहा है। आए दिन बंद होता रहता है। पुलिस, सेना, सरकार अलग-अलग सुरों में बात करती है। आतंकवाद से निपटने के लिए किसी के पास कोई योजना नहीं है। केंद्र और राज्य में एनडीए की सरकार है, लेकिन केंद्र कुछ और कहता है और राज्य सरकार किसी और भाषा में बात करती है। कश्मीर घाटी में जनता में आक्रोश है और उन्हें लगता है कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। अलगाववादियों पर नोटबंदी का असर न के बराबर है। हालात इतने बुरे हैं, कि महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद अनंतनाग सीट से त्याग पत्र को दो साल हो गए हैं, लेकिन सरकार वहां चुनाव करवाने तक की जुर्रत नहीं कर सकी। पुलिस और सेना के सहारे ही शासन चलाना हो तो फिर राष्ट्रपति शासन ही काफी था। संसद में वित्त विधेयक बिना किसी बहस के पास हो गया। राष्ट्रपति, राज्यपालों और सांसदों का वेतन बढ़ गया, जबकि नेशनल हैल्थ मिशन, शिशु स्वास्थ्य, किफायती आवास आदि को दिए जाने वाले बजट में कटौती कर दी गई है।

नरेंद्र मोदी का सारा ध्यान विभिन्न राज्यों में चुनाव जीतने पर लगा हुआ है, बाकी समय में वे विदेश चले जाते हैं। उनका कद इतना ऊंचा है, कि भाजपा में कोई उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं करता। मोदी यूं भी अपने तानाशाही स्वभाव के लिए मशहूर हैं। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी कहा जाता था कि उनके मंत्रिमंडल में एक से बीस तक खुद मोदी हैं और बाकी मंत्रियों का स्थान उसके बाद शुरू होता है। एक हीरेन पंड्या ने सरदारी की कोशिश की थी तो उन्हें जान से हाथ धोने पड़े। नारे देने, शब्द बाण चलाने और चुनाव जीतने के अलावा मोदी ने देश की मुख्य समस्याएं सुलझाने की ओर कम ही ध्यान दिया है। जिस स्मार्ट सिटी योजना की धमाके से घोषणा की गई थी, उसके लिए केंद्र की ओर से कोई पुख्ता योजना नहीं बनाई गई। मेक इन इंडिया, स्मार्ट पुलिस, नमामि गंगे, उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत अभियान आदि सब हवा में हैं। नोटबंदी की असफलता, जीएसटी की परेशानियां, किसानों की बेचैनी, व्यापम घोटाला और इससे जुड़ी हत्याएं, जयशाह घोटाला, बैंक घोटाला, बेराजगारी, सांसदों द्वारा गोद लिए गांवों में कोई भी विकास न होना, बड़े  पूंजीपतियों की अनैतिक तरफदारी, राफेल डील घोटाला आदि मामलों पर मोदी की चुप्पी की शिकायत भी पुरानी पड़ चुकी है। समस्या यह है कि विपक्ष का हाल इससे भी बुरा है। कांग्रेस का महाअधिवेशन समाप्त हो गया। कांग्रेसियों में जोश उमड़ रहा है। वे खुश-खुश घर लौट रहे हैं।

परंतु आम जनता  पसोपेश में है कि राहुल गांधी ने ऐसा क्या कह दिया कि कांग्रेसजन खुश हो रहे हैं? राहुल गांधी ने या किसी अन्य नेता ने नरेंद्र मोदी की आलोचना के अलावा ऐसा क्या कह दिया, जिससे यह लगे कि वे चुनावी हवा को बदल देंगे। मोदी की आलोचना तो वे शुरू से ही कर रहे हैं। इसमें नया क्या है? कोई रणनीति नहीं, कोई योजना नहीं, जनता के लिए कोई नया संदेश नहीं। यह अधिवेशन नहीं था, पिकनिक थी। बिहार और उत्तर प्रदेश उप चुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित विपक्ष गाल बजा रहा है, लेकिन जनता की भलाई के लिए कोई वैकल्पिक योजना या नीति का खुलासा नहीं कर रहा। क्यों? क्योंकि उसके पास कोई योजना है ही नहीं।

राज्य स्तर के राजनीतिक दलों के पास तो कार्यकर्ता हैं, कांग्रेस के पास तो कार्यकर्ताओं का भी टोटा है। कांग्रेस ऐसे सुविधाभोगी नेताओं का दल बन गया है, जिनका जमीन से रिश्ता ही नहीं है। समस्या जनता की है। देश में सरकार भी है, विपक्ष भी है, जनता भी है, लेकिन असल में न सरकार है, न विपक्ष है और न जनता है। सरकार गवर्न नहीं कर रही, विपक्ष के पास मुद्दा नहीं है और जनता की सुनवाई नहीं है। शासन में जनता की भागीदारी न होने का  परिणाम यह है, कि जनता नेगेटिव वोटिंग के लिए विवश है। यह चिंता का विषय है और देश और समाज को मिल कर सोचना चाहिए कि इस स्थिति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है। समय की मांग है कि जनता, विपक्ष और सरकार इस ओर ध्यान दें, तुरंत ध्यान दें। इसी में देश का भला है।

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