आओ देश को जिताएं

By: May 10th, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

जिन नेताओं ने बेईमानी से देश को लूटा है और अकूत संपत्ति बना ली है, उनके विरुद्ध कार्रवाई होना अच्छा है और जनता सदैव उसका स्वागत करेगी, लेकिन जानबूझ कर बेटी की शादी जैसे समारोह के समय विरोधियों पर छापे डलवा कर अपनी ईमानदारी के गाल बजाना सही नहीं है, वह भी तब, जब अपने दल के मुख्यमंत्रियों पर घोटाले के संगीन आरोप लगे हों और चुन-चुन कर गवाहों की हत्या की जा रही हो। कार्रवाई हो, अवश्य हो, लेकिन सब पर हो, सिर्फ विरोधियों पर नहीं, वरना आपकी ईमानदारी पर भी सवाल होंगे ही…

हमारे देश के राजनेता झूठे वादों और भ्रामक आंकड़ों के लिए जाने जाते हैं। वे किसी भी दल से हो सकते हैं। सच और झूठ का शोरबा बनाना, अधूरा सच बताना और झूठ को सच की तरह पेश करना उनका पसंदीदा शुगल है। पिछले कुछ दशकों में उनके इस शुगल में भड़काऊ बयान शामिल हो गए थे और हाल के कुछ वर्षों में अपने विरोधियों की इज्जत उतारने, उन्हें बुद्धिहीन सिद्ध करने और यहां तक कि उनकी देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाने का एक नया शुगल शुरू हुआ है। संसद में, विधानसभा में, जनसभाओं में और यहां तक कि न्यायालयों तक में हमारे राजनेता झूठ बोलना और झूठ बोलकर बच निकलना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। राजनेताओं का झूठ बोलना जितना शर्मनाक है, उससे भी ज्यादा परेशान करने वाला यह तथ्य है कि हम मतदाताओं की बड़ी संख्या न केवल इस झूठ को बर्दाश्त करती है, बल्कि झूठ बोलने वाले राजनेता की कुशलता की  प्रशंसा करती है। सन् 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही यह परंपरा लगातार चली आ रही है और अब यह अपने पूरे शबाब पर है। पिछले पांच-छह सालों में एक इतना सा फर्क और आया है कि झूठ गढ़ने और फैलाने के काम को संस्थागत स्वरूप दे दिया गया और इसके लिए बाकायदा एक बड़ी फौज तैयार की गई। परिणाम यह है कि समाज का आम आदमी ही नहीं, बल्कि संस्कारित बुद्धिजीवी भी न केवल भ्रामक समाचारों का शिकार बन रहे हैं, बल्कि झूठ को सच मानकर उसे आगे बढ़ाने में सहायक हो रहे हैं। कुछ लोग तो इस झूठ से इतने प्रभावित हैं कि यह पता लग जाने पर भी कि उनसे झूठ बोला गया है या उनके सामने झूठ परोसा गया है, वे उसे आगे बढ़ाने में संकोच नहीं करते हैं।

भड़काऊ बयान देना राजनेताओं का दूसरा शुगल है। जाति, धर्म, क्षेत्र, राज्य आदि की बात करके समाज को बांटना और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंककर अपनी नेतागिरी चमकाना भी योग्यता का पैमाना बन गया है। अपने आपको किसी धर्म का अनुयायी कहना गलत नहीं है, लेकिन शेष धर्मों का निरादर करना, उनके खिलाफ जहर उगलना गलत है। इन राजनेताओं का तीसरा शुगल बिलकुल नया है, इसकी शुरुआत हालांकि एक नेता ने की, पर यह इतना फैला कि अब सभी राजनीतिक दल और नेता इसके प्रयोग के लिए विवश हैं। इस नए हथियार ने राजनीति की दशा-दिशा ही बदल दी है। अपने विरोधियों की इज्जत का फलूदा करने, उन्हें बुद्धिहीन बताने तथा उनकी देशभक्ति पर अंगुली उठाने का यह नया हथियार बहुत खतरनाक है। तकनीक के प्रसार के कारण यह हथियार बहुत प्रभावी साबित हो रहा है और अब यह इंस्टीच्यूशनलाइज हो गया है, इसे एक संस्था का स्वरूप मिल गया है। एक बड़ी सेना रोज झूठ गढ़ने और उसे आगे फैलाने के काम के लिए तैनात है। सोशल मीडिया के प्रसार ने नेताओं के इस काम को आसान बनाया है। राजनीतिक सफलता के लिए ये हथियार शार्टकट का काम करते हैं और बहुत खतरनाक हैं। इसलिए इनकी रोकथाम के लिए चिंतन-मनन आवश्यक है। विज्ञान को लेकर हमेशा से यह बहस चलती रही है कि यह वरदान है या अभिशाप। चाकू तो वही होता है-एक डाक्टर चाकू की सहायता से किसी मरीज का आपरेशन करके उसका रोग ठीक करता है और एक अपराधी चाकू की सहायता से किसी की जीवन-लीला समाप्त कर देता है।

विज्ञान न वरदान है न अभिशाप, यह एक साधन है, ‘टूल’ है, औजार है, विज्ञान का प्रयोग करने वाला उसे वरदान या अभिशाप बनाता है। सोशल मीडिया भी एक औजार मात्र है, इसका  प्रयोग हम कैसे करें, यह हम पर निर्भर करता है। बीते शनिवार को केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि भारत के उन सभी गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, जहां आबादी है। लेकिन इसके सच को समझने के लिए हमें सरकार के आकलन के तरीके को समझना होगा। सरकारी नजरिया यह है कि यदि किसी गांव में सभी सार्वजनिक इमारतें और 10 प्रतिशत घर ग्रिड से जुड़े हों, तो उस गांव को विद्युतीकृत मान लिया जाएगा। सरकार की ओर से जब यह बताया जाता है कि सभी गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, तो यह नहीं बताया जाता कि बहुत से गांवों में 90 प्रतिशत तक घरों में बिजली न होने की बात छुपा ली गई है। सरकारी आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि दिसंबर 2017 तक गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और पंजाब में साल के 365 दिन, 24 घंटे बिजली रहती है। चौबीस घंटे बिजली के सच से ही आप समझ सकते हैं कि सरकारी आंकड़ों का खेल कितना सच्चा है और इसकी घोषणा एक सार्वजनिक मंच से खुद प्रधानमंत्री करते हैं। वे गर्वपूर्वक जनता को आधा सच परोसते हैं। एक राजनेता की दोस्ती का लाभ उठाकर कुछ अमीर घराने देश के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को हड़प रहे हैं और हम राजनीति में भ्रष्टाचार खत्म होने की बातें करते हुए तालियां बजा रहे हैं। जिन नेताओं ने बेईमानी से देश को लूटा है और अकूत संपत्ति बना ली है, उनके विरुद्ध कार्रवाई होना अच्छा है और जनता सदैव उसका स्वागत करेगी, लेकिन जानबूझ कर बेटी की शादी जैसे समारोह के समय विरोधियों पर छापे डलवा कर अपनी ईमानदारी के गाल बजाना सही नहीं है, वह भी तब, जब अपने दल के मुख्यमंत्रियों पर घोटाले के संगीन आरोप लगे हों और चुन-चुन कर गवाहों की हत्या की जा रही हो। कार्रवाई हो, अवश्य हो, लेकिन सब पर हो, सिर्फ विरोधियों पर नहीं, वरना आपकी ईमानदारी पर भी सवाल होंगे ही। धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण का स्तर यह है कि एक प्रदेश में कुछ बाबाओं को मंत्रिपद दे दिया गया है। उनकी योग्यता क्या है? वे प्रशासन में क्या योगदान देंगे? जहां छह माह बाद ही चुनाव होने वाले हों, वहां इस तरह की कवायद क्या दर्शाती है? यह जनता के धन के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है? गाय पालने में कुछ भी बुराई नहीं है, लेकिन गोरक्षा के नाम पर कानून हाथ में ले लेना, किसी की हत्या कर देना सरासर गलत है। भीड़ सिर्फ भीड़ है, वह अदालत नहीं है। किसी की हत्या तक कर देने का अधिकार जब भीड़ को दे दिया जाएगा, तो कानून व्यवस्था का दिवाला ही पिटेगा।

आज एक दल सत्ता में है, कल कोई दूसरा दल सत्ता में हो सकता है, किसी दूसरे धर्म का दल सत्ता में हो सकता है। अगर भीड़ को अदालत बना दिया जाए, तो स्थिति कितनी अराजक हो जाएगी, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। फेसबुक, व्हट्सऐप, ट्विटर आदि सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से फैलाए जाने वाले संदेश समाज में जो जहर फैला रहे हैं, उसे बयां करना कठिन है। समाज में कट्टरता को बढ़ावा देकर समाज को बांटा जा रहा है। दो दुश्मन सदैव दुश्मन ही रहते हैं और दुश्मनी में दोनों पक्षों का नुकसान होता है। दुश्मनी में हमेशा डर का माहौल बना रहता है और सुरक्षा सदा दांव पर होती है। ध्रुवीकरण और बंटवारे से किसी समाज का भला नहीं हो सकता। हमें समझना होगा कि झूठ का प्रसार या समाज का बंटवारा सिर्फ नेताओं को फायदा पहुंचाता है, जनता का तो नुकसान ही होता है। कोई भी नेता, चाहे वह किसी भी दल का हो, झूठ परोस रहा हो, समाज को बांट रहा हो, उसका बहिष्कार होना चाहिए। अब हमें जागना होगा, खुद जागना होगा, ताकि देश मजबूत बने और प्रगति कर सके। अगर हम चाहते हैं कि देश जीते, समाज जीते, तो यह हमें करना होगा। यह नेताओं की नहीं, हमारी जिम्मेदारी है।

ईमेलःindiatotal.features@gmail. com

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