मजाक बना लोकतंत्र
विनोद गुलियानी, बैजनाथ
कर्नाटक के चुनाव परिणाम आते ही लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाना जन प्रतिनिधियों के लिए आए दिन की बात हो गई है। गठजोड़ की बैसाखी द्वारा पोस्ट पोल अलाएंस द्वारा सरकार बनाने को वे पूर्णतः स्वतंत्र हो जाते हैं व रह जाते हैं परतंत्र तो केवल बेचारे वोटर। नैतिकता की दुहाई देने वालों के उच्च विचार चुनावी परिणाम के साथ ही छू मंतर हो जाते हैं। अपवाद तो 1982 में हिमाचल प्रदेश में देखा गया था, जब शांता कुमार ने 29 सीटें पाकर निर्दलीय छह में से तैयार बैठे दो विधायकों को साथ न लेकर 31 सीटों वाली कांग्रेस के लिए सत्ता की राह साफ कर दी थी। यह था नैतिकता का परिचय जो आज की राजनीति से विलुप्त है। आज के राजनेता तो येन केन प्रकारेण सत्ता सुख भोगना ही अपना लक्ष्य व धर्म मानते हैं, परंतु समय बड़ा बलवान है। हमारे कर्ताधर्ताओं को कम से कम यह कानून तो सर्वसम्मति से बना ही लेना चाहिए कि पोस्ट पोल अलाएंस भविष्य में मान्य नहीं होगा।
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