भारत को बैल्ट रोड से जुड़ना चाहिए

By: Aug 14th, 2018 12:10 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

अतः हमें कोई युक्ति निकालकर भारत को भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव से जोड़ना चाहिए, जिससे हमारा माल भी यूरोप तथा अफ्रीका उतनी ही आसानी से पहुंच सके, जितना कि चीन का माल पहुंच रहा है। एक संभावना यह है कि भारत चीन पर दबाव डाले कि पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर के बीच से भारत को भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव से जोड़ने की सड़क उपलब्ध करवाई जाए। यानी भारत का माल कश्मीर, फिर पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर,  फिर अफगानिस्तान के रास्ते बैल्ट रोड के माध्यम से अफ्रीका तथा यूरोप पहुंच सके…

पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान ने पूर्व में चीन द्वारा बढ़ाए गए बैल्ट रोड इनिशिएटिव का विरोध किया था, लेकिन अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने उसी बैल्ट रोड का समर्थन किया है। उनका पलटी खाना यह दिखाता है कि बैल्ट रोड पाकिस्तान के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है। बैल्ट रोड योजना में चीन से हिंद महासागर तक पाकिस्तान एवं पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगिट क्षेत्र के मध्य से रेल तथा रोड लाइनों का नया नेटवर्क बनाया जाएगा, जिससे चीन का माल हिंद महासागर आसानी से पहुंच सके। इस कार्य के लिए पाकिस्तान की सरकार भारी मात्रा में धन खर्च कर रही है। पाकिस्तान के राजस्व का बड़ा हिस्सा बैल्ट रोड में लगने के कारण शेष खर्चों को वहन करने के लिए पाकिस्तान के पास राजस्व नहीं है। इमरान खान ने संकेत दिए हैं कि वह धन की इस कमी की पूर्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से भारी ऋण की पेशकश करेंगे, लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मुद्राकोष द्वारा पाकिस्तान को दिए जाने वाले ऋण को चीन की सहायता के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि मुद्राकोष द्वारा दिए गए ऋण का उपयोग बैल्ट रोड बनाने में किया जाएगा, जिसका अंततः लाभ चीन को होगा जो कि अमरीका का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है। अतः पाकिस्तान को चीन तथा अमरीका के बीच में कठिन रास्ता निकालना है। पूर्व के अनुभव को देखते हुए हम यह मान सकते हैं कि पाकिस्तान अपने इस मंसूबे को पूरा करने में सफल होगा और बैल्ट रोड इनिशिएटिव को बनाना जारी रहेगा।

बैल्ट रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत चीन से यूरोप तथा अमरीका तक माल ले जाने का भी एक सुगम मार्ग बनाया जाएगा। इससे चीन में बने माल को अफ्रीका तथा यूरोप तथा पहुंचाने का खर्च कम पड़ेगा। अमरीका की तुलना में चीन की प्रतिस्पर्धा शक्ति बढ़ेगी। अमरीका के माल को यूरोप में पहुंचाना पूर्ववतः समुद्री जहाजों से कठिन रहेगा, जबकि चीन का माल बैल्ट रोड के माध्यम से अफ्रीका तथा यूरोप कम खर्च में पहुंच जाएगा। भारत के लिए यह प्रकरण कठिन चुनौती प्रस्तुत करता है। भारत ने बैल्ट रोड का विरोध इस बिंदु पर किया है कि उसका एक हिस्सा गिलगित के पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर के मध्य से गुजरता है। इसे भारत अपनी संप्रभुता पर आक्रमण मान रहा है, जो कि सही है। भारत का विरोध राजनीतिक दृष्टि से उचित है, लेकिन बैल्ट रोड के बनने से चीन के माल का अफ्रीका और यूरोप को पहुंचना आसान हो जाएगा, परंतु भारत के माल का उन्हीं देशों को पहुंचना पूर्ववतः कठिन रह जाएगा। हम चीन से प्रतिस्पर्धा करने में उसी प्रकार पीछे हो जाएंगे, जिस प्रकार अमरीका पीछे हो जाएगा। अतः हमें कोई युक्ति निकालकर भारत को भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव से जोड़ना चाहिए, जिससे हमारा माल भी यूरोप तथा अफ्रीका उतनी ही आसानी से पहुंच सके, जितना कि चीन का माल पहुंच रहा है और हमारी प्रतिस्पर्धा शक्ति में कमी न आए।

एक संभावना यह है कि भारत चीन पर दबाव डाले कि पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर के बीच से भारत को भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव से जोड़ने की सड़क उपलब्ध करवाई जाए। यानी भारत का माल कश्मीर, फिर पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर,  फिर अफगानिस्तान के रास्ते बैल्ट रोड के माध्यम से अफ्रीका तथा यूरोप पहुंच सके। ऐसा हो जाने से भारत की प्रतिस्पर्धा शक्ति बढ़ जाएगी और भारत को भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव का लाभ मिलेगा। यहां बताते चलें कि भारत द्वारा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बैल्ट रोड का विरोध किया जा रहा है, जो कि चीन के लिए एक समस्या है। विशेषकर ब्रिक्स देशों द्वारा बनाए गए न्यू डेवलपमेंट बैंक में भारत की अच्छी पैठ है। इस बैंक द्वारा भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव के लिए ऋण दिया जा रहा है। भारत चीन पर दबाव डाल सकता है कि न्यू डेवलपमेंट बैंक तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह बैल्ट रोड का विरोध करना बंद कर देगा, यदि चीन पाकिस्तान पर दबाव डाले कि पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर के मध्य से भारत को बैल्ट रोड से जुड़ने का रास्ता उपलब्ध कराया जाए। चीन के साथ संबंध को हमें दो मायनों में देखना चाहिए। आज विश्व की 75 फीसदी जनता भारत, चीन तथा अन्य विकासशील देशों में रहती है, जबकि इनके पास विश्व की केवल 25 फीसदी आय है। दूसरी तरफ यूरोप, जापान और अमरीका में केवल 25 फीसदी जनता रहती है, जबकि इनके पास 75 फीसदी आय है। इसलिए बैल्ट रोड के माध्यम से चीन और पूर्वी एशिया के अन्य देशों का उठना मूलतः वैश्विक असंतुलन को ठीक करने की तरफ एक सार्थक कदम है। लेकिन दूसरी तरफ हमारा चीन के साथ जो पाकिस्तान ओक्युपाइड कश्मीर का मसला है, वह हमें इस योजना से जुड़ने से रोक रहा है। अतः भारत का प्रयास होना चाहिए कि विकासशील देशों के बड़े हित को साधने के लिए जरूरत हो तो छोटे सामरिक हितों का रास्ता निकालकर अपने आर्थिक हित को साधना चाहिए। मैं मानता हूं कि बैल्ट रोड से अपने को अलग रखकर भारत अपने को यूरोप तथा अफ्रीका के बाजार से दूर कर लेगा, जो कि अंततः भारत की मेन्युफैक्चरिंग एवं कृषि क्षेत्रों के लिए बहुत ही हानिप्रद सिद्ध होगा।

भारत एक और कार्य कर सकता है। हमारी महारथ सेवा क्षेत्र में है, जैसे-काल सेंटर, लीगल रिसर्च, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन इत्यादि। इन सेवाओं का हमें वैश्विक पाथ-वे बनाना चाहिए, उसी प्रकार जिस प्रकार चीन उत्पादित माल का वैश्विक पाथ-वे बैल्ट रोड के माध्यम से बना रहा है। उत्पादित माल को सड़क के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। इसलिए बैल्ट रोड बनाना जरूरी था, लेकिन सेवाओं को इंटरनेट से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। अतः भारत को चाहिए कि इंटरनेट का वैश्विक पाथ-वे बनाने का प्रयास करे। इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने में सुरक्षा आदि के विभिन्न पहलू हैं, जिनको हल करके भारत को एक ग्लोबल इंटरनेट पाथ-वे बनाना चाहिए। यह चीन के बैल्ट रोड के सामने हमारी सेवाओं की प्रतिस्पर्धा शक्ति में सुधार करेगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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