कोरोना काल में छात्रों का मार्गदर्शन: डा. ओपी शर्मा, पूर्व निदेशक, शिक्षा

By: डा. ओपी शर्मा, पूर्व निदेशक, शिक्षा Aug 13th, 2020 12:06 am

डा. ओपी शर्मा

पूर्व निदेशक, शिक्षा

छात्रों को शारीरिक क्षमता बनाए रखने के लिए शारीरिक कार्यकलाप करने होंगे। बच्चों को हॉबीज सीखनी चाहिए। इसमें संगीत, प्रश्नोत्तरी, नृत्य, नाटी, नाटक, भजन-कीर्तन, योग, अंताक्षरी, क्विज, सामान्य ज्ञान लेख-लेखन, कहानी, कविता, गीत, गजल, लोककथाएं, लोकोक्तियां, मुहावरे, लोरी, देवी-देवताओं की किंवदंतियां, हरीशचंद्र, प्रह्लाद, शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी झांसी, विवेकानंद आदि की चरित्र जीवनियां सुनाना आदि द्वारा छात्रों को व्यस्त कर ज्ञानवर्धन व गुण हुनर का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। छात्रों को खेल भी खेलाया जा सकता है…

छात्रों का सर्वांगीण विकास करना सरकार की मुख्य जिम्मेवारी है। इस कड़ी में प्रारंभिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा व युवा कार्यकलाप-खेल गतिविधियां आती हैं। शिक्षा के साथ-साथ खेल व युवा गतिविधियों का महत्त्व जगजाहिर है। खेल के बिना शिक्षा अधूरी है और गीत-संगीत के बिना युवा विकास अपूर्ण है। कोरोना काल में लोगों को घर पर रहने की मजबूरी हो गई है। 23 मार्च से देश में लॉकडाउन लगा था। उसके बाद केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार ने विभिन्न आदेशों से कई प्रतिबंध लगाए हैं, जिस कारण मुख्यतः स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान, खेल स्टेडियम, मनोरंजन स्थान, सिनेमा हॉल, सार्वजनिक बैठकें, समारोह इत्यादि बंद हैं। लोगों को, विशेषकर बच्चों को घर में रहकर समय बिताना पड़ रहा है।

 इसका कारण कोरोना महामारी का सारे देश में फैलना और बीमारों की संख्या बढ़ना है। इस परिस्थिति में लोगों व बच्चों को घर से बाहर निकलना बीमारी को बुलावा देना है। यह बीमारी बढ़ ही रही है, इसलिए बचाव रखना जरूरी है। लॉकडाउन से लोगों को, विशेषकर बच्चों को घर के अंदर रहने की आदत पड़ने लगी है। घर के बड़े तो कुछ न कुछ काम करते रहते हैं, परंतु छात्रों की परेशानी अभिभावकों की समस्या है कि बच्चों को किस प्रकार व्यस्त रखा जाए। ऑनलाइन क्लासें तो स्कूल, कॉलेज का विकल्प है, परंतु यह भी सटीक साधन नहीं है।

विषय विचारणीय है कि पढ़ाई के अलावा स्कूल में छात्रों को कई गतिविधियों में संलग्न कर बहुत कुछ सीखने को मिलता है। परंतु लॉकडाउन में इन गतिविधियों से वंचित रहने से कुछ अद्भुत स्थिति में है जिससे मानसिक तौर पर परेशान हैं। छात्रों को शारीरिक क्षमता बनाए रखने के लिए शारीरिक कार्यकलाप करने होंगे। बच्चों को हॉबीज सीखनी चाहिए। इसमें संगीत, प्रश्नोत्तरी, नृत्य, नाटी, नाटक, भजन-कीर्तन, योग, अंताक्षरी, क्विज, सामान्य ज्ञान लेख-लेखन, कहानी, कविता, गीत, गजल, लोककथाएं, लोकोक्तियां, मुहावरे, लोरी, देवी-देवताओं की किंवदंतियां, हरीशचंद्र, प्रह्लाद, शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी झांसी, विवेकानंद आदि की चरित्र जीवनियां सुनाना आदि द्वारा छात्रों को व्यस्त कर ज्ञानवर्धन व गुण हुनर का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। छात्रों को खेल भी खेलाया जा सकता है। जैसे चैस, बैडमिंटन, सांप सीढ़ी, लुड्डो, रस्सा टप्पी, रेस लगाना, गोला फैंकना, जम्प, उछलकूद, जोगिंग, व्यायाम, योग, कदमताल, डंड बैठक, पैदल चलना, प्रातः-सांय एक-दो किलोमीटर चलना आदि से शारीरिक कार्यवाही से स्वास्थ्य सुधरता है व मानसिक संतुष्टि होती है। कैरम और चैस खेलों से दिमाग में वृद्धि होती है। खाना बनाना हॉबी भी है, हुनर भी है और अकेले रहने वाले मनुष्य की सख्त जरूरत है।

आजकल होटल, रेस्टोरैंट, मैस, किचन बंद होने से बाजार में खाना उपलब्ध नहीं है। इसलिए हरेक व्यक्ति को स्वयं खाना बनाना आना चाहिए। स्वयं आहार बनाने से संतुष्टि मिलती है। सब्जी, दाल, फल, रोटी, चावल, दूध, मनभावन आहार मिल सकता है जिससे मन को संतुष्टि और स्वास्थ्य में सुधार होता है। घर पर काम वाली नहीं आ रही है। बच्चों को माता जी के साथ घरेलू साफ-सफाई में साथ देना चाहिए ताकि बड़े होकर वे ऐसी स्थिति में अकेले रह सकें। घर पर कपड़े धोने, किचन गार्डन में फूल-सब्जी लगाने में सहयोग करना ही शारीरिक क्षमता बढ़ाने में सार्थक है। छात्रों को हुनर बढ़ाने के लिए व स्वावलंबी बनने के लिए खुश होकर अपनी मर्जी से कुछ कार्य सीखने चाहिए ताकि समझ, शिक्षा का ज्ञान, सृजनात्मक गतिविधियों में संलग्न कर उन्हें रोजाना जीवन यापन में सहायक हो।

छात्रों विशेषकर लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई, हस्तशिल्प, कशीदाकारी, बुनाई, सिल्मा तिल्ला, खिलौने बनाना, टैडीबियर, ब्यूटीशियन का काम, सिले कपड़ों का अल्टरेशन, इंटरलॉक, पाईपिंग, एडिशन अल्टरेशन का काम सीखकर अपने को व्यस्त कर सकते हैं और शारीरिक दक्षता भी हो जाती है। इसके अतिरिक्त छात्र-छात्राएं आम पापड़, बडि़यां, अमचूर, जैम, मुरब्बा, चटनी, जैली, सेवियां, कतीरा बनाना सीख सकते हैं। हर व्यक्ति को, छात्रों को नब्ज देखना, बीपी चैक करना, बुखार देखना, प्राथमिक स्वास्थ्य सहायता देने जैसी चीजें सीखनी चाहिए। घर पर बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी यह जानकारी प्राप्त कर गांव, मुहल्ले के लोगों की सहायता कर सकते हैं। स्वच्छ हवा, शुद्ध वातावरण का महत्त्व बच्चे जानें तो मलेरिया, डेंगू से बचाव करने में सहायक होगा।

छात्रों को साथियों व बड़ों के साथ गली-मुहल्ले, गांव में साफ-सफाई, झाडि़यों की कटाई, युवाओं के साथ मिलकर वृक्षारोपण, रक्तदान शिविर, कोरोना मरीजों की सहायता, गरीब मजदूरों के लिए राशन, मास्क, सेनेटाइजर, साबुन जैसे वितरण में सहयोग करना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पैदल चलें। राशन, सब्जी, दूध लेने शहर, दुकान पर स्वयं जाएं। लेखन का अभ्यास, विभिन्न विषयों पर प्रस्ताव, लेखन जिसका पढ़ाई पाठयक्रम से संबंध हो, सहपाठियों से विचार-विमर्श कर लिखें। कई विभाग व समाजसेवी संस्थाएं आलेख, प्रस्ताव, लेखन प्रतियोगिताएं करते हैं, उसमें भाग लें। कॉलेज छात्र आकाशवाणी, समाचार पत्र में आलेखों पर प्रतिक्रिया भेजें। समाचार पत्रों में साधारण ज्ञान प्रतियोगिता में भाग लें।

युवक जो शहरों में रहते हैं, उन्हें खेती-बाड़ी, बागवानी में स्वयं कार्य करना चाहिए। आजकल बाहरी मजदूरों की कमी है। इसलिए अपने खेत व बाग खुद संवारें। अपनी मिट्टी से जुड़ेंगे तो हमारी भूमि, गांव व समाज खुशहाल होगा। स्वयं स्वस्थ रहें। मानसिक बोझ कम होगा। मानसिक संतुलन बना रहेगा। अभिभावक व बच्चे प्यार से, आनंद से स्वच्छ प्रसन्नचित वातावरण में रहें। यह अवसर पुरुष, महिला, पति-पत्नी, भाई-बहन का इकट्ठा रहने का सुंदर समय है।


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