विचार

अदालत के समक्ष हिमाचल की चिंताओं की व्याख्या और समाधानों का रिश्ता बराबर पनपता है। मसले भविष्य के हों, विकास के हों या पर्यावरणीय कसौटियों एवं कर्मचारी हितों से जुड़े हों, अदालत का सफर सदियों को मापता प्रतीत होता है। अदालत को ग्रामीण परिदृश्य में कचरा प्रबंधन की चिंता है, तो पर्यटन विकास निगम को घाटे से उबारने का रास्ता दिखाना भी आवश्यक लगता है। ठोस कचरा निस्तारण की व्यवस्था में पंचायतों को जिम्मेदार बनाने हेतु माननीय अदालत ने पंचायती राज कानून को नए परिप्रेक्ष्य में सार्थक बनाने के लिए बदलाव करने का सुझाव दिया है। पंद्रहवें वित्तायोग की मदद व निर्देशन में पंचायत स्तर तक स्वच्छता अभियान की व्याख्या में शौचालय व्यवस्था व कचरा प्रबंधन के जो वित्तीय प्रावधान किए गए हैं, उनके ऊपर अमल करने की हिदायतें अब

नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर 50000 से अधिक नगरपालिकाओं में प्लास्टिक कचरे पर नजर रखने के लिए उन्नत एआई मॉडल का इस्तेमाल किया गया। प्रकृति का सबसे बड़ा खजाना नदियों को शुद्ध रखने के प्रयासों की कमजोर हालत के कारण वे दिन दूर नहीं, जब देश में जल संकट और गहरा होगा...

सागर मंथन से उत्पन्न विलक्षण गुणों वाली ‘कामधेनु’ जैसी मुकद्दस गाय के धर्मपरायण देश भारत में हरदम विनम्र स्वभाव की दुधारू गाय पालने से मोहभंग होना तथा गौधन की दुर्दशा का कारण क्या पश्चिमी शिक्षा व तहजीब का प्रभाव है, यह मंथन का विषय है...

नेताजी की ईमानदारी का डंका बज रहा है और सिर्फ मीडिया में बज रहा है। मीडिया बता रहा है कि नेताजी कट्टर ईमानदार हैं। कोई गिफ्ट लेकर आ जाता है तो उसे हडक़ा देते हैं और फिर खबर छप जाती है कि नेताजी की ईमानदारी देखकर गिफ्ट लाने वाले की सिट्टी पिटी गुम हो गई। पब्लिक कंफ्यूज हो जाती है। पब्लिक में चर्चा शुरू हो जाती है कि क्या नेताजी ने अपने घर के दरवाजे पर सिक्योरिटी कर्मी की बजाय मीडिया का कैमरा फिट कर रखा है जो गिफ्ट लाने वाले की भाव भंगिमा देखता है और फिर नेताजी का रिएक्शन देखता है। नेताजी को गिफ्ट खोलते देखता है और फिर गिफ्ट लाने वाले को घूरते हुए देखता है। फिर खबर प्रचारित कर देता है कि नेताजी ने महंगा गिफ्ट देखकर आग उगल दी। उनकी ईमानदारी डंके की चोट पर भ्रष्टाचार पर चोट करने ल

अगर देश में कोई भी खाने की चीज, वो भी गरीब से गरीब के लिए भी रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली हो, महंगी हो जाए तो सरकारों को उसकी कीमत कम करने के उपाय प्राथमिक आधार पर करने चाहिए। विकास के वादे और दावे तब तक खोखले माने जा सकते हैं, जब तक देश में पैदा होने वाली चीजें महंगी होंगी। अब तो सरकारों को प्याज की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए कुंभकर्णी नींद से जाग जाना चाहिए, क्योंकि कुछ राज्यों में इसकी कीमतें 100 रुपए के आसपास होने की खबरें भी आने लग पड़ी हैं।

क्या हिमाचल सरकार बढिय़ा प्रशिक्षकों को यहां लगातार कई वर्षों के लिए अनुबंधित कर प्रदेश के खिलाडिय़ों को राज्य में ही प्रशिक्षण सुविधा दिला कर खेल प्रतिभा का पलायन रोक सकती है...

सुशासन की सियासी तीमारदारी के स्तंभ कमोबेश हर सत्ता के कक्ष से निकले और इन करवटों ने हिमाचल के भौगोलिक नक्शे पर कई प्रयोग किए। ताजा प्रयोग देहरा में मुख्यमंत्री कार्यालय का प्रवेश द्वार है। इससे पहले नादौन में मुख्यमंत्री का कैंप आफिस, सुशासन के अपने तरीके खोज लाया। हिमाचल के शासन में भौगोलिक खींचतान हमेशा रही है और इसी से निकले हैं कई प्रयोग। खास तौर पर पंजाब पुनर्गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में भौगोलिक सीमाओं को पढ़ते-पढ़ते कहीं न कहीं ऊपरी व निचले हिमाचल के वित्तीय विभेद सामने आए और इस रस्साकशी से उपजे विवादों से अलग होने की कोशिश हुई। स्व. वाई एस परमार के दौर से सुखविंदर सुक्खू के आधार तक पहुंचते-पहुंचते हिमाचल की करवटें अपने गीत सुनाती रहीं। स्व. ठाकुर रामलाल ने

इतनी विवेचना के बाद भी मेरा कहना है कि शहजाद पूनावाला जो कह रहे हैं कि पसमांदा होने के कारण उनसे मुसलमान भेदभाव कर रहे हैं, वह शत-प्रतिशत सही है। बस फर्क इतना ही है कि पूनावाला को लगता है कि तथाकथित छोटी जातियों से इस्लाम में चले जाने वाले देसी मुसलमानों से ही भेदभाव किया जाता है। जमीनी असलियत यह है कि अरब मूल के सैयदों व शेखों के लिए हर देसी मुसलमान पसमांदा ही है, चाहे वह ब्राह्मण या राजपूत, पश्तून या बलोच बिरादरी से ही इस्लाम पंथ में क्यों न गया हो। उनके लिए क्या पठान, क्या ‘बिरहमन’, सब दोयम दर्जे के ही हैं। यह अलग बात है कि पश्तून या ब्राह्मण सैयदों या शेखों के बराबर बैठने की बचकानी हरकतें करते रहें...

सुबह-सुबह को बुलाया था मुख्यमंत्री ने, बोले-‘देखो हम सडक़ें चौड़ी कर रहे हैं। आवागमन सुविधाजनक होता जा रहा है।’ मैंने कहा-‘सडक़ें ही क्यों, पुल बन रहे हैं और नए-नए फ्लाईओवर। शहर को आपने चमाचम कर दिया है। बिजली अबाधित है। थोड़ा सा गांवों पर भी ध्यान दें तो अगले चुनाव में नौका आसानी से किनारे जा लगेगी।’ मेरी बात पर थोड़ा झुंझलाए, फिर सहज होकर बोले-‘गांवों की और चुनावों की चिंता तुम छोड़ो। मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया था कि तुमने देख लिया कि राजधानी में विकास किस गति से गतिमान है।’ मैं बोला-‘विकास की मत पूछिये। इसके नाम पर तो आपने गंगा बहा दी है। अतिक्रमण की समस्या लगभग समाप्त हो गई है। थोड़ा सा हाउसिंग सोसाइटीज पर ध्यान दे लेते तो और उत्तम रहता।’ वे फिर बोले-‘हाउसिंग सोसाइटीज को मारो गोली। वि