विचार

इंसानों द्वारा किए जा रहे हवन के धुंए से प्रसन्न या कुपित होकर इंद्रदेव ने खूब पानी सप्लाई कर दिया। कई दुकानों में तो अन्दर तक पानी भर गया। दुकानदारों ने म्युनिसिपल कमेटी में फोन किया तो समझाया गया कि कुछ कर्मचारी छुट्टी पर हैं, बाकी शहर को हरा भरा बनाने के लिए वृक्षारोपण में

सत्ता के लिए यह रास्ता राजनीतिक दलों को ज्यादा आसान लगता है। जरूरतमंदों के लिए योजनाएं बना कर क्रियान्वित करना टेड़ी खीर है। भ्रष्टाचार के कारण योजनाओं का लाभ पिछड़े और दलितों तक नाममात्र का पहुंच पाता है। यही वजह भी है कि आरक्षण के साथ ही राजनीतिक दल चुनाव के दौरान धनबल से अपने

जितना संभव हो, उतने पेड़-पौधे लगाकर उनका संरक्षण करने का भाव मन में जागृत होना आवश्यक है। अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने के प्रयास करें, प्लास्टिक का उपयोग करने से बचें और दूसरों को भी जागरूक कर पुनीत कार्य के भागीदार बनना चाहिए। हवा में जहरीली लहरें बह रही हैं। जहरीली

संत कबीर जी की जयंती इस बार चार जून को है। हमारे देश में बहुत से साधु-संत हुए हैं जिन्होंने अपनी शिक्षाओं और उपदेशों से समाज को एक नई और अच्छी दिशा दी है। इन्हीं संतों में से एक संत थे संत कबीर जी। उन्होंने दोहों के रूप में इंसान को जो शिक्षाएं दी हैं,

भारत और नेपाल के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रहे हैं, लिहाजा रोटी और बेटी के रिश्ते स्वाभाविक हैं। नेपाल प्राचीन ‘अखंड भारत’ का ही एक हिस्सा था, लेकिन अब नेपाली राजनीतिज्ञ और आम नागरिक भी इस ‘ऐतिहासिकता’ से चिढ़ते हैं। अब मानचित्र के आधार पर भी रिश्तों के विश्लेषण किए जा रहे हैं। बल्कि

पंजाब पुनर्गठन के कई सुराख अब सामने आ रहे हैं और इस तरह हरियाणा और हिमाचल उस दौर की निगाहों से पुन: अपने हक देख रहे हैं। मामला शिकायतों तक रहा या सरकारें केवल मसले को धकियाती रहीं, इसलिए पुनर्गठन के अनुपात बिखरते रहे। समय ने इसी समझौते की खाल उस समय खींची जब उत्तर

पंजाबी में एक कहावत है ‘डिगी खोते तों ग़ुस्सा घुमार ते’। अर्थात कोई औरत गधे पर से गिर पड़ी तो वह सारा ग़ुस्सा कुम्हार पर निकालने लगी। इन राजवंशों के सिंहासन भारत के लोगों के नकारने से हिल रहे हैं और ये ग़ुस्सा नरेन्द्र मोदी पर निकाल रहे हैं। इस बार यह ग़ुस्सा भारतीय संसद

प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान के अजमेर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए दावा किया है कि भारत में ‘अति गरीबी’ खत्म होने के बहुत निकट है। यह राजनीतिक और चुनावी बयान भी साबित हो सकता है। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर चुनाव जीत लिया था। देश में

एक बार फिर पौंग जलाशय पर्यटन की उम्मीदों से भर रहा है। अपने अस्तित्व की मिट्टी पर विस्थापन का दर्द लिए विश्व का यह भूभाग टुकर-टुकर देखता रहा, लेकिन न इसे समझा गया और न ही इसकी धडक़नें सुनी गर्इं। यह अनूठा बलिदान इतिहास के लिए लिखा गया होता, तो विस्थापितों की बोली लगाने के