हिमाचली शिक्षा में श्रेष्ठता के विकल्प

By: —सूत्रधारः पवन कुमार शर्मा, नरेन कुमार Aug 19th, 2020 12:06 am

शिक्षा और समानता का अधिकार हमें विश्व में संवैधानिक तौर पर श्रेष्ठ बनाता है, परंतु शिक्षा की श्रेष्ठता की पहचान प्रतियोगी परीक्षाएं करवाती हैं। किसी भी प्रतियोगिता में हम अपनी श्रेष्ठता बेहतर अध्यापन, अध्ययन और मूल्यांकन से साबित कर सकते हैं। पुराने ढर्रे पर चल रही हिमाचली शिक्षा में क्या हैं श्रेष्ठता के विकल्प, क्या हैं छात्रों की नई जरूरतें , क्या बदलाव से आएगी गुणवत्ता, किस तरह आगे हैं अन्य बोर्ड। इन सभी अहम सवालों के जवाबों के साथ पेश है इस बार का दखल

—सूत्रधारः पवन कुमार शर्मा, नरेन कुमार

हिमाचल में तीनों बोर्डों की अलग-अलग स्थिति देखें तो प्रदेश में इस वक्त सीबीएसई बोर्ड के 205 स्कूल हैं, जिनमें चार लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। एचपी बोर्ड से मान्यता प्राप्त साढ़े 16 हजार स्कूलों में आठ लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। आईसीएसई के 28 स्कूलों में 60 हजार छात्र हैं।

हिमाचल में तीन बड़े स्कूल शिक्षा बोर्डों से हर साल हजारों छात्र परीक्षा देकर आगे निकलते हैं। सीबीएसई और आईसीएसई के छात्र प्रदेश के साथ-साथ दूसरे राज्यों को भी मैरिट में मात देते हैं, पर प्रदेश का शिक्षा विभाग व अन्य संस्थाएं केवल अपने बोर्ड के छात्रों को ही सम्मानित करते हैं, पुरस्कृत करते हैं, स्कॉलरशिप देते हैं। इसे अन्य बोर्डों के तहत शिक्षा ग्रहण कर प्रदेश ही नहीं, देश भर में अव्वल रहने वाले मेधावी छात्र भेदभाव भरा व्यवहार मानते हैं। शिक्षा महकमे ने कभी विचार नहीं किया कि प्रदेश के सभी मेधावी छात्रों को एक ही नजर से देखा जाए। सूबे के अनेक ही छात्र अन्य बोर्डों के माध्यम से देश भर में अपना स्थान बनाते हैं, लेकिन महकमे ने ऐसे छात्रों के लिए अलग से योजना बनाने बारे भी नहीं सोचा, जिससे यह छात्र निराश न हों। प्रदेश में सीबीएसई, एचपी बोर्ड और आईसीएसई सहित अन्य बोर्डों के तहत पंजीकृत स्कूलों से शिक्षा ग्रहण करते हैं। एचपी बोर्ड के छात्रों के लिए तो कई योजनाएं बनती हैं, लेकिन उनमें अन्य बोर्डों से बेहतर स्थान बनाने वाले छात्रों को शामिल नहीं किया जाता, जिससे यह छात्र अपने को अलग समझने लगते हैं।

टॉपर्स को दी जाए कोचिंग

प्रदेश में इस बात पर भी अध्ययन करने की आवश्यकता है कि मैरिट होल्डर बच्चे कर क्या रहे हैं। बोर्ड परीक्षा पास करने के बाद वे अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों में जाते हैं, लेकिन कहीं टॉपर छात्रों को प्रतियोगी पारीक्षाओं में आगे बढ़ने के लिए भी अभी तक किसी स्तर पर विशेष प्रयास नहीं हो पाए हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड इस दिशा में योजना कर रहा है कि आने वाले समय में प्रदेश भर के टॉपर्स को कोचिंग देने का प्रावधान किया जाए, जिसमें मैरिट के आधार पर सभी छात्रों को स्थान मिल सके। हिमाचल से बाहर के बोर्डों में इस समय कितने बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। किस बोर्ड में कितने कितने छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस तरह का डाटा शिक्षा विभाग तैयार करे, तो प्रदेश के सभी छात्रों को सामान सुविधाएं देना आसान होगा।

कितने डीसी-एसपी एचपी बोर्ड से पास आउट

कक्षा के नतीजों में ऊंचाइयां छू रहे एचपी बोर्ड का एक और पहलू देखें तो इस बोर्ड से पढ़े कई छात्र उच्च पदों पर आसीन हैं। वर्तमान में प्रशासनिक अधिकारियों की शैक्षणिक योग्यता की तरफ नज़र दौड़ाएं, तो अधिकतर अफसर हिमाचल से ही पढ़े हैं और उनमें से ज्यादातर ने दसवीं हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड से पास की है। सोलन के डीसी केसी चमन एचपी बोर्ड से दसवीं करके इस पद पर आसीन हैं, वहीं किन्नौर के डीसी और एसपी दोनों ही एचपी बोर्ड से पास आउट हैं। किन्नौर के जिलाधीश गोपाल चंद व एसपी एसआर राणा प्रदेश बोर्ड से ही पढ़े हैं।

इसके अलावा कांगड़ा के एसपी विमुक्त रंजन ने जमा दो तक की पढ़ाई हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड से की है। वहीं, सिरमौर के एसपी अजय कृष्ण शर्मा की दसवीं भी एचपी बोर्ड से ही हुई है। अन्य अफसरों की बात करें तो सोलन के एसपी अभिषेक यादव सीबीएसई बोर्ड आर्मी स्कूल झांसी से पास आउट हुए हैं। वहीं, बिलासपुर के डीसी राजेश्वर गोयल ने सीबीएसई बोर्ड के तहत सेंट मेरी स्कूल कसौली से दसवीं की पढ़ाई पूरी की है। वहीं, बिलासपुर के एसपी दिवाकर शर्मा ने केंद्रीय विद्यालय योल कैंद से दसवीं पास की है। कुल्लू की डीसी डा. ऋचा वर्मा अंबाला से, जबकि एसपी गौरव सिंह आगर से पास आउट हैं। वहीं, चंबा की एसपी मोनिका भुटूंगरू आईसीएसई, जबकि डीसी विवेक भाटिया सीबीएसई बोर्ड से पास आउट हैं।

1969 में शुरू हुआ एचपी बोर्ड

हिमाचल प्रदेश में स्कूल शिक्षा बोर्ड की स्थापना वर्ष 1969 में हिमाचल प्रदेश एक्ट नंबर-14, 1968 के तहत की गई थी। स्कूल शिक्षा बोर्ड के हैडक्वार्टर कार्यालय जनवरी, 1983 में शिमला से धर्मशाला शिफ्ट किया गया। शिक्षा बोर्ड को शुरुआती दौर में मात्र 34 कर्मचारियों के साथ शुरू किया गया था, जो अब बढ़कर 700 से अधिक पहुंच चुके हैं।

राज्य में एचपी बोर्ड का मुख्य कार्य स्कूलों के लिए सिलेबस तैयार करना व कोर्स के तहत किताबें तैयार करना रहता है, लेकिन शिक्षा बोर्ड का मुख्य कार्य प्रदेश के स्कूलों सहित अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं का संचालन करना है, जिसमें स्कूल शिक्षा बोर्ड से पंजीकृत स्कूलों में दसवीं व जमा दो की फाइनल परीक्षाएं, जेबीटी एंड टीटीसी, अध्यापक पात्रता परीक्षा सहित अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षाएं करवाई जाती हैं। इसमें हर वर्ष पांच लाख से अधिक परीक्षार्थी हर वर्ष भाग लेते हैं। मौजूदा समय में प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड धर्मशाला से आठ हज़ार से भी अधिक स्कूल मान्यता प्राप्त हैं।

इतना ही नहीं, परीक्षाओं का स्कूलों में संचालन करवाने के लिए दो हज़ार के करीब परीक्षा केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। जहां अब सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में परीक्षाओं का संचालन किया जाता है। वहीं, शिक्षा बोर्ड प्रदेश में पहली से जमा दो तक के छात्रों के लिए किताबें भी प्रकाशित करता है, जिसमें एनसीईआरटी की किताबों को राज्य के स्कूलों में शुरू किया गया है, उनका प्रकाशन भी स्कूल शिक्षा बोर्ड धर्मशाला द्वारा ही किया जाता है। शिक्षा बोर्ड के प्रदेश भर में 26 बुक डिपो हैं, साथ ही इन्फॉर्मेशन सेंटर भी हैं।

एसओएस छात्रों को दे रहा मौका

अब प्राइवेट छात्रों को सुविधा प्रदान करने के लिए शिक्षा बोर्ड का राज्य मुक्त विद्यालय एसओएस भी शुरू किया गया है, जिसे भी प्रदेश भर के अध्ययन केंद्रों के माध्यम से चलाया जा रहा है, जिसमें भी हर वर्ष हज़ारों छात्र जो परीक्षाओं से वंचित रह गए हैं, फेल हुए हैं, कंपार्टमेंट घोषित है व श्रेणी सुधार करने सहित अन्य परीक्षाएं आठवीं, दसवीं व जमा दो की दे सकते हैं। इसके अलावा स्कूल शिक्षा बोर्ड धर्मशाला प्रवेश परीक्षाओं का संचालन करवाने के साथ-साथ कई प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन भी कर चुका है। हालांकि इस प्रकार के प्रयोग स्कूल शिक्षा बोर्ड के अधिक सफल साबित नहीं हो पाए हैं। इनमें से कई के रिजल्ट अब तक पेंडिंग चल रहे हैं।

सिर्फ मैरिट बनाता है बोर्ड, संस्थाएं करती हैं सम्मानित

हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डा. सुरेश कुमार सोनी का कहना है कि शिक्षा बोर्ड केवल मैरिट बनाता है। बोर्ड की ओर से छात्रों को सम्मानित नहीं किया जाता। यह विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया जाता है। हिमाचल के सभी छात्रों को चाहे, वे किसी भी बोर्ड से शिक्षा ग्रहण कर रहे हों, उन्हें स्कॉलरशिप भी राज्य सरकार द्वारा शिक्षा विभाग के माध्यम से दी जाती है। शिक्षा बोर्ड की ओर से किसी तरह का भेदभाव किसी छात्र से नहीं किया जा सकता। न तो प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड छात्रों को सम्मानित करता है और न ही अन्य बोर्ड एचपी बोर्ड के छात्रों को सम्मानित करते हैं। जमा दो के बाद छात्र अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों में चले जाते हैं, ऐसे में या तो संबंधित स्कूल अपने पुराने छात्रों की जानकारी लेकर डिटेल ले सकते हैं या फिर वे उच्च शैक्षणिक संस्थान डाटा तैयार कर सकते हैं, जिनके छात्र अच्छी सर्विसेज में जाते हैं। शिक्षा बोर्ड की ओर से स्कूलों को इस दिशा में प्रयास करने को कहा गया है। एचपी बोर्ड के तहत पंजीकृत स्कूलों में अधिकतर आम छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं। प्रदेश में रहने वाले हर छात्र को शिक्षा सहित अन्य सुविधाएं मिल सकें, इसलिए प्रदेश को अपने स्कूल शिक्षा बोर्ड की आवश्यकता रहती है।

ऐसे नहीं होगी शिक्षा श्रेष्ठ

शिक्षा और समानता का अधिकार हमें विश्व में संवैधानिक तौर पर श्रेष्ठ बनाता है, परंतु शिक्षा की श्रेष्ठता की पहचान प्रतियोगी परीक्षाएं करवाती हैं। किसी भी प्रतियोगिता में हम अपनी श्रेष्ठता बेहतर अध्यापन, अध्ययन और मूल्यांकन से साबित कर सकते हैं। स्तरीय अध्यापन एक उच्च शिक्षित और सांस्कारिक अध्यापक ही करवा सकता है, पर जिस राज्य में हम इस समय शिक्षा की श्रेष्ठता की चर्चा कर रहे हैं, वहां ज्यादातर शिक्षकों की नियुक्तियां इस समय अदालतों में हैं और अदालतें अब उन्हें अपनी कसौटी में ‘कसने’ की कोशिश कर रही हैं। आज से तीन दशक पूर्व तक तो यह प्रदेश हर स्तर की शिक्षा में अपनी श्रेष्ठता इसलिए साबित कर पा रहा था, क्योंकि अध्यापकों की नियुक्तियां संबंधित चयन आयोग कर रहा था, पर उसके बाद तो पंचायत प्रधान से लेकर उपमंडल के प्रशासनिक अधिकारी भी इसमें हाथ आजमाते नजर आए।

ऐसा माना जाता है कि शिक्षक बच्चों के शैक्षणिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को जिम्मेदार होता है। और सरल करें, तो वही अध्यापन कर सकता है, जिसमें सिखाने में महारत के साथ-साथ सहजता हो। पर स्कूलों में राजनीतिक आधार पर हो रही नियुक्तियां उपरोक्त जरूरतों को पूरा कर पाती हैं?… कभी नहीं। हिमाचल में तो सरकारें सरकारी पाठशालाओं में शिक्षकों की पहचान वालों की तैनाती को प्राथमिकता देती आई हैं। यही एक विभाग है, जहां सबसे ज्यादा नियुक्तियां चोर दरवाजे से हुई। इसी का परिणाम है कि ‘स्टॉप गैप अरेंजमेंट’ के तहत रखे गए पीटीए टीचर्स का नियमितीकरण आज सर्वाेच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

पीटीए के बाद रखे गए एसएमसी शिक्षकों को तो प्रदेश उच्च न्यायालय ने तो शुक्रवार को हटा ही दिया। वालंटियर टीचर, पीटीए, पैट, पैरा, एसएमसी… न जानें कितनी तरह के शिक्षक हिमाचल लोक सेवा आयोग या कर्मचारी चयन आयोग जैसी एजेंसियों को दरकिनार कर रखे गए। जब हम शिक्षकों की भर्ती तय मानकों, एजेंसियों, योग्यताओं को दूर रखकर पक्षपात से करेंगे, तो हम शिक्षा में श्रेष्ठता साबित नहीं कर पाएंगे। और आगे चलें तो प्रदेश में ज्यादातर मेधावी छात्र निजी स्कूलों में अध्ययनरत हैं, क्योंकि वहां बेहतरीन आधारभूत ढांचा उपलब्ध है, पर इन स्कूलों के प्रति सरकार का व्यवहार सौतेला है। निजी स्कूलों में पीटीए-एसएमसी जैसे शिक्षक नहीं होते, पर हट फिर मानक पूरे करने के नाम पर प्रताड़ना वही झेलते हैं। इस वक्त जरूरत है अच्छे शिक्षाविदों की। जरूरत है सरकारी पाठशालाओं का स्तर सुधारने की और जरूरत है योग्य शिक्षकों की। पांचवीं तक सबसे बेहतरीन शिक्षक नियुक्त किए जाने चाहिए। उनकी योग्यता और वेतन सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए, न कि टाइम पास…स्टॉप गैप।

नीति यह होनी चाहिए कि बेहतरीन शिक्षक ढूंढे जाएं, न कि कोई युवा रोजगार की तलाश करता-करता शिक्षक बनना चाहे। जिस तरह डाक्टर-इंजीनियर्स की तलाश होती है, उसी तरह और उसी स्तर के छात्रों को शिक्षक बनने के लिए बाल्यकाल से प्रेरित किया जाना चाहिए। अध्यापक वह बनाया जाना चाहिए, जो श्रेष्ठ छात्र रहा हो, अनुशासित हो, ज्ञान का खजाना हो, जिसका प्रस्तुतीकरण बेहतर हो। किसी बेरोजगार को अध्यापक बनाकर हम आने वाली पीढ़ी के भविष्य से खेल रहे हैं। और यह भी सोने पर सुहागा होगा, अगर अपने शिक्षा बोर्ड की बजाय केंद्रीय शिक्षा बोर्ड को प्राथमिकता दी जाए। इससे कम से कम शिक्षा में समानता तो बरकरार रहेगी। और तब तक प्रदेश में अन्य बोर्ड के मेधावी छात्रों को भी प्रदेश शिक्षा विभाग और शिक्षा बोर्ड एक नजर से देखे।

—संजय अवस्थी

हिमाचल को अपने बोर्ड की कितनी जरूरत…

हिमाचल प्रदेश एक छोटा राज्य है, ऐसे में क्या सच में अपने स्कूल शिक्षा बोर्ड की जरूरत है? ये सवाल कई बार उठते रहते हैं। प्रदेश को अपने स्कूल शिक्षा बोर्ड की जरूरत को लेकर बुद्धिजीवियों व शिक्षाविदों के साथ दिव्य हिमाचल ने विशेष बातचीत की… पेश हैं मुख्य अंश

गांवों के स्कूलों में सुधरा शिक्षा का स्तर

एसएच खान, प्रिंसिपल डीएवी पब्लिक स्कूल

हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड धर्मशाला ने ग्रामीण परिवेश के स्कूलों में एजुकेशन का स्तर सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सीबीएसई बोर्ड शहरी क्षेत्रों में बेहतरीन कार्य करने में सफल रहा है। सीबीएसई की परीक्षा पद्धति छात्रों को आगामी भविष्य में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पूरी तरह तैयार कर देती है

एचपी बोर्ड को स्मार्ट होने की जरूरत

गुलशन वर्मा, चेयरमैन ई-विंग्ज एकेडमी

शिक्षा में नए प्रयोग करना अति आवश्यक है। पुराने ढर्रे पर चलकर युवी पीढ़ी को देश की बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। ऐसे में सीबीएसई बोर्ड की तर्ज पर शिक्षा बोर्ड को स्मार्ट होने की जरूरत है, जिससे बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जा सके। इससे मात्र रटे रटाए तोते बनाने की बजाय छात्रों को विषय की गहनता से समझ हो

निःसंदेह बोर्ड की जरूरत है

—डा. विजय शर्मा, रिटायर्ड प्रिंसीपल

प्रदेश को अपने स्कूल शिक्षा बोर्ड की निःसंदेह जरूरत है। हालांकि सीबीएसई का परीक्षा पैटर्न बहुत कमाल का है, उसमें अधिक ऑबजेक्टिव टाइप प्रश्न रहते हैं, जिससे छात्र जो हैं, वे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार हो जाते हैं। साथ ही स्कूल एग्जामिनेशन में भी उनके अंक सौ तक ऑबजेक्टिव प्रश्नों के कारण ही पहुंचते हैं। वहीं, स्कूल शिक्षा बोर्ड अधिक सबजेक्टिव पर फोकस करता है, जिस कारण कहीं न कहीं छात्र पिछड़ते हुए नज़र आते हैं। बावजूद इसके डा. विजय ने कहा कि प्रदेश के छात्रों को अपनी संस्कृति, इतिहास व वेश-भूषा सहित स्थानीय अध्ययन करवाने के लिए भी अपने शिक्षा बोर्ड की आवश्यकता रहती है

यह भी है खतरा

—अश्वनी भट्ट स्कूल प्रिंसिपल

पड़ोसी राज्य पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित अन्य कई राज्यों के अपने बोर्ड हैं। परीक्षाओं को संचालन व शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सीबीएसई एग्जाम पैटर्न, एनसीईआरटी पाठ्यक्रम और फिर स्टेट बोर्ड दोनों का सामंजस्य बिठाकर अपने राज्य में शुरू करते हैं। पूरी तरह केंद्रीय बोर्ड पर निर्भर रहने पर पाठ्यक्रम में कुछ स्थानीय विषय शामिल किए जाने की स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में शिक्षा बोर्ड का अपना महत्त्व है और इसे अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाकर जारी रखने की जरूरत है


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