इनसानी दया के भूखे पशु-पक्षी: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल

By: डा. वरिंदर भाटिया , कालेज प्रिंसिपल Aug 26th, 2020 12:07 am

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसिपल

पेड़-पौधे न सिर्फ  लगाएं, बल्कि उनकी पूरी तरह से देखभाल भी करें। अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करें जिससे कि प्रकृति का संतुलन बना रहे। वन्य हों या पालतू, जलीय हों अथवा थलीय, समस्त पशु-पक्षियों पर मानवों ने इतने प्रत्यक्ष व परोक्ष अन्याय किए हैं, यदि वे प्रतिशोध पर उतर आते तो अभी हम ‘सात अरब’ नहीं होते, कब के धरती से समाप्त हो चुके होते। ये तो ईश्वर समान होते हैं जिन्हें अपने किए उपकार याद नहीं रहते, न ही ये कभी अहसान जताते हैं, उपकार करके भी ये ‘प्रतिफल’ पाने की चाह नहीं रखते। मुझे क्या मिलेगा, जैसी सोच पशु-पक्षियों की नहीं होती। ऐसे बहुत सारे उदाहरण सामने आए हैं जहां पक्षी अथवा पशु को मनुष्य भोजन व आसरा कुछ भी प्रदान नहीं करता था, फिर भी किसी मुश्किल घड़ी में उसने उस मनुष्य की मुश्किल घटाई अथवा दूर की है। पशु-पक्षियों के साथ हिंसात्मक व्यवहार करने से पूर्व हमें महात्मा गांधी जी के उस कथन को भी याद रखना होगा जिसमें वह स्पष्ट इशारा किया करते थे कि पशुओं के साथ अच्छा व्यवहार होना चाहिए…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति दया दिखाने वाला एक ताजा-तरीन वीडियो वायरल है जिसमें पीएम मोदी सुबह की सैर के बाद मोर को दाना खिलाते नजर आ रहे हैं। इस वीडियो को इंस्टाग्राम पर शेयर करने के साथ उन्होंने एक कविता भी लिखी है। इस वीडियो को अपने अन्य सोशल प्लेटफॉर्म्स पर भी साझा किया गया है। कटु सत्य है कि पशु-पक्षियों और प्रकृति के प्रति इंसानी दया बहुत कम होती जा रही है। हो सकता है कि कोरोना संकट का एक कारण यह भी हो कि प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति हमारी सहानुभूति का कम होना है। यह एक बड़ा मुद्दा है। इस बिंदु पर खुली बहस की जरूरत है।

प्रकृति ने इंसानों के साथ ही पशु-पक्षी व पेड़-पौधों को भी समान रूप से जीने का हक दिया है, पर हम देखते हैं कि अक्सर मनुष्य पशु-पक्षियों व पेड़-पौधों के प्रति निर्दयी हो जाता है, जो कि सरासर गलत है। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने साथ ही पूरी प्रकृति से प्यार करे, हर एक चीज के प्रति दया का भाव रखे, उनका ख्याल रखे। तभी प्राकृतिक संतुलन बना रहेगा। दया एक ईश्वरीय भाषा है जो सीधे किसी के भी दिल तक उतर जाती है। दया को हर संस्कृति, धर्म में उच्च स्थान प्राप्त है। दया की भाषा न सिर्फ  मनुष्य, बल्कि पशु-पक्षी भी अच्छे से समझते हैं। मार्क ट्वेन के शब्दों में कहा जाए तो दया वह भाषा है जिसे बधिर भी सुन सकते हैं और नेत्रहीन भी देख सकते हैं। तो हर मनुष्य को दया का महत्त्व समझकर इसे अपनाना चाहिए। आज के तेजी से बदलते वक्त में हर कोई खुद के संघर्षों से जूझ रहा है। ऐसे में दया का भाव धारण करना कठिन जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं।

चीन में दया के बारे में एक कहावत प्रचलित है। चीनी कहते हैं कि दया का कोई भी कृत्य ठीक उसी तरह छोटा नहीं होता, जैसे गुलाब देने के बाद हाथों में उसकी सुगंध बनी रहती है। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा भी कहते हैं कि जीवन की शुरुआत और अंतिम दौर में हम दूसरों की दया पर निर्भर होते हैं। लेकिन बीच के दौर में हम क्यों दूसरों पर दया करना भूल जाते हैं? श्रीमदभगवद् गीता में 16वें अध्याय के दूसरे श्लोक में भी अहिंसा के साथ दूसरों पर दया करने की सीख दी गई है। अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम् दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं हृरचापलम्।। श्रीमदभगवद् गीता के इस श्लोक में अहिंसा के साथ सच बोलने, क्रोध न करने, सभी प्राणियों पर दया करने के लिए प्रेरित किया गया है। इसी तरह पवित्र कुरान में भी लिखा है कि जो दया करता है, उस पर दया बरसती है। जब भी जरूरत हो, दूसरों की मदद जरूर करें। भगवान गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि हर जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से सिर्फ  विनाश होता है। ईसाई धर्म में भी दया को सबसे ऊपर रखा गया है। ईसा मसीह भी दया भाव की सबसे बड़ी मिसाल हैं।

 सूली पर चढ़ते समय भी उन्होंने ईश्वर से यही प्रार्थना की कि हे पिता इन्हें क्षमा करें, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं। इंसान को भगवान ने वह ताकत दी है कि वह दूसरों के प्रति जिसमें पशु-पक्षी भी हो सकते हैं, उनके प्रति दया व सहानुभूति दिखाकर उन्हें प्रेम भी कर सकता है। वहीं दूसरी ओर वह उनके प्रति कठोर रवैया दिखाकर उन्हें नुकसान भी पहुंचा सकता है। इन दोनों ही कृत्यों में सिर्फ  इतना अंतर है कि जहां दया व प्रेम दिखाकर वह अपने मन के साथ ही दूसरे के मन को भी सुकून व शांति पहुंचाता है, वहीं कठोर बनकर वह सबके साथ अपना भी नुकसान ही करता है। अक्सर हम देखते हैं कि जो लोग अपने घर में पालतु जानवर रखते हैं, वे उनसे बेहद प्यार करते हैं और नहीं चाहते कि कोई उन्हें नुकसान पहुंचाए। उनकी देखभाल वे अपने बच्चे की तरह ही करते हैं। इससे होता यह है कि जानवर भी उनसे प्यार करता है और कोई अन्य उन्हें नुकसान पहुंचाए तो वह उनकी रक्षा करता है। इस तरह दया व प्यार दिखाना उनके लिए फायदेमंद ही होता है। आज के भागदौड़ वाले युग में कई तरह की मानसिक बीमारियां घर कर रही हैं। ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वह दया व प्यार का दामन थामकर अपने मन को सुकून व शांति की छांव तले आराम करने दे। दया व प्यार की जरूरत पेड़-पौधों को भी है। प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़-पौधे भी जरूरी होते हैं। वहीं वातावरण का असर हमारी सेहत पर भी पड़ता है तो हमें सबसे पहले पेड़-पौधों के प्रति अपना प्रेम व दया दिखाने की जरूरत है जिससे कि वे हमारी प्रकृति का अभिन्न हिस्सा बनकर लहलहाते रहें।

पेड़-पौधे न सिर्फ  लगाएं, बल्कि उनकी पूरी तरह से देखभाल भी करें। अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करें जिससे कि प्रकृति का संतुलन बना रहे। वन्य हों या पालतू, जलीय हों अथवा थलीय, समस्त पशु-पक्षियों पर मानवों ने इतने प्रत्यक्ष व परोक्ष अन्याय किए हैं, यदि वे प्रतिशोध पर उतर आते तो अभी हम ‘सात अरब’ नहीं होते, कब के धरती से समाप्त हो चुके होते। ये तो ईश्वर समान होते हैं जिन्हें अपने किए उपकार याद नहीं रहते, न ही ये कभी अहसान जताते हैं, उपकार करके भी ये ‘प्रतिफल’ पाने की चाह नहीं रखते। मुझे क्या मिलेगा, जैसी सोच पशु-पक्षियों की नहीं होती। ऐसे बहुत सारे उदाहरण सामने आए हैं जहां पक्षी अथवा पशु को मनुष्य भोजन व आसरा कुछ भी प्रदान नहीं करता था, फिर भी किसी मुश्किल घड़ी में उसने उस मनुष्य की मुश्किल घटाई अथवा दूर की है। पशु-पक्षियों के साथ हिंसात्मक व्यवहार करने से पूर्व हमें महात्मा गांधी जी के उस कथन को भी याद रखना होगा जिसमें वह स्पष्ट इशारा किया करते थे कि आपकी सभ्यता की परख इस बात से होगी कि आप अपने पशुओं के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह और बात है कि आज के दौर में हम गांधी जी की बात को गहराई से नहीं ले रहे हैं। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक  कर्त्तव्यों के अनुसार हर भारतीय का फर्ज है कि वह वन संपदा तथा वन्य जीवों का संरक्षण करे ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे।

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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