नई आर्थिक और रोजगार जरूरतें: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री Aug 24th, 2020 12:08 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

ऐसे में सरकार के द्वारा आर्थिक एवं रोजगार के सतत सुधार के लिए सक्षम माहौल भी बनाना होगा। यद्यपि कृषि क्षेत्र का बेहतर प्रदर्शन संतोषप्रद है, लेकिन विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में अधिक से अधिक रोजगार अवसर तैयार करने होंगे ताकि सात फीसदी विकास दर हासिल करने की ओर आगे बढ़ा जा सके। देश के आम आदमी की आमदनी बढ़ाने के लिए रोजगार परिदृश्य को सुधारने के अधिकतम प्रयत्न जरूरी हैं। चूंकि लॉकडाउन के बीच अप्रैल और मई 2020 में कारोबार लगभग पूरी तरह बंद रहा, अतएव इन दो महीनों में बेरोजगारी की दर ऊंचाई पर रही। लेकिन जून 2020 से बेरोजगारी की दर में कमी आना शुरू हुई। लॉकडाउन के बीच ग्रामीण भारत की तुलना में शहरी भारत में बेरोजगारी की दर अधिक रही…

हाल ही में 19 अगस्त को विश्व बैंक के द्वारा जारी रिपोर्ट ‘इंडिया डिवेलपमेंट अपडेट’ में कहा गया है कि कोविड-19 के संकट के बाद भारत आर्थिक एवं वित्तीय सुधारों के जरिए सात फीसदी की विकास दर हासिल कर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब भारत में सुधारों का उद्देश्य घरेलू अर्थव्यवस्था में उत्पादकता, निजी निवेश, रोजगार और निर्यात बढ़ाने वाला होना चाहिए। निश्चित रूप से कोविड-19 के बाद सात फीसदी विकास दर प्राप्त करने के लिए सरकार के द्वारा तीन बातों पर ध्यान देना होगा। एक, आर्थिक सुधार आगे बढ़ाने होंगे। दो, आम आदमी की आमदनी बढ़ानी होगी तथा तीन, रोजगार अवसर बढ़ाने होंगे। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), एशियन डिवेलपमेंट बैंक सहित विभिन्न वैश्विक संगठनों के मुताबिक कोविड-19 से जंग में भारत के रणनीतिक प्रयासों से कोविड-19 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अन्य देशों की तुलना में कम प्रभाव पड़ा है।

साथ ही सरकार के द्वारा घोषित किए गए 20 लाख करोड़ रुपए से अधिक के आत्मनिर्भर भारत अभियान और 40 करोड़ से अधिक गरीबों और किसानों के जनधन खातों तक सीधी राहत पहुंचाने से कोविड-19 के आर्थिक हुए प्रभावों से बहुत कुछ बचा जा सका है। अब सरकार के द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत स्वास्थ्य, श्रम, कृषि भूमि, कौशल और वित्तीय क्षेत्रों में घोषित किए गए सुधारों को आगे बढ़ाना होगा। सरकार को कुछ ऐसे चुनिंदा क्षेत्रों में निवेश पर जोर देना होगा, जिससे कोरोना महामारी के प्रभाव से निपटने और प्रतिस्पर्धी बनने में मदद मिले। इसके अलावा सरकार को सबसिडी, कर्ज, गैर-कर राजस्व वसूली बढ़ाने, नए कर्ज के पुनर्भुगतान और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की ओर ध्यान देना होगा। निःसंदेह कोविड-19 के कारण आम आदमी की घटी हुई आमदनी को बढ़ाने और उसकी खरीदी क्षमता बढ़ाने पर भी जोर दिया जाना होगा।

हाल ही में आठ अगस्त को प्रकाशित भारतीय रिजर्व बैंक के कंज्यूमर कांफिडेंस सर्वे के मुताबिक कोविड-19 के कारण जिस तरह दुनिया में लोगों की आमदनी घटी है, उसी तरह भारत में भी लोगों की आमदनी घटी है। जुलाई 2020 में किए गए इस सर्वेक्षण में शामिल 62.8 फीसदी लोगों का मानना है कि कोविड-19 के कारण उनकी आमदनी घटी है। इस सर्वेक्षण में शामिल 44.3 फीसदी लोगों का मानना है कि इकोनॉमी को सामान्य बनाने के लिए सरकार की तरफ से रणनीतिक रूप से लागू अनलॉक-एक और दो के कारण उन्हें अब स्थिति के सुधरने का विश्वास है।

यद्यपि कोविड-19 से जंग में घरेलू बचत के कारण ही देश में करोड़ों लोग आर्थिक आघातों को बहुत कुछ झेल पाए हैं, लेकिन अब उनके लिए घरेलू बचतों का सहारा धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। कोविड-19 के बीच लोगों ने अपनी घटी हुई आमदनी के बीच अपनी बचत को कितनी तेजी से निकालकर उपयोग किया है, इसके लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के सदस्यों के उदाहरण को सामने रखा जा सकता है। पिछले दिनों 10 अगस्त को केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने कहा है कि ईपीएफओ की उमंग मोबाइल ऐप्लीकेशन से धनराशि निकालने हेतु अप्रैल से जुलाई 2020 के बीच 11 लाख आवेदन मिले हैं, जो दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच मिले 397000 आवेदनों से करीब तीन गुणा ज्यादा हैं। ईपीएफओ के द्वारा अप्रैल से मई 2020 के बीच 36 लाख दावों का निपटान किया गया है। इन दोनों महीनों में 11540 करोड़ के दावे ईपीएफ  खाताधारकों को दिए गए। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण देश में रोजगार संकट बढ़ा है।

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के द्वारा एशिया और प्रशांत क्षेत्र में कोविड-19 और युवा रोजगार संकट शीर्षक से जारी संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोविड-19 महामारी के कारण 41 लाख युवाओं के रोजगार जाने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस समय रोजगार वृद्धि पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया तो भारत में एक ‘लॉकडाउन बेरोजगार पीढ़ी’ सृजित होने का खतरा है, जिसे इस संकट का भार कई वर्षों तक उठाना पड़ सकता है।

ऐसे में सरकार के द्वारा आर्थिक एवं रोजगार के सतत सुधार के लिए सक्षम माहौल भी बनाना होगा। यद्यपि कृषि क्षेत्र का बेहतर प्रदर्शन संतोषप्रद है, लेकिन विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में अधिक से अधिक रोजगार अवसर तैयार करने होंगे ताकि सात फीसदी विकास दर हासिल करने की ओर आगे बढ़ा जा सके। देश के आम आदमी की आमदनी बढ़ाने के लिए रोजगार परिदृश्य को सुधारने के अधिकतम प्रयत्न जरूरी हैं। चूंकि लॉकडाउन के बीच अप्रैल और मई 2020 में कारोबार लगभग पूरी तरह बंद रहा, अतएव इन दो महीनों में बेरोजगारी की दर ऊंचाई पर रही। लेकिन जून 2020 से बेरोजगारी की दर में कमी आना शुरू हुई। लॉकडाउन के बीच ग्रामीण भारत की तुलना में शहरी भारत में बेरोजगारी की दर अधिक रही। साथ ही वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए रोजगार परिदृश्य अधिक मुश्किल भरा हुआ रहा। यद्यपि लॉकडाउन के कारण ग्रामीण भारत में रोजगार की चिंताएं कम हो चुकी हैं, लेकिन शहरी भारत में निर्मित हुए रोजगार के चिंताजनक परिदृश्य को बदलने के लिए सरकार के द्वारा अतिरिक्त रोजगार प्रयासों की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। वस्तुतः कोरोनाकाल में शहरी क्षेत्रों में रोजगार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ऐसे में मनरेगा की तरह शहरी रोजगार गारंटी योजना से शहरों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। रोजगार चिंता कम श्रमिकों को आर्थिक नुकसान से उबरने में मदद मिलेगी। इससे शहरी क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे का विकास हो सकेगा और श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि हो सकेगी।

शहरी रोजगार गारंटी योजना से बड़ी संख्या में रोजगार रहित चल रहे शहरी कामगारों की मुठ्ठियों में जो धन आएगा, उससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ सकेगी और शहरी बाजार में नई मांग का निर्माण भी हो सकेगी। रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत पंजीकृत होने वाले लोगों को शहरों में विभिन्न विकास कार्यों में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी सुनिश्चित की जा सकती है। हम उम्मीद करें कि सरकार रणनीतिपूर्वक आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित किए गए आर्थिक एवं वित्तीय सुधारों को आगे बढ़ाएगी। रोजगार अवसरों में वृद्धि करने के साथ-साथ आम आदमी की खरीदी की क्षमता को बढ़ाने के भी अधिकतम प्रयास करेगी। ऐसा किए जाने पर विश्व बैंक के द्वारा भारत के लिए आगामी वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए अनुमानित की जा रही सात फीसदी की विकास दर के लक्ष्य को प्राप्त करना संभव हो सकेगा। सार रूप में कह सकते हैं कि रोजगार के सृजन के लिए बहुत प्रयास करने होंगे। न केवल प्राइवेट सेक्टर, बल्कि सरकारी सेक्टर में भी रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे। तभी आत्मनिर्भर भारत की कल्पना साकार होगी।


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