नई शिक्षा नीति कितनी सफल होगी? : प्रो. मनोज डोगरा, लेखक हमीरपुर से हैं
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प्रो. मनोज डोगरा
लेखक हमीरपुर से हैं
यह बदलाव भारत को एक शिक्षित भारत के रूप में परिवर्तित कर देगा। भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक बात जो सबसे ज्यादा खटकती है, वह यह है कि भारत की शिक्षा में व्यावहारिक शिक्षा का अभाव है। विद्यार्थियों को ऐसा ज्ञान दिया जाता है जो उनके जीवन में कहीं प्रयोग होगा ही नहीं, तो ऐसे ज्ञान को देने का क्या औचित्य रह जाता है? नई शिक्षा नीति में वोकेशनल शिक्षा को भी बढ़ावा देने की बात की गई है, लेकिन बात करने से ही व्यवस्था में व्यावहारिक अध्ययन शामिल नहीं हो सकता। देश के युवाओं को व्यावहारिक शिक्षा देने की बहुत आवश्यकता है। साथ में ही नैतिकता से विमुखता की ओर जा रहे युवाओं को नैतिकता का भी पाठ पढ़ाया जाना चाहिए…
भारत की शिक्षा व्यवस्था को काफी लंबे समय से बदलने की मांग होती रहती थी, लेकिन किसी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वर्तमान सरकार ने अपने वादे को निभाते हुए शिक्षा व्यवस्था में कमियों को दूर करते हुए नई शिक्षा नीति को अंगीकृत किया है। शिक्षा ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे व्यक्ति अपना संपूर्ण विकास करता है तथा आगामी जीवन के लिए शिक्षण प्राप्त करता है तथा साथ में ही किसी भी देश की तकदीर बदलने व वहां के विकास व उत्थान में भी उस देश की शिक्षा नीति का बहुत बड़ा योगदान होता है। भारत प्राचीन समय से ही शिक्षा व ज्ञान का केंद्र रहा है, जहां पूरे विश्व से शिक्षा ग्रहण करने लोग आते थे। भारत की शिक्षा पूरे विश्व में प्रचलित थी। भारत को ज्ञान की भूमि कहा जाता था, लेकिन बीच के कुछ वर्षों में भारतीय शिक्षा पद्धति उस प्राचीन शिक्षा पद्धति के अनुरूप आगे नहीं बढ़ पाई। अंग्रेजों ने जबरन अपनी अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों पर थोपनी चाही। परिणामस्वरूप लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को अपनाया गया जिसमें अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया गया और बुनियादी शिक्षा को दरकिनार किया गया।
फलस्वरूप बच्चों में मौलिक शिक्षा का अभाव था। देश में 35 साल बाद नई शिक्षा नीति को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दे दी गई जिसके बाद भारत में आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था में कई बडे़ बदलाव देखने को मिलना तय है। सबसे पहले तो इस नई शिक्षा नीति 2020 को समझना आवश्यक हो जाता है कि किस प्रकार यह नई शिक्षा नीति लागू की गई है जिससे देश में एक सकारात्मक बदलाव आएगा। नई शिक्षा नीति में सबसे पहले तो मैकाले की शिक्षा नीति 10 प्लस 2 की जगह अब 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 शिक्षा पद्धति को अपनाया जाएगा जिसके अंतर्गत सबसे पहले बच्चों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की जाएगी तथा नई शिक्षा नीति के अनुसार प्राथमिक शिक्षा अब स्थानीय व क्षेत्रीय भाषा में करवाना अनिवार्य होगा। जिस प्रकार पहले अंग्रेजी को थोपा जाता था, अब वैसा नहीं होगा, बल्कि अंग्रेजी को भी अन्य विषयों की तरह एक विषय के रूप में ही पढ़ाया जाएगा। ऐसी व्यवस्था होने से कहीं न कहीं विद्यार्थियों पर से कुछ बोझ कम होगा तथा बच्चे एक संतुलित शिक्षा हासिल कर पाएंगे। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत अब केवल बारहवीं कक्षा में ही बोर्ड की परीक्षाएं होंगी, जबकि दसवीं के बोर्ड को हटा दिया जाएगा तथा नौवीं से बारहवीं तक अब सेमेस्टर सिस्टम के तहत पढ़ाई करवाई जाएगी। यह बात तो हुई स्कूली स्तर में नई शिक्षा नीति के बदलाव की, लेकिन साथ में ही उच्च शिक्षा में भी नई शिक्षा नीति के आने से उच्च शिक्षा का रंग-रूप पूर्ण रूप से बदल जाएगा।
अब स्नातक स्तर में स्नातक को तीन अलग भागों में विभक्त किया जाएगा यानी एक वर्ष, दो वर्ष व तृतीय वर्ष तथा जो हायर एजुकेशन में जाएंगे, उनके लिए चार वर्ष। इस स्तर पर सबसे बड़ा बदलाव देखने को यह मिलेगा कि अब मल्टी एंट्री तथा मल्टी एग्जिट व्यवस्था होगी यानी विद्यार्थी कभी भी अपनी स्नातक छोड़ कर कोई दूसरा कोर्स कर सकता है तथा दोबारा फिर वहीं से शुरू भी कर सकता है। साथ में अगर बात स्नातकोत्तर स्तर की करें तो अब एम.फिल को हटा दिया जाएगा। अब पीएचडी एमए के बाद सीधे की जा सकेगी। नई शिक्षा नीति के आने से देश के ग्रामीण क्षेत्रों को अधिक लाभ पहुंचने की उम्मीद है क्योंकि नई शिक्षा नीति में ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिससे साफ है कि आने वाले समय में भारत के शिक्षा जगत में एक नया बदलाव देखने को मिलना तय है। यह बदलाव भारत को एक शिक्षित भारत के रूप में परिवर्तित कर देगा। भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक बात जो सबसे ज्यादा खटकती है, वह यह है कि भारत की शिक्षा में व्यावहारिक शिक्षा का अभाव है। विद्यार्थियों को ऐसा ज्ञान दिया जाता है जो उनके जीवन में कहीं प्रयोग होगा ही नहीं, तो ऐसे ज्ञान को देने का क्या औचित्य रह जाता है? नई शिक्षा नीति में वोकेशनल शिक्षा को भी बढ़ावा देने की बात की गई है, लेकिन बात करने से ही व्यवस्था में व्यावहारिक अध्ययन शामिल नहीं हो सकता। देश के युवाओं को व्यावहारिक शिक्षा देने की बहुत आवश्यकता है।
साथ में ही नैतिकता से विमुखता की ओर जा रहे युवाओं को नैतिकता का भी पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। नई शिक्षा नीति आते ही शिक्षा जगत को अपना अलग से मंत्रालय भी मिल गया है यानी मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम भी अब शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, जो कि शिक्षा क्षेत्र के उत्थान व विकास के लिए निरंतर गति से कार्य करेगा। नई शिक्षा नीति में शिक्षकों के लिए भी प्रावधान है जिसमें सबसे बड़ा बदलाव तो यह है कि अब शिक्षकों की चुनावों के अलावा कहीं भी अतिरिक्त ड्यूटी नहीं लगाई जाएगी।, चाहे वह स्कूलों में मिड-डे-मील योजना ही क्यों न हो, शिक्षक को केवल शैक्षिक कार्य में ही लगाया जाएगा। ऐसी शिक्षा नीति को बहुत पहले ही लाना चाहिए था ताकि देश की शिक्षा व्यवस्था को एक बार पुनः वैश्विक शिक्षा का दर्जा मिल सके। भारत की अपनी नई भारतीय शिक्षा नीति आने से शिक्षा क्षेत्र में कितना विकास होता है तथा यह नीति कहां तक सार्थक रहती है, यह समय के साथ सिद्ध होना तय है। संभवतः यह नई शिक्षा नीति शिक्षा क्षेत्र में एक नए बदलाव की गाथा लिखेगी जिसका आरंभ हो चुका है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब देश के शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी सफलता के लिए दृढ़-संकल्पी होकर कार्य करेंगे।
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