प्रदेश पुलिस की समस्याएं एवं चुनौतियां: किशन बुशैहरी, लेखक नेरचौक से हैं

By: किशन बुशैहरी , लेखक नेरचौक से हैं Aug 20th, 2020 12:07 am

किशन बुशैहरी

लेखक नेरचौक से हैं

जिस समय भी पुलिस प्रशासन निष्पक्ष हो जाएगा, पुलिस व राजनीति का यह परस्पर गठबंधन भी समाप्त हो जाएगा। परंतु वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव नहीं है क्योंकि पुलिस के कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकने की चेष्टा का साहस प्रदेश के किसी भी पुलिस उच्चाधिकारी में नहीं है…

कवि दुष्यंत कुमार का कथन ‘अब तो बदल लो इस तलाब का पानी, यह फूल मुरझाने लगे हैं’ वर्तमान व्यवस्था में भ्रष्टाचार रूपी सड़ांध से मुक्त होने के लिए एक ऐसे परिवर्तन को इंगित करता है जो कि हमारी प्रशासनिक व सामाजिक व्यवस्था को खोखला कर रहा है। प्रदेश में निष्पक्ष एवं पारदर्शी कार्य संस्कृति, कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु विभाग के प्रमुख का सकारात्मक दृष्टिकोण, निष्पक्षता किसी भी विभाग की कार्यकुशलता को गतिशील करता है। प्रदेश के नवनियुक्त पुलिस महानिदेशक द्वारा प्रदेश की कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित करने हेतु विगत माह पूर्व पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन का आयोजन करना एक सार्थक एवं सराहनीय प्रयास है। प्रदेश के इतिहास में शायद इस प्रकार का यह प्रथम आयोजन है, जिसमें मुख्यतः पुलिस प्रशासन व जनता के बीच समन्वय को प्राथमिकता, कानून की अनुपालना को सख्ती से क्रियान्वित करना, पुलिस प्रशासन में व्याप्त आंतरिक भ्रष्टाचार की संलिप्तता को स्वीकार करना व इसके उन्मूलन की दिशा में प्रस्तावित सुधार का प्रयास करना वर्तमान पुलिस महानिदेशक की दूरदर्शिता का परिचायक है। प्रदेश पुलिस का आदर्श वाक्य ‘निष्पक्ष, निर्भय, कर्त्तव्यनिष्ठ’ आम नागरिकों एवं उत्पीडि़त व्यक्तियों के प्रति पुलिस प्रशासन की संवैधानिक एवं सामाजिक प्रतिबद्धता को इंगित करता है।

 सामान्यतः प्रदेश के आम नागरिक की दृष्टि में वर्तमान व्यवस्था में पुलिस प्रशासन भ्रष्टाचार व अविश्वास का प्रतीक बन चुका है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि वर्तमान में प्रदेश में अपराध की दर में बढ़ोतरी में प्रदेश में व्याप्त  भ्रष्टाचार की प्रमुख भूमिका है। पुलिस प्रशासन की अपराध व अपराधियों के प्रति उदासीनता प्रदेशवासियों को भय एवं असुरक्षा की भावना से ग्रस्त करती है व समुचित समय पर कानून का क्रियान्वयन न होने के कारण प्रायः पुलिस प्रशासन पर पक्षपाती होने का आरोप लगाना  प्रदेश वासियों में एक आम धारणा बन चुकी है। वैश्विक महामारी के इस संक्रमण काल में प्रदेश पुलिस प्रशासन के समक्ष प्रदेश वासियों की सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था का सुचारू संचालन एक ऐसी चुनौती है, जिसको पुलिस प्रशासन के लिए पार पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पुलिस प्रशासन की शक्तियां, दायित्व, अधिकार एवं कर्त्तव्य बहुमुखी हैं, परंतु पुलिस की कार्यप्रणाली के प्रति समाज में प्रचलित पूर्वाग्रहों एवं विरोधाभासों के कारण पुलिस प्रशासन को निरंकुश व अत्याचारी ही रेखांकित किया जाता रहा  है, जो कि इस संगठन की कर्त्तव्यनिष्ठा, निष्पक्षता एवं पहचान को नजरअंदाज करना होगा।

 वर्तमान में पुलिस प्रशासन के समक्ष एक गंभीर समस्या यह भी है कि अधिकांश प्रदेश वासी  राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कानून की अवहेलना या उल्लंघन करने की प्रवृत्ति को अपना अधिकार मानते हैं। यह विचारणीय है कि क्या पुलिस प्रशासन का कानून की अनुपालना के साथ-साथ सामाजिक अनुशासन एवं सुरक्षा के लिए प्रदेशवासियों को प्रेरित करना असंवैधानिक है? कदापि नहीं, परंतु इससे यह प्रतीत होता है कि वर्तमान में प्रदेश व देश का शिक्षित वर्ग देश के संविधान एवं कानून व्यवस्था के प्रति कितना निष्ठुर है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि इस वैश्विक आपदा का सामना करने में हमारी मानसिक, सामाजिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था कितनी असहाय व बेबस है। देश के विभिन्न भागों में लोगों द्वारा पुलिस कर्मियों पर किए गए जानलेवा हमलों  व अभद्रता की तुलना में प्रदेश में इस प्रकार के कृत्यों की शून्यता प्रदेश पुलिस प्रशासन के लिए एक संतोषप्रद स्थिति है (कुछ अपवादों को छोड़कर)। परंतु कांगड़ा जिला की डाडासीबा पुलिस चौकी के अंतर्गत महिलाओं व अन्य लोगों द्वारा पुलिस अधिकारियों से मारपीट की घटना चिंतनीय है। प्रत्येक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्तासीन सरकारों या राजनीतिज्ञों एवं पुलिस प्रशासन के मध्य एक परस्पर गठजोड़ रहता है।

तार्किक रूप से यही संबंध पुलिस प्रशासन की निष्पक्षता एवं कर्त्तव्यनिष्ठा के लिए कमजोर कड़ी प्रमाणित होता है। जिस समय भी पुलिस प्रशासन निष्पक्ष हो जाएगा, पुलिस व राजनीति का यह परस्पर गठबंधन भी समाप्त हो जाएगा। परंतु वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव नहीं है क्योंकि पुलिस के कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकने की चेष्टा का साहस प्रदेश के किसी भी पुलिस उच्चाधिकारी में नहीं है। अतः पुलिस महानिदेशक को प्रदेश की पुलिस व्यवस्था में व्यापक सुधार हेतु जिला स्तर पर पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त अराजपत्रित कर्मचारियों के सम्मलेन का भी आयोजन करना चाहिए, जिससे विभाग की कार्यप्रणाली को पारदर्शी व सुदृढ़ करने में सहायता प्राप्त हो सके।


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