शहर दर बदर

By: शकील कुरैशी Aug 26th, 2020 12:06 am

कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाला पहाड़ी प्रदेश हिमाचल लगातार विकास की ओर अग्रसर है। कई क्षेत्र शहरों की तर्ज पर विकसित हो चुके हैं, तो कुछ कतार में हैं। हालांकि एक पहलू यह भी है कि कुछ क्षेत्रों की जनता शहरीकरण से दूर ही रहना चाहती है… इसकी वजह पेचीदे नियम भी हो सकते हैं या शहरों का बेतरतीब निर्माण या शोर शराबा। इस दखल में पेश है शहरीकरण की दौड़ में कहां तक पहुंचा हिमाचल … शकील कुरैशी

पहाड़ी प्रदेश के कई क्षेत्र अब शहरीकरण की दौड़  

में शामिल हैं। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाला हिमाचल लगातार विकास की ओर बढ़ रहा है। कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो आज शहरों की तर्ज पर विकसित हो चुके हैं। हालांकि कागजों में इन्हें शहर नहीं माना जाता, लेकिन लगातार इनकी दावेदारी बढ़ रही है। वर्तमान में राज्य में 54 शहर हैं, जो कि लंबे समय से चल रहे हैं, जिनके अलावा नए शहरों की घोषणा यहां नहीं हो सकी है। वर्तमान में इस दिशा में सरकार भी कुछ बढ़ने की सोच रही है और नई नगर निगम, नगर परिषदें व नगर पंचायतों के गठन का प्रस्ताव है, जिन पर आने वाले दिनों में काम किया जाएगा, परंतु इनके अलावा भी कई दूसरे और क्षेत्र हैं, जो शहरीकरण की बाट जोह रहे हैं। शहरों के साथ लगते क्षेत्र शहरीकरण की दौड़ में शामिल हैं। दिसंबर में प्रदेश में जनगणना 2021 का काम शुरू हो जाएगा और इस जनगणना के आंकड़ों के सामने आने के बाद यहां नए शहरों की घोषणा हो सकेगी। फिलहाल सरकार के पास कई क्षेत्रों के प्रस्ताव हैं, जिनकी घोषणा कब तक होती है, यह देखना होगा।

प्रदेश में 31 नगर परिषदें, 21 नगर पंचायतें

प्रदेश में 31 नगर परिषदें हैं, वहीं 21 नगर पंचायतें। सरकार के पास प्रस्ताव है कि ऊना जिला के अंब, कुल्लू के निरमंड व आनी को नगर पंचायतों में परिवर्तित किया जाएगा। इसके साथ सरकाघाट को नगर परिषद बनाने की घोषणा हो गई है, वहीं शाहपुर को भी नगर पंचायत के रूप में अपग्रेड कर दिया गया है।

जल्द होगी सोलन नगर निगम की घोषणा

नगर निगमों की बात करें, तो प्रदेश में सोलन शहर को नगर निगम की घोषणा जल्दी होने वाली है। लंबे समय से यहां नगर निगम बनाने की बात चल रही है, जिसमें इसके साथ लगते एरिया को शामिल करने का काम चल रहा है। वहीं मंडी शहर को भी नगर निगम बनाने का प्रस्ताव है। वैसे मंडी की जनगणना  मापदंडों के अनुरूप नहीं बैठती, लिहाजा यहां की घोषणा अभी शायद ही हो, मगर यह शहर है, जो शहरीकरण के लिए इंतजार कर रहा है।

शहरों में कंकरीट का जाल

हिमाचल प्रदेश की शहरों को देखें, वहां बेतरतीब निर्माण और कंकरीट के जाल ने उसकी खूबसूरती को खत्म कर दिया है। जिन जगहों पर पहले शहर नहीं बसे थे, उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस तरह का बेहतहाशा निर्माण हुआ कि अब वह शहर कंकरीट का जाल लगते हैं। शहरीकरण की इस दौड़ से यहां घाटियों की घाटियां तबाह हो गई। जहां किसी जमीन पर खेतीबाड़ी की जाती थी, वहां अब बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो चुकी हैं। हिमाचल के प्रवेश द्वार परवाणू से शुरुआत करें तो यहां इंडस्ट्रियलाइजेशन किया गया। बेहतरतीब निर्माण का यह भी एक बड़ा उदाहरण है। एक छोटे से क्षेत्र में इतने उद्योग धंधे खडे़ कर दिए गए हैं, जहां  प्रदूषण की मात्रा भी काफी ज्यादा है। इसी तरह सुंदरनगर, जो एक बेहतरीन वैली थी, आज वहां की सुंदरता अंधाधुंध निर्माण की भेंट चढ़ चुकी है। इसी तरह मंडी, पांवटा, नाहन, सोलन जैसे शहर कंकरीट के जंगल में तबदील हो चुके हैं। सरकारों ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया है। सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी इसमें साफ दिखाई देती है, जो नियम बनाती तो रही, लेकिन दबाव में उन्हें लागू नहीं कर पाई। ऐसे कई शहर हिमाचल में हैं, जो अपनी पुरानी पहचान और खोए हुए वैभव को पाना तो चाहते हैं, लेकिन इसमें बहुत देर हो चुकी है। आने वाले समय के लिए जो योजना सरकार के पास है, उस पर तेजी के साथ काम नहीं हो सकता, क्योंकि प्रस्ताव सिरे चढ़ने में दस-दस साल का वक्त लग रहा है।

सिटी में शामिल नहीं होना चाहती जनता

शहरीकरण के प्रस्तावों के चलते शहरों के साथ लगते क्षेत्रों को उनमें शामिल करने का विरोध भी किया जा रहा हे। ऐसा केवल नगर नियोजन के नियमों की वजह से ही हो रहा है। एक कैबिनेट सब कमेटी यहां गठित है, जो कि योजना क्षेत्रों को इस दायरे से बाहर किए जाने को लेकर जनता से सुझाव ले रही है। महेंद्र सिंह ठाकुर इस कमेटी के अध्यक्ष हैं, जिन्होंने पिछले दिनों कई क्षेत्रों का दौरा कर वहां के लोगों से चर्चा की। जनता शहरों में शामिल होने का डटकर विरोध भी कर रही है, खासकर नगर नियोजन के प्लानिंग एरिया से ये लोग बाहर ही रहना चाहते हैं। नगर नियोजन कानून के दायरे में राज्य में 90 प्लानिंग क्षेत्र हैं, जिसमें से 35 स्पेशल एरिया डिवेलपमेंट अथॉरिटी के दायरे में आते हैं। यानि साडा के तहत ये क्षेत्र हैं और यहां निर्माण के लिए नियमों की पालना करना जरूरी है। यहां वास्तुकारों के फेर में जनता पड़ी है, जो दफ्तरों के चक्कर कटवाते हैं। आने वाले समय में 2021 की जनगणना के बाद मंडी जैसे कई शहर नगर निगम के लिए दावेदार हो जाएंगे, जिनकी न केवल जनसंख्या का दायरा बढ़ेगा, वहीं इनमें आर्थिक रूप से ज्यादा प्रशासनिक इनकम का क्राइटेरिया भी बढ़ जाएगा।

ऐसे मिलती है शहरी निकायों को आर्थिक मदद

हिमाचल प्रदेश के शहरी निकायों को आर्थिक मदद की बात करें, तो प्रदेश में दो तरफ से इन्हें मदद की जाती है। एक राज्य वित्तायोग की ग्रांट मिलती है, जो तय करता है कि किसी निकाय को कितना पैसा दिया जाएगा और दूसरा केंद्रीय वित्तायोग सीधे रूप से आर्थिक मदद प्रदान करता है। वित्तायोग की धनराशि से इनका काम चलता है, जिसके अलावा इनके अपने संसाधन होते हैं। राज्य सरकार की ओर से बजट में इनके लिए विशेष प्रावधान रखा जाता है।  शहरों में पार्किंग स्थलों का निर्माण करने के लिए 50 फीसदी राशि सरकार देती है और 50 फीसदी राशि शहरी निकाय खुद जुटाता है। इसके साथ पार्क के निर्माण के लिए 60 फीसदी धनराशि सरकार देती, तो 40 फीसदी शहरी निकाय खुद देता है। शहरों में रास्तों का निर्माण करने, गलियों का निर्माण, नालियों का निर्माण, ऐसे आधारभूत कार्यों के लिए प्रदेश सरकार 100 फीसदी ग्रांट प्रदान करती है। पांच करोड़ रुपए की कुल राशि सरकार द्वारा इनको बजट में दी जाती है।

योजनाएं

…जो घोषणाओं तक ही सिमटी

हिमाचल में ट्रांसपोर्ट नगर की बात करें, तो राज्य सरकारें पूर्व में इनकी घोषणा करती आई हैं। पहले सोलन के साथ लगते चंबाघाट में ट्रांसपोर्ट नगर बसाने का ऐलान सालों पहले किया गया, फिर हमीरपुर के पास ट्रांसपोर्ट नगर बनाए जाने की घोषणा हुई। वहीं, शिमला के साथ लगते घणाहट्टी एरिया को सेटेलाइट टाउन बनाए जाने की बात भी की गई, मगर आलम यह है कि एक भी घोषणा सिरे चढ़ना तो दूर, उस पर

 काम ही नहीं हो सका। सिर्फ घोषणा तक ही यह मामला सिमटकर रह गया। अभी भी इस पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही, जबकि यह जरूरी है। प्रदेश में सेटेलाइट टाउनशिप की बड़ी जरूरत है। शिमला के साथ जुब्बड़हट्टी के नजदीक जाठियादेवी में टाउनशिप बनाने के लिए विदेशी कंपनी के साथ पूर्व सरकार में करार किया गया, परंतु यह कानूनी पचड़े में पड़ गया। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जो आदेश हैं, उसके अनुसार यहां काम नहीं किया जा सकता, लिहाजा नए सिरे से नक्शे बनाए जा रहे हैं और यह काम हिमुडा के पास है। इतना ही नहीं, टाउनशिप बनाने के लिए हिमुडा के पास कई स्थानों पर जमीन है, जिनमें परवाणू, कालाअंब, धर्मपुर, कांगड़ा, ऊना शामिल हैं, मगर इनकी जमीन अब बिक नहीं पा रही। ऐसी 36 संपत्तियां हैं, जिनकी बिक्री नहीं हो पा रही और करोड़ों रुपए यूं ही बेकार हो गए हैं।

शहरीकरण के लिए तय हैं मापदंड

कब बनती है नगर पंचायत

शहरीकरण के लिए जो मापदंड सरकार ने तय कर रखे हैं, उसके मुताबिक जिस क्षेत्र की जनसंख्या पूर्व जनगणना के अनुसार दो हजार हो और उसकी प्रशासनिक आमदनी सालाना पांच लाख रुपए तक की हो, उसे नगर पंचायत बनाया जा सकता है। इसी तरह पांच हजार की जनसंख्या वाले क्षेत्र, जिसमें दस लाख रुपए तक की सालाना प्रशासनिक इनकम होती है, उसे नगर परिषद के दायरे में लाया जाता है।

कब बनता है नगर निगम

50 हजार की जनसंख्या वाले क्षेत्रों, जिनमें दो करोड़ रुपए सालाना प्रशासनिक आमदनी होती है, उसे नगर निगम बनाए जाने का प्रावधान रहता है। यह एक क्राइटेरिया तय किया गया है, जिसके अनुसार शहरों और उनकी व्यवस्थाओं को चिन्हित किया जाता है।

सरकार नहीं करती सिटी की घोषणा

शहर बनाए जाने को लेकर सरकार घोषणाएं नहीं करती, बल्कि इन मापदंडों के अनुसार जो इलाके इसमें क्राइटेरिया पूरा करते हैं, उन्हें शहरीकरण में लाया जाता है। शहर की व्यवस्था नगर पंचायत, नगर परिषद या नगर निगम से ही चलती है। यहां कई तरह की नई सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, लेकिन इसकी एवज में स्थानीय प्रशासन इन्कम बढ़ाता है। जो क्षेत्र भी शहरीकरण के दायरे में आते हैं, उन क्षेत्रों में टैक्स लगाए जाते हैं और वहां की जनता को टैक्स की अदायगी करनी पड़ती है। इसी टैक्स से वहां की व्यवस्थाएं चलती हैं।

शहरी विकास विभाग के पास ये प्रस्ताव

जो प्रस्ताव शहरी विकास विभाग के पास हैं, उनमें निरमंड व आनी को नगर पंचायत बनाया जाना है, तो पालमपुर का दायरा बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। पालमपुर नगर परिषद है, जिसमें कुछ और क्षेत्रों को जोड़ा जाना है। इसी तरह प्रस्ताव है कि कांगड़ा शहर का भी विस्तार करना है। यहां नगर परिषद के एरिया में बढ़ोतरी की जानी है, जिसके लिए भी एक प्रस्ताव शहरी विकास विभाग के पास है।

इसी तरह बीबीएन का विस्तार किए जाने का भी प्रस्ताव है। क्योंकि यह प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है, लिहाजा यहां नगर निगम बनाने की बात कही जा रही है। वैसे इन तीनों क्षेत्रों को जोड़कर ऐसा किया जा सकता है, परंतु इसके पीछे भी कई सियासी कारण है, जो ऐसा होने नहीं देना चाहते। इसे लेकर अभी मंथन चल रहा है और सरकार देख रही है कि यहां उद्योगपतियों को नगर निगम की व्यवस्था से राहत मिलेगी।

वित्तायोग से इस बार 148 करोड़

शहरी विकास विभाग के निदेशक रामकुमार गौतम का कहना है कि इस बार राज्य वित्तायोग से प्रदेश के शहरी क्षेत्रों को 148 करोड़ रुपए की धनराशि विकास कार्यों के लिए मिली है, वहीं केंद्रीय वित्तायोग से यहां के शहरों के विकास के लिए इन्हें 260 करोड़ रुपए की धनराशि प्रदान की गई है।

यह राशि 90 फीसदी जनसंख्या और दस फीसदी एरिया के हिसाब से दी जाती है, जो कि वित्तायोग प्रदान करते हैं। ये एजेंसियां सबसे बड़ी मददगार हैं। इनके अलावा शहरी निकाय खुद इनकम जुटाते हैं, जिनके पास प्रॉपर्टी टैक्स, इलेक्ट्रिसिटी सैस, वाटर सैस लगाने का अधिकार रहता है। वहीं, शराब पर भी यह स्थानीय निकाय टैक्स वसूल कर रहे हैं, साथ ही यूजर चार्जेस भी लोगों पर ये लोग सरकार की मंजूरी से लगा सकते हैं।

कचरा प्रबंधन तीन तरह का

हिमाचल प्रदेश के शहरों में कूड़ा-कचरा प्रबंधन के लिए तीन हिस्सों में प्रक्रिया बांट दी गई है। प्रदेश सरकार ने  केंद्र सरकार के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 को अपनाया है। इसके तहत कूड़े को गीला कचरा, सूखा कचरा व हानिकारक कचरे के तहत बांटा गया है। गीला कचरा, जिससे खाद बनाई जाती है। ऐसे खाद बनाने के संयंत्र शहरों में लगाए गए हैं, जहां खाद बनाने का काम चल रहा है। इसके साथ सूखे कचरे के निष्पादन के लिए भी व्यवस्था की है। यह ऐसा कचरा है, जिसकी खाद नहीं बनती है और यह गलता नहीं है।

इसके अलावा हानिकारक कचरा होता है, जो केमिकल युक्त होता है और यह सबसे अधिक खतरनाक है। इसके निष्पादन को भी अलग से व्यवस्था की है। वहीं, सेनेटरी कूड़े को सूखे कचरे के साथ अलग से लिया जाता है। घरों में ही इस कूड़े को दो से तीन भागों में बांटने का काम किया जा रहा है, जिसके लिए नगर पंचायतों, नगर परिषदों व नगर निगमों ने लोगों को कूड़ादान मुहैया करवाए हैं। पिछले साल मई महीने में प्रदेश सरकार ने एक पॉलिसी भी विशेष रूप से इसके लिए बनाई है, जिसमें कंट्रोल्ड कंपोजिंग मैथड को अपनाने की बात कही गई है।

दस क्षेत्रों में मिली नहीं ज़मीन

कूडे़ का अलग-अलग निष्पादन प्रदेश के दस शहरों को छोड़कर शेष में कर दिया गया है। इन शहरों में जमीन उपलब्ध नहीं हो रही है। ये शहर हैं ठियोग, जुब्बल, रोहडू, रामपुर, करसोग, जवाली, नगरोटा, चुवाड़ी, देहरा तथा घुमारवीं। यहां पर जमीन को लेकर विवाद चल रहा है।

इन जगहों में है सीवरेज स्कीम

जिन शहरों को सीवरेज की कनेक्टिविटी से जोड़ा जा चुका है, उनमें शिमला, रामपुर, रोहडू, जुब्बल, अर्की, परवाणू, धर्मशाला, पालमपुर, ज्वालामुखी, बिलासपुर, घुमारवीं, श्रीनयनादेवी जी, मंडी, जोगिंद्रनगर, कुल्लू, मनाली, भुंतर, चंबा और ऊना शामिल हैं।

यहां आंशिक व्यवस्था

प्रदेश के नगरोटा, सोलन, सुंदरनगर, हमीरपुर, सरकाघाट, कांगड़ा, सुजानपुर तथा नादौन में आंशिक सीवरेज कनेक्टिविटी है।

यहां चल रहा काम

जिन शहरों में सीवरेज जोड़ने का काम किया जा रहा है, उनमें ठियोग, नारकंडा, सुन्नी, कोटखाई, नालागढ़, बद्दी, पांवटा, डलहौजी, चुवाड़ी, नूरपुर, देहरा, रिवालसर, करसोग, संतोषगढ़, मैहतपुर, गगरेट, बंजार, भोटा तथा तलाई हैं।

जिन्हें बजट का प्रावधान वहां अभी होना है काम

नाहन के लिए 167 लाख, दौलतपुर के लिए 3.10 लाख, राजगढ़ के लिए 3.10 लाख, चौपाल के लिए 51.10 लाख, टाहलीवाल के लिए 16 लाख, नेरचौक के लिए 31 लाख, बैजनाथ पपरोला के लिए 51 लाख तथा जवाली के लिए 16 लाख रुपए की धनराशि स्वीकृत की गई है, जिससे यहां सीवरेज की व्यवस्था की जाएगी।

टीसीपी नियमों से घबराते हैं लोग

हिमाचल प्रदेश में नगर नियोजन के कानून काफी ज्यादा सख्त हैं, जो लोगों को आसानी से भवन निर्माण की इजाजत नहीं देते। ऐसा इसलिए है, ताकि विकास के काम तरकीब के साथ हों। शहरीकरण को लेकर यह तय किया गया था कि योजनाबद्ध तरीके से शहरों का विकास हो, परंतु ऐसा हो नहीं रहा। जो शहर प्रदेश में विकसित हुए हैं, वहां का विकास योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो सका है।

शिमला को ही देख लो

सिमिट्री एरिया में डेड बॉडी तक ले जाने के लिए जगह नहीं

लोगों को बिजली-पानी के कनेक्शन लेने के लिए होती है दिक्कत

ऐसे ही पड़े हैं आठ हजार आवेदन, पास नहीं हो सके भवनों के नक्शे

शिमला…. जहां आसपास के क्षेत्रों को इसमें शामिल कर नगर निगम के दायरे में लाया गया और बाद में यहां नगर नियोजन के नियम लागू कर दिए गए, परंतु ये नियम लागू करने से पहले ही यहां ऐसे क्षेत्र बन गए, जहां बेतरतीब निर्माण हुआ। शिमला का सिमिट्री क्षेत्र इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां पर डेड बॉडी तक निकालने के लिए जगह नहीं बचाई गई है। इसी तरह से शिमला में न्यू शिमला, विकास नगर, कुसुम्पटी क्षेत्रों का विकास किया गया, जहां नगर नियोजन के नियम लागू होते हैं। यहां योजनाबद्ध विकास तो कुछ हद तक कहा जा सकता है, लेकिन नियमों के तहत निर्माण नहीं करने से लोगों को बिजली, पानी के कनेक्शन लेने में दिक्कतें पेश आ रही हैं।

ऐसे आठ हजार से ज्यादा आवेदन प्रदेश के पड़े हैं, जिसमें भवनों के नक्शे पास नहीं हो सके हैं और ये लोग रिटेंशन पॉलिसी मांग रहे हैं। दूसरी तरफ नगर नियोजन के नियमों में लोग बंध जाते हैं, जिन्हें सेटबैक छोड़कर तरकीब से निर्माण करना पड़ता है। नगर नियोजन के चक्कर में पड़ने वाले लोग थक जाते हैं, जिस कारण दूसरे लोगों में भी भय का माहौल है।

गांव-शहर के बीच का एरिया बनता है नगर पंचायत

गांव व शहर के बीच का जो एरिया है, उसे नगर पंचायत के दायरे में लाया जाता है। यहां पूरी तरह शहरीकरण की सुविधाएं नहीं होती। वहीं, छोटा नगर जो बस जाता है, उसे नगर परिषद के दायरे में लाया जाता है, जबकि बड़े शहर को नगर निगम के अधीन लाते हैं।


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