शिमला की ऐतिहासिक धरोहर का अवसान: विनोद भारद्वाज, लेखक शिमला से हैं

By: विनोद भारद्वाज, लेखक शिमला से हैं Aug 26th, 2020 12:06 am

विनोद भारद्वाज

लेखक शिमला से हैं

अब ये सीढि़यां प्रायः सूनी नजर आएंगी। सुबह 11 बजे से शाम के चार बजे के मध्य बुजुर्गों का बदस्तूर आना-जाना अब कोई नहीं देख पाएगा। इस केंद्र की दीवारों पर टंगे हिमाचल की विकास यात्रा के दुर्लभ चित्र कोई देख नहीं पाएगा। इस केंद्र की खासियत यह थी कि इसमें प्रदेश के खूबसूरत चित्र, जैसे रेणुका झील, कुफरी की ढलानें, चंबा का महल, तत्तापानी के गर्म पानी के चश्में ऐसे लगाए थे जो प्राकृतिक प्रकाश से चलचित्र की भांति नजर आते थे। इस केंद्र की स्थापना वर्ष 1962 में तत्कालीन सरकार ने की थी, जब हिमाचल को बने मात्र 14 वर्ष हुए थे और उस वक्त प्रथम जनवरी, 1957 से टैरिटोरियल काउंसिल स्थापित थी और राज्य की बागडोर उपराज्यपाल के अधीन होती थी। यह केंद्र ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है…

इस धरा पर मनुष्य का जीव तथा निर्जीव वस्तु के साथ जीवनभर एक नाता रिश्ता जुड़ा रहता है। कुछ ऐसी वस्तुएं होती हैं जिनके साथ मानव का पीढ़ी-दर-पीढ़ी जुड़ाव रहता है। उसकी उपस्थिति दिल को सुकून देती है। इनकी पहचान को समाप्त करना तो आसान होता है, लेकिन ऐसी किसी संस्थान, सरकार, व्यक्ति तथा परिवार द्वारा की गई भूल का आभास बहुत उपरांत महसूस होता है। ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर थी, शिमला के ऐतिहासिक माल रोड स्कैंडल प्वाइंट के समीप हिमाचल प्रदेश सूचना एवं जन संपर्क विभाग द्वारा वर्ष 1962 में स्थापित ‘सूचना केंद्र पुस्तकालय’, जिसे हाल ही में बिना किसी सोच-समझ तथा उसकी लंबे समय तक दी गई सेवाओं को दरकिनार कर वर्तमान सरकार द्वारा एक रियासतनुमा आदेश के अनुसार बंद कर दिया।

आदेश देने वालों, उसका पालन करने वालों ने इतनी भी जहमत नहीं समझी कि इस सूचना केंद्र के  खोलने, संचालन के पीछे शिमला के बुजुर्गों, युवाओं का एक फलसफा छुपा था। यह मात्र एक सूचना केंद्र ही नहीं था, लेकिन पाठकों विशेषकर, बुजुर्गों के जीवन के उन दिनों जब उनका साथ समाज, परिवार, दोस्त छोड़ देते हैं, तब एक सुकून देने वाली जगह रही थी। उनका यहां समाचार पत्रों, रसालों तथा पुस्तकों से गहरा नाता-रिश्ता जुड़ा था। सूचना कक्ष के साथ अनेक ऐसे जीवंत किस्से जुड़े हैं जिन्हें इन चंद लाइनों में बयान करना नामुमकिन है। इस केंद्र के पुस्तकाध्यक्ष रहे पंडित लेख राम शर्मा ने मेरे साथ अनेक किस्से साझा किए थे। इनमें से मैं इसकी अहमियत के दो-एक किस्से पाठकों के साथ साझा करना चाहता हूं। पहला, एक सेवानिवृत्त कर्मी जो नियमित रूप से यहां आता था, ने एक दिन पंडित जी से कहा, भाई यह चालीस हजार रुपए इन अखबारों के नीचे कहीं रात को छिपा दो।

मैं इन्हें घर लेकर नहीं जा सकता क्योंकि बच्चे मेरे पैसे लूटने को तैयार बैठे हैं। मैंने एक घर का सौदा किया है। कल उसे देने हैं। दूसरा, वहीं कुछ लोग कहते थे, क्या यह केंद्र रात को खुला नहीं रह सकता। मैं घर नहीं जाना चाहता। वहां घुटन होती है। इन शब्दों में इसकी अहमियत का एहसास स्वतः ही हो जाता है। इसी केंद्र में विभाग के सेवानिवृत्त निदेशक एस.के. बेदी जो उच्चकोटि के लेखक व प्रशासक थे, ने वर्ष 1989 में पुराने दस्तावेजों से कुछ लिखते-लिखते अंतिम सांस ली थी। स्व. कृष्ण लाल कालरा का इस केंद्र से 20 वर्ष तक लगातार रिश्ता बना रहा। वह उपनगर संजौली से रोज माल रोड इस केंद्र में आते थे, तो अकसर कहा करते थे, ‘मुझे तो इस जगह आना सुकून देता है। मेरी उम्र इस केंद्र ने लगभग 20 वर्ष बढ़ा दी है। यहां बैठकर मैं अपना बुढ़ापा भूल जाता हूं।’ एक बात गौरतलब है कि पांच दशकों तक प्रदेश में अनेक सरकारें रहीं, लेकिन किसी भी सरकार ने कभी भी इसे बंद करने के बारे में नहीं सोचा। हो सकता है पूर्व के नेताओं की पुस्तकों को अहमियत का शायद ज्यादा भान था। अब आपको अंदाजा लग गया होगा कि यह सूचना केंद्र मात्र अखबारों, रसालों को पढ़ने की एक चारदिवारी मात्र नहीं था। यह तो जीवन की सच्चाई को बताता एक सजीव केंद्र था। इसकी अलमारियों से झांकती किताबें, रसाले, स्मारिकाएं हिमाचल के गठन, यहां के हालात, इसके लड़कपन से अब तक की दास्तां को छुपाए हुए थीं।

वहीं प्रतियोगी परीक्षा देने वाले मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों के लिए भी यह देवालय से कम न था। वे अनेक समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं को यहां सहजता से पढ़ लेते थे। सुबह दस बजे खुलने वाले इस केंद्र की सीढि़यों पर बच्चों की लाइन लग जाती थी। अब ये सीढि़यां प्रायः सूनी नजर आएंगी। सुबह 11 बजे से शाम के चार बजे के मध्य बुजुर्गों का बदस्तूर आना-जाना अब कोई नहीं देख पाएगा। इस केंद्र की दीवारों पर टंगे हिमाचल की विकास यात्रा के दुर्लभ चित्र कोई देख नहीं पाएगा। इस केंद्र की खासियत यह थी कि इसमें प्रदेश के खूबसूरत चित्र, जैसे रेणुका झील, कुफरी की ढलानें, चंबा का महल, तत्तापानी के गर्म पानी के चश्में ऐसे लगाए थे जो प्राकृतिक प्रकाश से चलचित्र की भांति नजर आते थे। इस केंद्र की स्थापना वर्ष 1962 में तत्कालीन सरकार ने की थी, जब हिमाचल को बने मात्र 14 वर्ष हुए थे और उस वक्त प्रथम जनवरी, 1957 से टैरिटोरियल काउंसिल स्थापित थी और राज्य की बागडोर उपराज्यपाल के अधीन होती थी। उस वक्त विभाग की डोर एच. के. मट्टू के हाथों में थी। यह केंद्र हिमाचल के विकास तथा ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। वर्ष 1966 में विशाल हिमाचल का निर्माण, 1971 में पूर्ण राज्यत्व का दर्जा।

इसके बाद प्रदेश में हुए सभी लोकसभा, विधानसभा के चुनाव परिणामों की जानकारी देने के लिए सूचना केंद्र के रूप में होता रहा है। यहां पर सूचना पट्ट पर चाक से लिखे जाने वाले परिणामों से लेकर इलैक्ट्रॉनिक सूचना पट्ट में तबदील होते इतिहास को लोगों ने देखा है। इसके अलावा ऐतिहासिक रिज मैदान पर हुई सैकड़ों रैलियों, जलसों के दौरान और सरकारों के शपथ समारोहों के लिए सूचना एवं जन संपर्क विभाग का एक अहम नियंत्रण कक्ष के रूप में भी साथ देता रहा है। विभाग के निदेशक दिनेश मल्होत्रा के कार्यकाल में बच्चों के लिए भी एक कक्ष खोला गया था। इसकी अलमारियों में एक पैसे से लेकर हजारों रुपयों तक की लगभग चार हजार दुर्लभ पुस्तकों का खजाना मौजूद था। सूचना विभाग के एक ऐतिहासिक कक्ष पर लगा आज यह ताला आने वाले समय की एक आहट है। बस अब भविष्य में और भी ताले लगने की नौबत आएगी।


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