शिव मंदिर सरकाघाट

By: जीवन धीमान, नालागढ़ Aug 22nd, 2020 12:23 am

सरकाघाट क्षेत्र बहुत सी छोटी- छोटी पहाडि़यों से घिरा एक मध्य हिमालयी क्षेत्र है। इसमें कमलाह धार, लिंडी धार, सिकंद्री धार आदि पहाडि़यां हैं, नदी नालों में सोन खड्ड, सीर खड्ड, जबोठी खड्ड प्रसिद्ध है। सरकाघाट दो शब्दों ‘सर’ अथवा सरोवर या तालाब और ‘घाट’ अथवा श्मशान के मेल से बना है। कहते हैं इस स्थान पर आदिकाल में एक तालाब हुआ करता था, जिसके किनारे आसपास के गांव के लोगों का दाह संस्कार होता था। कहा जाता है कि बाद में शिव गिर नामक साधू ने यहां घोर तपस्या की और शिव मंदिर का निर्माण करवाया और यह स्थान धीरे-धीरे कस्बे और बाद में शहर के रूप में विकसित हुआ। सरकाघाट शुरुआत से ही मंडी रियासत का अभिन्न अंग रहा तथा सेन वंश के शासकों के अधीन रहा, जिसकी सीमाएं कांगड़ा के साथ संधोल और सुकेत के साथ सिकंद्री धार के साथ लगती थी।

बाबा नांगा के धूणे के साथ ही एक सराय थी, वहां एक सुनार रहता था। सुनार एक वैश्या से प्रेम करता था। बाबा सुनार को समझाते रहते कि तुम इस धार्मिक स्थान पर बुरे कर्म मत करो। परंतु बाबा की बातों का उन पर कोई असर नहीं होता और वे बाबा को भला बुरा कहते रहते थे। बाबा नांगा प्रतिदिन सुबह बावड़ी पर स्नान करने जाते और वापसी पर कमंडल में जल भर लाते थे। जब सुनार व वैश्या ने सभी हदें लांघ दी और बाबा के समझाने पर भी नहीं माने, तो एक दिन बाबा बावड़ी से स्नान करके लौटे और हाथ में पानी का कमंडल भर कर लाए। बाबा ने कमंडल के जल को सराय पर छिड़क दिया और देखते ही देखते सराय जलकर राख हो गई। ऐसा चमत्कारी करिश्मा देखकर लोग चकित हो गए। लोग बाबा जी को भगवान की तरह पूजने लगे। इस प्रकार लोगों को सुनार और वैश्या से छुटकारा मिला। बाबा नांगा ने फिर धूणा बैरी के पेड़ के नीचे से उठाकर शिवलिंग के पास लगा दिया। स्थानीय लोगों की मदद से बाबा ने शिव मंदिर का निर्माण करवाया।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बाबा जी के इस करिश्मे को चारों ओर दूर-दूर गांवों तक फैलाया। भारी संख्या में लोग बाबा जी के चरणों में नत्मस्तक करने व भोलेशंकर के मंदिर में माथा टेकने आने लगे। किंवदंति अनुसार कहते हैं कि मंदिर के सामने एक विशाल पानी का सरोवर था, जो लगभग 3 बीघा भूमि में फैला हुआ था और मंदिर के दक्षिण की तरफ एक श्मशानघाट था। इस प्रकार सरकाघाट का नाम शिव सरोवर व घाट को जोड़कर सरकाघाट पड़ा है। यानी ऐसी जगह जहां शिव का वास हो, शीतल व निर्मल जल का सरोवर हो व घाट हो। प्राचीनकाल में शिव मंदिर व सरोवर के चारों ओर घना जंगल था।                                    — जीवन धीमान, नालागढ़


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