सिरमौर से निकली हिमाचल की साहित्यक संस्‍थाएं

By: आचार्य ओमप्रकाश ‘राही’ Aug 30th, 2020 12:05 am

आचार्य ओमप्रकाश ‘राही’

मो.-8278797150

साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों को प्रोत्साहन एवं बढ़ावा देने में सरकारी, अर्द्ध सरकारी एवं गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। सरकारी संस्थाओं के पास जहां सर्वकारीय संबल होता है, वहीं गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं के पास होता है मनोबल, जिसके बल पर वे अपने पवित्र लक्ष्य की ओर गतिशील होती हैं। हिमाचल में भी निश्चित रूप से अनेक ऐसी संस्थाएं हैं जो साहित्यिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं, किंतु यहां सिरमौर के संदर्भ में बात की जा रही है। उच्च कोटि के साहित्यकार, कलाकार, नेता, अभिनेता, कवि, मनीषी, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ‘पहाड़ी मृणाल’ आचार्य चंद्रमणि वशिष्ठ ने भी कुछ ऐसे ही पवित्र उद्देश्य से 1958 में ‘हि. प्र. सिरमौर कला संगम’ की स्थापना की जो न केवल सिरमौर, अपितु हिमाचल की भी प्राचीनतम संस्था है।

तब से अब तक संगीत, नाटक, कवि सम्मेलनों, मुशायरों, गोष्ठियों, सेमिनारों के माध्यम से मनोरंजन के साथ-साथ जनसेवा करना, अनेक पुस्तकों तथा पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं संपादन और इससे भी बढ़कर पर्वतीय संस्कृति की सुरक्षा तथा उत्थान करना और साहित्य, संस्कृति, कला, समाजसेवा, वीरता, पत्रकारिता, गीत-संगीत तथा लोकसंगीत जैसी विभिन्न विधाओं में कुछ विशेष कर रही प्रतिभाओं को सम्मानित कर प्रोत्साहित करना संगम का पवित्र उद्देश्य रहा है। वशिष्ठ जी स्वयं उच्च कोटि के कलाकार होने के साथ एक सफल लोक संपर्क अधिकारी भी थे। इन दोनों दृष्टियों से कलापारखी होने के नाते उनका गजब के कलाकारों से निकट परिचय था। यही कारण है कि अपने जीवनकाल में उन्होंने ऐसे बहुत सारे उल्लेखनीय कार्यक्रम आयोजित करने में सफलता प्राप्त की।

वशिष्ठ जी की जीवनी ‘गुरुवर ब्रह्मर्षि चंद्रमणि वशिष्ठ’ के लेखक सुलेख भारद्वाज पुस्तक के पृष्ठ 37 पर लिखते हैं…‘नाहन की वह दीपावली हमेशा याद रहेगी जब नगरपालिका नाहन द्वारा आयोजित कार्यक्रम के लिए वशिष्ठ जी लखनऊ से पद्मभूषण उस्ताद अहमद जान थिरकवा, उस्ताद अफजल हुसैन नगीना, जरीना बेगम, भजन सम्राट पुरुषोत्तम जलोटा, अनीता तलवार तथा ऊषा टंडन को नाहन लाए थे।’ यह तो एक उदाहरण मात्र है, वास्तव में वशिष्ठ जी ने न जाने ऐसे कितने सफल आयोजन किए थे जिनमें लोकनाट्य ‘करयाला’ व ‘ठोडा’ की परंपरा को बनाए रखना उनका उद्देश्य था। वशिष्ठ जी ने स्वयं अनेक नाटक लिखे भी, अभिनय भी किया और सफल निर्देशन भी। वशिष्ठ जी ने ‘संगम’ के माध्यम से स्थापना दिवस 28 जून को प्रतिवर्ष कुछ विशेष उल्लेखनीय कार्य कर रही प्रतिभाओं को सम्मानित करने का निर्णय लिया। आरंभ में छोटे स्तर पर शुरू कर जिला और प्रदेश स्तर से आगे बढ़ते हुए राष्ट्र की विशेष प्रतिभाओं का चयन कर राष्ट्र स्तरीय अलंकरण समारोह आयोजित करने की व्यवस्था की और इस तरह ‘संगम’ अब तक 800 से अधिक प्रतिभाओं को डा. परमार, महाराजा राजेंद्र प्रकाश तथा आचार्य वशिष्ठ सम्मान से सम्मानित कर चुका है। वशिष्ठ जी की तरह ही साहित्य एवं लोक संस्कृति के पुरोधा स्व. वैद्य सूरत सिंह ने ऐसे ही पवित्र उद्देश्य से 1974 में ‘पहाड़ी कलाकार संघ’ की स्थापना की जिसमें जयप्रकाश चौहान को अध्यक्ष और विद्यानंद सरैक को निदेशक बनाया गया।

भले ही इस संस्था का विशेष ध्यान सांस्कृतिक गतिविधियों की ओर रहा और इसने आकाशवाणी तथा दूरदर्शन को उच्च श्रेणी के कलाकार भी दिए, तथापि साहित्यिक क्षेत्र में भी संस्था का योगदान स्तुत्य रहा है और अनेक वर्षों तक ‘पर्वत बोले’ पत्रिका के माध्यम से यह अपना साहित्यिक धर्म बखूबी निभाती रही। सिरमौर की एक अन्य प्रतिभा सत्यापुरी ‘नाहनवी’ ने 1981 में ‘कलाधारा’ और कुछ समय पश्चात ‘स्वरगंधा’ की स्थापना की और ‘हिम कलाधारा’ पत्रिका का संपादन कर अपना साहित्यिक योगदान देती रही। एक दशक बाद 1992 से नाहन के मशहूर शायर नासिर यूसुफ जई ‘कलाधारा’ तथा भारत भूषण मोहिल ‘स्वरगंधा’ के अध्यक्ष के रूप में इस धारा को निरंतर गतिशील बनाए हुए साहित्यिक खुशबू को फैला रहे हैं।

1995 में पंजीकृत नाहन की एक अन्य संस्था ‘रश्मि प्रकाशन’ अपने संस्थापक अध्यक्ष दीनदयाल वर्मा के सफल मार्गदर्शन में अनेक साहित्यिक आयोजनों तथा पुस्तक प्रकाशन एवं वितरण द्वारा साहित्य एवं साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने में निरंतर गतिशील है। अपने इसी पवित्र उद्देश्य में संस्था अब तक पुस्तकों की सात हजार से अधिक प्रतियां निःशुल्क वितरित कर चुकी है। साहित्य, कला, संस्कृति व संगीत के संरक्षण और समाजसेवा के विभिन्न आयामों को जीवंत बनाए रखने के उद्देश्य से 2015 में डा. सुरेश जोशी तथा प्रो. अमर सिंह चौहान के संरक्षण में नाहन के प्रबुद्ध साहित्यकार श्रीकांत अकेला द्वारा स्थापित संस्था ‘शंखनाद मीडिया’ न केवल मासिक पत्र ‘शिखरों से शंखनाद’ कर रही है, बल्कि साहित्यिक संगोष्ठियों, परिचर्चा व सम्मेलन आदि के साथ सम्मान समारोह आयोजित कर साहित्यकारों को प्रोत्साहित भी कर रही है। पांवटा साहिब की साहित्यिक संस्था ‘विधा’ पिछले अनेक वर्षों से साहित्य सेवा में संलग्न है और आजकल कोरोना काल में ऑनलाइन साहित्यिक संगोष्ठियां आयोजित कर ख्याति अर्जित किए हुए है।


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