आजीविका और जैव विविधता: कुलभूषण उपमन्यु, अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

By: कुलभूषण उपमन्यु, अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान Sep 3rd, 2020 12:07 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

यदि जैव विविधता बढ़ाने की दृष्टि से वन प्रबंध किया जा रहा हो, तभी किसी वन क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाएं देने की क्षमता अधिकतम हो सकती है। जो वन व्यापारिक दृष्टि से निम्नीकृत माना जाएगा, वह स्थानीय आजीविका की दृष्टि से स्वस्थ वन हो सकता है। गरीबी के अनेक कारणों में से पारिस्थितिकीय संतुलन का नष्ट होना सबसे प्रमुख कारण है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश आजीविका उपक्रम स्वस्थ पारिस्थितिक व्यवस्था पर ही आधारित हैं। चाहे कृषि हो, पशुपालन हो, गैर इमारती वन उपजें हों या जल संसाधनों में उपलब्ध विविधता हो…

भारतवर्ष में चार में से तीन गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी का 70 से 90 फीसदी भाग कृषि भूमि, वन और जल पर आधारित आजीविका पर निर्भर रहता है। ये तीन संसाधन ही जैव विविधता का अधिष्ठान हैं। किंतु इनमें वन सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जल की उपलब्धता और शुद्धिकरण और कृषि भूमि का उपजाऊपन भी बहुत हद तक वनों के स्वस्थ स्थिति में बने रहने पर ही निर्भर करता है। जाहिर है कि कृषि भूमि, वन और जल पर आधारित आजीविका पर आश्रित समुदाय तभी संपन्न हो सकते हैं यदि ये संसाधन आजीविका प्रदान करने वाले जैव विविध उत्पादों से परिपूर्ण हों। जितनी ज्यादा जैव विविधता होगी, उतने ही ज्यादा अवसर विभिन्न आजीविका विकल्प खड़े करने के लिए उपलब्ध होंगे। इसी पर इन समुदायों की समृद्धि का भविष्य निर्भर करता है। अतः जरूरी है कि वनों में जैव विविधता की रक्षा और उसके अनुरूप वन संवर्धन, संरक्षण की योजना बने। इसके लिए स्वस्थ वन और निम्नीकृत वन को परिभाषित करना जरूरी हो जाता है। एफएओ द्वारा मान्य परिभाषा के अनुसार जो वन क्षेत्र अधिकतम वस्तुएं और सेवाएं प्रदान कर सके, वह  स्वस्थ वन और वस्तुओं और सेवाएं प्रदान करने की क्षमता में कमी के अनुरूप उस वन को निम्नीकृत वन कहा  जाएगा। अधिकतम वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने की क्षमता अधिकतम जैव विविधता के संरक्षण और उपलब्धता पर ही निर्भर करती है। भारतवर्ष में स्वस्थ वन और निम्नीकृत वन का निर्धारण करने के लिए वनों में वृक्षों के छत्र के घनत्व को सूचक माना है। 70 फीसदी से ऊपर घनत्व वाला वन स्वस्थ वन माना जाता है और इससे कम घनत्व वाला तुलनात्मक रूप से निम्नीकृत वन माना जाता है। 30 फीसदी से कम घनत्व वाले वन को नष्टप्रायः वन की श्रेणी में माना जाता है।

वृक्षों के छत्र घनत्व के आधार पर वन क्षेत्र को स्वस्थ वन घोषित करना काफी भ्रामक मामला है, क्योंकि छत्र घनत्व 100 फीसदी होने पर भी कई वन वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करने के मामले में निम्नीकृत हो सकते हैं, जैसे कि एकल प्रजाति के चीड़, सफेदा आदि के बनावटी वन और छत्र घनत्व कम दिखने वाले वन भी वस्तुओं और सेवाएं प्रदान करने के मामले में अग्रणी हो सकते हैं जैसे कि सिल्वि पेस्टोरल पद्धति से प्रबंधित वन, जिनमें घनत्व कम होने के बावजूद चारा और घास प्रचुर मात्रा में प्रदान करने की क्षमता के साथ साथ जल संरक्षण, भूसंरक्षण की भी क्षमता ज्यादा होती है। इसलिए यह इस बात पर आधारित करता है कि वन प्रबंध किस उद्देश्य के लिए किया जा रहा है। यदि जैव विविधता बढ़ाने की दृष्टि से वन प्रबंध किया जा रहा हो, तभी किसी वन क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाएं देने की क्षमता अधिकतम हो सकती है।

 जो वन व्यापारिक दृष्टि से निम्नीकृत माना जाएगा, वह स्थानीय आजीविका की दृष्टि से स्वस्थ वन हो सकता है। गरीबी के अनेक कारणों में से पारिस्थितिकीय संतुलन का नष्ट होना सबसे प्रमुख कारण है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश आजीविका उपक्रम स्वस्थ पारिस्थितिक व्यवस्था पर ही आधारित हैं। चाहे कृषि हो, पशुपालन हो, गैर इमारती वन उपजें हों या जल संसाधनों में उपलब्ध विविधता हो। संयुक्त राष्ट्र संघ की सहस्राब्दी आकलन रिपोर्ट में माना गया है कि दुनिया में मरुस्थलीकरण और सूखे के कारण एक बिलियन लोगों के सिर पर आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। इसलिए वनों की स्थिति और निम्नीकरण पर सटीक जानकारी की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि निम्नीकरण से समय रहते निपटा जा सके। 2010 के जैव विविधता सम्मेलन में जैव विविधता बढ़ाने और वन विनाश को रोकने का लक्ष्य रखा गया था। उस लक्ष्य से हम न भटकें, इसके लिए भी वन निम्नीकरण पर सटीक जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए। वन निम्नीकरण को रोकने के लिए कई बार ऐसी योजनाएं बन जाती हैं जो वन रोपण को ऐसी दिशा दे देती हैं जो जैव विविधता के लिए घातक होती है। जैसे लकड़ी आधारित उपयोगों को वनीकरण में आकर्षित करना, क्योंकि औद्योगिक घरानों की रुचि थोड़े समय और स्थान में अधिक से अधिक औद्योगिक कच्चा माल तैयार करने में होगी, इसलिए जैव विविधता की स्थिति पर समझौता होगा। इससे अच्छा हो यदि सरकार स्वयं या स्थानीय समुदायों के सहयोग से विविधतापूर्ण वन तैयार करने का कार्य करे।

 2019 में ब्रिटिश सरकार के आर्थिकी और वित्त मंत्रालय द्वारा जैव विविधता के अर्थशास्त्र पर एक समीक्षा करवाई गई, जिसका उद्देश्य जैव विविधता पर वैश्विक पहलों को बढ़ावा देना और संयुक्त राष्ट्र संघ के सहस्राब्दी टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग देना था। इस समीक्षा में कुछ मूलभूत मान्यताओं पर एक समझ बनी जिसमें मुख्य बिंदु निम्न थे। एक, जैव विविधता का अर्थशास्त्र यानी प्रकृति का अर्थ शास्त्र। दो, जैव विविधता प्रकृति का जरूरी स्वभाव है जो पर्यावरणीय सेवाओं को प्रदान करके हमारी अर्थ व्यवस्थाओं और आजीविकाओं को मजबूती देता है। तीन, प्रकृति एक संपदा की तरह है जैसे कि विभिन्न उत्पाद और मानव संपदा और कि हम अपनी संपदाओं का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पा रहे हैं। चार, प्रकृति विनाश को परिसंपत्ति प्रबंधन की समस्या मानना और बेहतर प्रबंध की ओर बढ़ना। पांच, प्रकृति से हमारी मांग प्रकृति की आपूर्ति क्षमता से बहुत अधिक है, अतः मांग और आपूर्ति में संतुलन लाना। छह, प्रकृति की सीमाओं को समझना और सात, अपनी और आने वाली नस्लों के भविष्य को ध्यान में रख कर प्रकृति के दोहन को संतुलित करना। भारतवर्ष भी सहस्राब्दी टिकाऊ विकास लक्ष्यों की व्यवस्था का हस्ताक्षरकर्ता है। इस दृष्टि से जैव विविधता के प्रति संवेदनशील विकास नीति का अनुशीलन हमें करना चाहिए।


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