आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों के बादल: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल

By: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल Sep 16th, 2020 7:30 am

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसिपल

विशेषज्ञों का मानना है कि जीडीपी डेटा में असंगठित क्षेत्र की स्थिति का पता नहीं चलता है। जीडीपी डेटा में असंगठित सेक्टर को शामिल नहीं किया जाता है जो देश के 94 फीसदी रोजगार का उत्तरदायित्व उठाता है। अगर जीडीपी निगेटिव दायरे में आ जाती है तो इसका मतलब है कि असंगठित क्षेत्र का प्रदर्शन संगठित सेक्टर के मुकाबले और ज्यादा बुरा है। ऐसे में अगर जीडीपी ग्रोथ 10 से 15 फीसदी के करीब रहती है तो इसका मतलब है कि असंगठित क्षेत्र की ग्रोथ 20 से 30 फीसदी के बीच होगी। सीधे शब्दों में जीडीपी के आंकड़े दिखाते हैं कि संगठित क्षेत्र का प्रदर्शन कैसा है, लेकिन यह पूरी तरह से असंगठित क्षेत्र की उपेक्षा करता है, जिसमें देश की गरीब आबादी आती है। यह चीज ध्यान में रखने वाली है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गुजरे चार साल से सुस्ती में चल रही है… 

कोरोना महामारी और अन्य आर्थिक कारणों से जनित देश के जीडीपी में लगातार गिरावट  चिंता बटोर रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में 23.9 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े जारी किए हैं। इन आंकड़ों में जीडीपी में भारी गिरावट देखी गई है। सकल घरेलू उत्पाद में इससे पूर्व वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं। जीडीपी आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है और इससे पता चलता है कि सालभर में अर्थव्यवस्था ने कितना अच्छा या खराब प्रदर्शन किया है। अगर जीडीपी डेटा सुस्ती को दिखाता है तो इसका मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है और देश ने इससे पिछले साल के मुकाबले पर्याप्त सामान का उत्पादन नहीं किया और सेवा क्षेत्र में भी गिरावट रही। भारत में सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (सीएसओ) साल में चार दफा जीडीपी का आकलन करता है। यानी हर तिमाही में जीडीपी का आकलन किया जाता है। चार अहम घटकों के जरिए जीडीपी का आकलन किया जाता है। पहला घटक ‘कंजम्पशन एक्सपेंडिचर’ है। यह गुड्स और सर्विसेज को खरीदने के लिए लोगों के कुल खर्च को कहते हैं। दूसरा ‘गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर’, तीसरा ‘इनवेस्टमेंट एक्सपेंडिचर’ है और आखिर में नेट एक्सपोर्ट्स आता है। जीडीपी का आकलन नॉमिनल और रियल टर्म में होता है।

नॉमिनल टर्म्स में यह सभी वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा कीमतों पर वैल्यू है। रियल जीडीपी को ही हम आमतौर पर अर्थव्यवस्था की ग्रोथ के तौर पर मानते हैं। जीडीपी के डेटा को आठ सेक्टरों से इकट्ठा किया जाता है। इनमें कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रिसिटी, गैस सप्लाई, माइनिंग, क्वैरीइंग, वानिकी और मत्स्य, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फाइनेंसिंग, रियल एस्टेट और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और कम्युनिटी, सोशल और सार्वजनिक सेवाएं शामिल हैं। आम जनता के लिए यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार और लोगों के लिए फैसले करने का एक अहम फैक्टर साबित होता है। अगर जीडीपी बढ़ रही है तो इसका मतलब यह है कि देश आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में अच्छा काम कर रहा है और सरकारी नीतियां जमीनी स्तर पर प्रभावी साबित हो रही हैं और देश सही दिशा में जा रहा है। अगर जीडीपी सुस्त हो रही है या निगेटिव दायरे में जा रही है तो इसका मतलब यह है कि सरकार को अपनी नीतियों पर काम करने की जरूरत है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद की जा सके। इसी तरह से नीति निर्धारक जीडीपी डेटा का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था की मदद के लिए नीतियां बनाने में करते हैं। भविष्य की योजनाएं बनाने के लिए इसे एक पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

हालांकि जीडीपी में कई सेक्टरों को कवर किया जाता है ताकि अर्थव्यवस्था की ग्रोथ का आकलन किया जा सके। लेकिन यह अभी भी हर चीज को कवर नहीं करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जीडीपी डेटा में असंगठित क्षेत्र की स्थिति का पता नहीं चलता है। जीडीपी डेटा में असंगठित सेक्टर को शामिल नहीं किया जाता है जो देश के 94 फीसदी रोजगार का उत्तरदायित्व उठाता है। अगर जीडीपी निगेटिव दायरे में आ जाती है तो इसका मतलब है कि असंगठित क्षेत्र का प्रदर्शन संगठित सेक्टर के मुकाबले और ज्यादा बुरा है। ऐसे में अगर जीडीपी ग्रोथ 10 से 15 फीसदी के करीब रहती है तो इसका मतलब है कि असंगठित क्षेत्र की ग्रोथ 20 से 30 फीसदी के बीच होगी। सीधे शब्दों में जीडीपी के आंकड़े दिखाते हैं कि संगठित क्षेत्र का प्रदर्शन कैसा है, लेकिन यह पूरी तरह से असंगठित क्षेत्र की उपेक्षा करता है, जिसमें देश की गरीब आबादी आती है। यह चीज ध्यान में रखने वाली है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गुजरे चार साल से सुस्ती में चल रही है। साल 2016-17 में जीडीपी 8.3 फीसदी से बढ़ी थी। इसके बाद 2017-18 में ग्रोथ सात फीसदी रही। 2018-19 में यह 6.1 फीसदी और 2019-20 में यह गिरकर 4.2 फीसदी पर आ गई। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड संकट ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। ग्रोथ को बढ़ाने के तत्काल कदमों की गैर मौजूदगी में भारत में आमदनी और जीवन गुणवत्ता एक दशक के ठहराव में पहुंच सकती है। कोविड महामारी ने इस समय देश के आर्थिक हालात को और बुरा कर दिया है। अनेक अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले रिकवरी करने में भारत को ज्यादा वक्त लग सकता है। जून तिमाही में पिछले साल के मुकाबले 23.9 पर्सेंट की गिरावट दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। इस दौरान ब्रिटेन की जीडीपी में भी 22 फीसदी की गिरावट आई है। कुछ सालों पहले भारत आठ फीसदी तक ग्रोथ रेट हासिल करने में कामयाब रहा था। लेकिन इसके बाद नॉन बैंकिंग फाइनेंस सेक्टर में संकट और उपभोग में कमी से विकास दर में गिरावट दर्ज की जा रही थी।

 अर्थव्यवस्था को मौजूदा ज्यादातर नुकसान कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुआ है, जो बीमारी की मौजूदगी के बाद तक बना रहेगा। बैंक उधार देने को लेकर सावधानी बरत रहे हैं। एक प्राइवेट थिंक टैंक सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी का अनुमान है कि अप्रैल से जुलाई के बीच 1.89 करोड़ वेतनभोगी भारतीयों या कुल कार्यबल के 21 फीसदी की नौकरी छिन गई। इसके अलावा 70 लाख दैनिक वेतनभोगी का भी रोजगार छिन गया। विश्व बैंक का अनुमान है कि 1.2 करोड़ भारतीय अत्यधिक गरीबी में चले जाएंगे। यह एक बहुत डरावना सपना होगा। यूं तो भारतीय रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था के लिए प्रोत्साहन का बहुत अधिक बोझ उठाया है और फाइनैंशल सिस्टम में लिक्विडिटी ऑपरेशंस के जरिए पैसा झोंका है। जहां तक पारंपरिक मौद्रिक नीति की बात है, कुछ और करने की गुंजाइश सीमित है। रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में की गई कटौती को ग्राहकों तक पहुंचाने में बैंक सुस्त रहे हैं। मुख्य रूप से खराब कर्ज की अधिकता के कारण ऋण वृद्धि में कमी आई है। इस तरह भविष्य के लिए बुरे संकेत हैं। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए गहन चिंतन करने की जरूरत है।

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App