आत्मसम्मान ही सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार: प्रो. सुरेश शर्मा, लेखक नगरोटा बगवां से हैं

By: प्रो. सुरेश शर्मा, लेखक नगरोटा बगवां से हैं Sep 5th, 2020 12:07 am

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक नगरोटा बगवां से हैं

बहुत से अध्यापक पुरस्कार की चाहत रखते हैं, योग्यता भी रखते हैं, परंतु आवेदन प्रक्रिया की जटिलताओं से परेशान होकर दूर से ही पुरस्कार को नमस्कार कर देते हैं। सेना या पुलिस में सम्मान, पदक या अलंकरण के लिए आवेदन नहीं करना पड़ता। इसी प्रकार शिक्षक पुरस्कारों के लिए विभाग द्वारा शिक्षकों के कार्यों की नियमित निगरानी होनी चाहिए। शिक्षा अधिकारियों तथा शिक्षा प्रशासन की आंख हर समय खुली होनी चाहिए। अच्छे कार्यों के लिए सम्मान तथा काम न करने वालों के लिए दंड का विधान होना चाहिए…

किसे पुरस्कृत होने की इच्छा नहीं होती? कौन अपने परिश्रम, समर्पण, निष्ठा, ईमानदारी तथा उल्लेखनीय कार्यों के लिए व्यवस्था से सम्मानित व अलंकृत नहीं होना चाहता? कार्य व्यवस्था में समर्पित व्यक्तियों की तो बात ही छोड़ो, कुछ लोग व्यवस्था में अधिक कर्मठ एवं समर्पित नहीं होते हुए भी मौका पाकर सबसे पहले पुरस्कारों के लिए अपनी दावेदारी तथा अधिकार जता देते हैं। मनुष्य का स्वाभाविक गुण और प्रकृति है कि वह अपने अच्छे, श्रेष्ठ तथा उल्लेखनीय कार्य के लिए व्यवस्था संचालकों, प्रबंधकों व प्रशासनिक अधिकारियों से प्रशंसा एवं शाबाशी चाहता है। यही प्रोत्साहन उसे भविष्य में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। अपने कार्य क्षेत्र में प्रशंसा, सम्मान, अलंकरण, उपाधि एवं पहचान प्राप्त करना सभी का स्वाभाविक गुण, चाहत एवं इच्छा होती है। दुनिया के सभी कार्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट एवं सर्वश्रेष्ठ कार्य करने तथा विशिष्ट सेवाएं देने वाले व्यक्तियों को समय-समय पर पुरस्कारों, अलंकरणों तथा उपाधियों से सम्मानित किया जाता है। इससे जहां लोगों को बेहतरीन कार्य करने की प्रेरणा मिलती है, वहीं पर उस कार्य क्षेत्र की व्यवस्था के संचालन में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वालों की पहचान भी होती है। कार्य क्षेत्र में यही प्रोत्साहन औरों के लिए अभिप्रेरणा का कारण भी बनता है। प्रत्येक वर्ष पांच सितंबर को शिक्षक दिवस पर देश तथा विभिन्न प्रदेशों में योग्य, कर्मठ, निष्ठावान, समर्पित तथा श्रेष्ठ अध्यापकों को उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है।

आवेदन करने के बाद शिक्षक को एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। कई बार ऐसे भी अवसर आए कि पुरस्कारों की सूची में अपना नाम न पाकर लोगों द्वारा न्यायालयों में भी मामले दर्ज हुए हैं। पुरस्कार वापस भी करने पड़े हैं। कई मामलों में जांच भी हुई है। कई बार पुरस्कार घोषित होने के बाद भी अध्यापकों के नाम बदले गए हैं। ऐसे में व्यवस्था की किरकिरी होती है और पुरस्कारों की खुशी का रंग फीका पड़ जाता है। हिमाचल प्रदेश में पुरस्कारों के लिए आवेदन के नियमों, योग्यताओं तथा शर्तों को बदला गया है। इसके बावजूद कोई भी संतुष्ट नहीं है। कुछ शिक्षक अपने स्मार्ट वर्क के साथ-साथ पुरस्कार प्रबंधन कला में भी प्रवीण होते हैं। जब-जब पुरस्कार कला प्रबंधन कौशल प्राप्त लोग अपने अनुचित प्रभाव से सफल हो जाते हैं, तब-तब अपनी मर्यादाओं में रहने वाले कर्मठ, निष्ठावान, ईमानदार तथा समर्पित तथा स्वाभिमानी व्यक्ति पुरस्कार को नमस्कार ही करते रहे हैं। अयोग्य लोगों को पुरस्कार मिलने से दो दुष्प्रभाव हैं। एक तो योग्य लोगों का अपमान होकर उनका मनोबल टूटता है, दूसरे व्यवस्था अयोग्य व्यक्ति को काबिल व्यक्ति के सिर पर बिठा देती है। बहुत से अध्यापक पुरस्कार की चाहत रखते हैं, योग्यता भी रखते हैं, परंतु आवेदन प्रक्रिया की जटिलताओं से परेशान होकर दूर से ही पुरस्कार को नमस्कार कर देते हैं। सेना या पुलिस में सम्मान, पदक या अलंकरण के लिए आवेदन नहीं करना पड़ता। इसी प्रकार शिक्षक पुरस्कारों के लिए विभाग द्वारा शिक्षकों के कार्यों की नियमित निगरानी होनी चाहिए। शिक्षा अधिकारियों तथा शिक्षा प्रशासन की आंख हर समय खुली होनी चाहिए। अच्छे कार्यों के लिए सम्मान तथा काम न करने वालों के लिए दंड का विधान होना चाहिए। शिक्षकों और शिक्षा व्यवस्था को जिम्मेदार एवं उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। पुरस्कार प्रदान किया जाना चाहिए, न कि पुरस्कार आवेदन करके मांगा जाना चाहिए।

यदि व्यवस्था का सम्मान करते हुए आवेदन करना भी पड़े तो सही मूल्यांकन कर योग्य शिक्षकों का चयन हो, लेकिन हर हालत में शिक्षा, शिक्षक, पुरस्कार तथा पुरस्कृत शिक्षक की गरिमा बनी रहनी चाहिए। इसी में शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता तथा खूबसूरती है, जिससे शिक्षक गौरवान्वित महसूस करें तथा पुरस्कार की चाहत रखने वाले शिक्षक अधिक से अधिक मेहनत करें। हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में इस समय विभिन्न श्रेणियों के लगभग सहत्तर से अस्सी हजार शिक्षक कार्यरत हैं। इस वर्ष सत्ताईस शिक्षक पुरस्कारों के लिए केवल सैंतालीस अध्यापकों ने ऑनलाइन माध्यम से आवेदन किया तथा सोलह अध्यापकों को पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। इतनी कम संख्या में अध्यापकों द्वारा आवेदन करना इन पुरस्कारों के प्रति उदासीनता व निराशा का भाव प्रकट करता है या पुरस्कार चयन प्रक्रिया में आवेदन प्रक्रिया की जटिलता को प्रकट करता है। इसका एक अर्थ यह भी है कि या तो लोग कार्य नहीं करते या फिर योग्य अध्यापक आवेदन नहीं करना चाहते हैं। शिक्षक दिवस तो बहुत ही गौरव, उल्लास, उमंग, प्रसन्नता तथा उत्सुकता से मनाया जाना चाहिए। वर्तमान में बहुत से सामाजिक, राजनीतिक तथा शैक्षणिक कारण हैं जिनसे अध्यापकों की गरिमा में कमी आई है। अध्यापकों के चरित्र, आचार-व्यवहार तथा संस्कार पर सामाजिक उंगलियां उठी हैं। इक्कीसवीं शताब्दी के युग में जहां शिक्षकों को अपनी परंपराओं, संस्कारों तथा पुरातन शिक्षा संस्कृति को आगे लेकर बढ़ना है, वहीं पर आधुनिकता के परिवेश में नई तकनीकों, प्रयोगों, शोध और खोज के साथ नई पीढ़ी की आशाओं और आकांक्षाओं पर भी खरा उतरना है। वर्तमान में शिक्षक के सामने जहां अनेकों अवसर प्राप्त हैं, वहीं पर चुनौतियां भी कम नहीं हैं।

आज पुरानी फिल्मों में दिखाए जाने वाले धोती-लंगोटी, टोपी व सोठी के शिक्षक की परिकल्पना को छोड़ स्मार्ट कक्षा के ‘स्मार्ट शिक्षक’ होने की आवश्यकता है। शिक्षकों को आज अपने ज्ञान के साथ-साथ पुरानी शिक्षा संस्कृति तथा नए तकनीक माध्यमों को अपनाने व आत्मसात करने  की आवश्यकता है। उन्हें अपने आचरण, व्यवहार और संस्कार में भी परिवर्तन करना होगा। समर्पित, निष्ठावान, ईमानदार तथा परिश्रमी अध्यापक का सम्मान समाज में अंतिम सांस तक कम नहीं होता। शिक्षकों को पीढि़यों के विकास और निर्माण के लिए तथा शिक्षा की गुणवत्ता के लिए संकल्पित होकर अपने आप को अनुकरणीय एवं उदाहरणीय स्थापित करने का प्रयास करना होगा। पुरस्कारों की गरिमा तब तक नहीं स्थापित हो सकती जब तक वह शिक्षक के कार्यों में प्रतिबिंबित नहीं होती।


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