छात्रों के विकास में सहायक होगी नई नीति: डा. ओपी शर्मा, लेखक शिमला से हैं

By: डा. ओपी शर्मा, लेखक शिमला से हैं Sep 17th, 2020 8:05 am

डा. ओपी शर्मा

लेखक शिमला से हैं

देश में भारतीय भाषाओं का महत्त्व बढ़ेगा और भाषा ज्ञान का विस्तार होगा। कुल मिलाकर नई शिक्षा नीति में 6वीं श्रेणी से व्यावसायिक शिक्षा शुरू होगी, आठवीं से छात्र अपनी इच्छा के विषय रख सकेगा। बी.ए. में भी विषय अपनी मर्जी से ले सकेंगे। विज्ञान के साथ संगीत विषय भी ले सकेंगे। छात्रों को स्कूल, कॉलेज छोड़ने की छूट होगी। उच्च शिक्षा के लिए एक ही विश्वविद्यालय, प्राधिकरण संगठन होगा। नया अध्यापक प्रशिक्षण बोर्ड बनाया जाएगा जो देश भर के विभिन्न स्तर के अध्यापकों को प्रशिक्षण का प्रबंध करेगा…

नई शिक्षा नीति छात्रों के सर्वांगीण विकास का सूर्योदय है। पूर्व में भी शिक्षा के विकास के लिए भरसक प्रयास किए गए हैं। स्वतंत्रता के पश्चात यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन 1948-49, सेकेंडरी एजुकेशन कमीशन 1952-53, इंडियन एजुकेशन कमीशन 1964-66, शिक्षा नीति 1984-85 महत्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं जिनके द्वारा समयानुसार छात्रों के विकास के लिए व्यावहारिक शिक्षा प्रावधान किए गए। इससे पहले वर्ष 1901 में लार्ड कर्जन वायसराय के समय शिक्षा नीति के लिए देश के प्रसिद्ध शिक्षाविदों, अधिकारियों व प्रतिष्ठित लोगों की बैठक की गई थी जिसमें 101 लोगों ने भाग लिया था। इसमें एक भी भारतीय शामिल नहीं हुआ। इस बैठक में अंग्रेजी अफसरों ने शिक्षा नीति बनाई जिसके अनुसार शिक्षा संस्थाओं की स्थापना हुई। इस नीति में भारतीय भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा देने का प्रावधान किया गया था। लार्ड मैकाले ने कहा था कि भारतीयों को ऐसी शिक्षा दी जाए जो लोगों  को अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा में रंग दे। उनका कहना था कि छात्र शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात बाहर से अर्थात तन से भारतीय हों, परंतु मन से अंग्रेज हों, ब्रिटिश शासन के प्रशंसक व हिमायती हों। यही शिक्षा-दीक्षा भरतीयों को 1947 तक मिलती रही। लोगों में जबरदस्त जागरूकता आई जो देश को स्वतंत्र कराने में काफी हद तक सफल रही। छात्रों के विकास में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा से भावात्मक, बौद्धिक, मानसिक, सांस्कृतिक व शारीरिक विकास होता है।

1984-85 की शिक्षा नीति में विकास व बदलाव समय की आवश्यकता अनुसार लिया गया है। वर्ष 1984 और 1985 की शिक्षा नीति में शिक्षा का उद्देश्य छात्र का सर्वांगीण, उसकी क्षमताओं का पूर्ण विकास तथा मानव के सभी संसाधनों का हरसंभव विकास तथा कल्याण था। इसी में शिक्षा, संस्कृति, युवा कार्य, खेल आदि का विकास करना था। इसीलिए सरकार ने शिक्षा मंत्रालय से मानव संसाधन विकास मंत्रालय की स्थापना की थी। वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य ही छात्रों का हर तरह का विकास करना है। उसकी बौद्धिक, शारीरिक क्षमता, खेलों द्वारा शारीरिक विकास, संस्कृति का ज्ञान, संगीत शिक्षा, योगाभ्यास तथा संबंधित सभी कार्यक्रम सम्मिलित हैं। इसी शिक्षा नीति से वर्ष 1985 से लेकर अब तक शिक्षा में चहुंमुखी विकास हुआ। करोड़ों छात्रों को शिक्षा के उच्च आयाम प्राप्त करने का अवसर मिला। छात्रों की संख्या हर प्रदेश में लाखों में बढ़ती गई और कितने ही लोगों को देश व विदेश में रोजगार प्राप्त हुए। इस समय, इन वर्षों में देश में आर्थिक, औद्योगिक, शैक्षिक विकास से कई नई-नई चुनौतियां सामने उभर कर आई हैं। देश में कई प्रकार के रोजगार व स्वरोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं। तकनीकी विकास से कई प्रकार के शिक्षित, प्रशिक्षित लोगों की बड़ी आवश्यकता महसूस की जा रही है। आज देश को एमए, एमफिल, पीएचडी के स्थान पर सेमी एजुकेटिड, स्किल्ड वर्कर, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट होल्डर जो विभिन्न विषयों के एक्सपर्ट हों, की गहन आवश्यकता है जो आधुनिक निर्माण, कृषि, बागवानी, खनिज व उद्योगों की गति बढ़ाएं। नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया गया है। प्राथमिक शिक्षा तीन से पांच वर्ष की होगी। छात्र तीन वर्ष से पांच वर्ष तक की प्री प्राइमरी शिक्षा ग्रहण करेगा। छह वर्ष आयु से पांच वर्ष प्राथमिक विद्यालय व 6, 7, 8वीं कक्षा मिडिल स्कूल में होगी।

 9वीं, 10वीं व 11वीं कक्षा उच्च विद्यालय में होगी। मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा व माध्यमिक शिक्षा दी जाएगी। इस प्रकार विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का विकास होगा। 12वीं कक्षा अब स्कूल की बजाय कॉलेज में होगी। पूर्व की स्थिति की अपेक्षा इस समय छात्र काफी होशियार, बुद्धिमान, शिक्षित स्तर की काफी समझ रखता है, वे कॉलेज शिक्षा लेने में सक्षम हैं। इसलिए 12वीं कक्षा कॉलेज में शामिल करना उचित ही है और छात्रों के हित में है। 12वीं कक्षा के बाद छात्र एक या दो वर्ष पढ़ने के बाद यदि उसका मन तकनीकी शिक्षा लेने का करता है तो वह कॉलेज से सर्टिफिकेट लेकर ही आई.टी.आई. डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश ले सकता है। डिप्लोमा करने के पश्चात यदि छात्र को रोजगार नहीं मिलता है और वह बी.ए., एम.ए. करना चाहता है तो वह कॉलेज में दाखिला ले सकता है। अब मंत्रालय का काम काफी बढ़ गया है। नई शिक्षा नीति से शिक्षा मंत्रालय केवल शिक्षा का प्रभार देखेगा। संस्कृति, युवा कार्यक्रम व खेल के लिए अलग मंत्रालय अपनी गतिविधियां चलाएगा। गतिविधियों में छात्र-युवा संख्या में बढ़ोतरी के कारण कई नए कार्यक्रम चालू किए गए हैं तथा और बढ़ोतरी की अपेक्षा है। युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने के लिए कई योजनाएं कौशल विकास, प्रधानमंत्री सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग, कल्याण योजनाएं आदि चालू करने के लिए वृहद प्रशिक्षण का प्रावधान है।

देश में भारतीय भाषाओं का महत्त्व बढ़ेगा और भाषा ज्ञान का विस्तार होगा। कुल मिलाकर नई शिक्षा नीति में 6वीं श्रेणी से व्यावसायिक शिक्षा शुरू होगी, आठवीं से छात्र अपनी इच्छा के विषय रख सकेगा। बी.ए. में भी विषय अपनी मर्जी से ले सकेंगे। विज्ञान के साथ संगीत विषय भी ले सकेंगे। छात्रों को स्कूल, कॉलेज छोड़ने की छूट होगी। उच्च शिक्षा के लिए एक ही विश्वविद्यालय, प्राधिकरण संगठन होगा। नया अध्यापक प्रशिक्षण बोर्ड बनाया जाएगा जो देश भर के विभिन्न स्तर के अध्यापकों को प्रशिक्षण का प्रबंध करेगा। कॉलेजों को स्वायत्तता दी जाएगी ताकि वे छात्रों की शिक्षा की जरूरतों को पूरा कर सकें। इस प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पूरे देश में छात्रों, अभिभावकों व अध्यापकों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगी। छात्रों की क्षमताओं का संपूर्ण विकास हो, छात्रों के साथ-साथ शिक्षा ज्ञान का अथाह भंडार भरे, मानवता को भविष्य में सैकड़ों वर्षों तक मार्गदर्शन, शिक्षा समृद्धि, सुख-शांति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता तथा स्वावलंबी संतोष की प्राप्ति हो, ऐसी संभावना व्यक्त होती है।


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