क्लासरूम शिक्षा पद्धति का कोई विकल्प नहीं, कोविड-19 तक ऑनलाइन शिक्षा हर छात्र तक पहुंचाना जरूरी

By: दिव्य हिमाचल टीम, चंडीगढ़ Sep 22nd, 2020 12:03 am

कोविड-19 तक ऑनलाइन शिक्षा हर छात्र तक पहुंचाना सबसे ज्यादा जरूरी

चंडीगढ़/मोहाली-पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के नवनियुक्त वाइस चेयरमैन डा. वरिंदर भाटिया कोरोना महामारी को शैक्षणिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं। उनका कहना है कि हजार चुनौतियों के बावजूद ऑनलाइन शिक्षा को हर छात्र तक पहुंचाना ही पड़ेगा अन्यथा सब पिछड़ जाएगा। मुकेश संगर व नीलम ठाकुर के साथ विशेष बातचीत में श्री भटिया ने कई अन्य विषयों पर ऐसी रखी अपनी राय….

कोविड-19 के दौर की मजबूरी में जारी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से देश के ‘डिजिटल इंडिया’ के सपने को तेजी से उड़ान मिली है। वहीं कोविड-19 के कारण शिक्षण संस्थानों के बंद रहने के कारण जारी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को लेकर दूसरी सचाई यह भी है कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली परंपरागत शिक्षा प्रणाली का पूर्ण विकल्प नहीं है, पर मजबूरी के चलते हमें इसके साथ चलना पड़ेगा। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 31 साल का तर्जबा रखने वाले वरिंदर भाटिया वर्तमान में पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड मोहाली में बतौर वाइस चेयरमैन तैनात हैं। इससे पहले वह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा सहित पंजाब के कई शहरों में बतौर कालेज प्रिंसीपल सेवाएं दे चुके हैं। वरिंदर भाटिया ने कहा कि कोविड-19 के माहौल में शिक्षा को लेकर चुनौतियां बढ़ गई हैं। इस चुनौतीपूर्ण माहौल में हर बच्चे तक ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा पहुंचना बहुत जरूरी है। ऑनलाइन शिक्षा को लेकर गरीब वर्ग की समस्या के साथ कुछ तकनीकी खामियां भी हैं। जहां देश की गरीब जनता, जिसके पास स्मार्टफोन तक नहीं हैं, उनके बच्चे ऑनलाइन शिक्षा कैसे ग्रहण करेंगे, यह एक बड़ी चुनौती है। श्रीभाटिया ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि देखने में आया है कि ऐसे बच्चों के लिए गावों की पंचायतों सहित राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध करवाने को लेकर कुछ पहल की है। उन्होंने कहा कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में नेटवर्क की समस्या आम है। कोविड-19 काल में अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में फीस नहीं दे पा रहे हैं। बच्चों को सरकारी स्कूल में एडमिशन न करवाने को लेकर सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों वाले स्टैंडर्ड को लेकर वरिंदर भाटिया ने कहा की कोविड-19 के दौर में अधिकतर अभिभावक आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और निजी स्कूलों की फीस न देने की मजबूरी में वह बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला करवा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में उच्च क्वालिफाइड टीचर्ज होते हैं। सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन शिक्षा भी सुचारू रूप से चल रही है और बच्चों के भविष्य के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। वरिंदर भाटिया ने कहा कि इसको मजबूत बनाने को लेकर शिक्षकों को संपूर्ण ट्रेनिंग की जरूरत है। बतौर शिक्षाविद उन्होंने देखा है कि सभी शिक्षक ऑनलाइन शिक्षा को लेकर पूर्ण रूप से ट्रेंड नहीं है। शिक्षकों को पर्याप्त ट्रेनिंग देकर इस प्रणाली की विसंगतियों को दूर किया जा सकता है।  उन्हांेने स्कूलों और कालेजों की परीक्षाओं के ऑनलाइन आयोजन को लेकर कहा कि इस प्रणाली से परीक्षार्थी के टेलेंट की सही तस्वीर सामने नहीं आ सकती।

ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली से बेहतर परंपरागत परीक्षा प्रणाली ज्यादा बेहतर और सटीक है। वरिंदर भाटिया ने उम्मीद जाहिर की कि कोविड-19 पर हम जल्द ही जीत पाएंगे और फिर से अपने सपनों को रफ्तार देंगे।  वरिंदर भाटिया ने केंद्र सरकार की ओर से घोषित नई शिक्षा प्रणाली को लेकर पूछे गए उनके विचारों को लेकर कहा कि यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के फैसले को लागू करने पर निर्भर हो सकता है कि वह कैसे लागू करती है। जहां तक जानकारी है इस नई शिक्षा प्रणाली ने स्किल बेस शिक्षा को फोकस किया गया है। उन्होंने बताया कि यह कोई नई चीज नहीं है। नई शिक्षा प्रणाली को लागू करना राज्य सरकारों के फैसले पर ही निर्भर करता है।

मौका मिला, तो फिर हिमाचल में देंगे सेवाएं

अंत में पूछे गए एक सवाल के जवाब में वरिंदर भाटिया ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के लोग दिलदार, ईमानदार और भोले होते हैं। डीएवी कालेज कांगड़ा में बतौर प्रिंसीपल के पद पर रहते हुए उन्होंने जितना भी वक्त बिताया वह हमेशा ही यादगार बना रहेगा।

उन्होंने कहा कि हिमाचल के लोगों में बच्चों को पढ़ाने के लिए उत्सुकता रहती है और वह बच्चों की शिक्षा पर काफी खर्च करते हैं। अगर उन्हें फिर मौका मिला, तो वह हिमाचल प्रदेश में अपनी सेवाएं जरूर देंगे। चर्चा के दौरान वरिंदर भाटिया ने अपने मन की बात साझा करते हुए कहा कि रिटायरमेंट के बाद हिमाचल के कांगड़ा में निवास करना उनकी दिली तमन्ना है। उन्होंने कोविड-19 के माहौल में शिक्षा के क्षेत्र में पेश आ रही चुनौतियों को लेकर यह शब्द कह कर बात पूरी की कि ‘जितनी रात संगीन होगी, उतनी ही सुबह रंगीन होगी।’


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