पीओके पर रुख स्पष्ट करें सियासी रहनुमा: प्रताप सिंह पटियाल, लेखक बिलासपुर से हैं

By: प्रताप सिंह पटियाल, लेखक बिलासपुर से हैं Sep 26th, 2020 6:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं

वर्षों से सितंबर महीना भारतीय सैन्य पराक्रम की अनगिनत शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है। 28 सितंबर 2016 की रात को भारतीय सेना के जवानों ने जान जोखिम में डालकर इसी पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक जैसे घातक हमले को अंजाम देकर कई आतंकी कैंप तबाह किए थे। 12 सितंबर 1897 को भारतीय सेना के 21 सिख योद्धाओं ने सारागढ़ी के युद्ध में दस हजार अफगानों से लोहा लिया था। 10 सितंबर 1965 को खेमकरण सेक्टर के युद्धक्षेत्र में भारतीय जांबाज हवलदार अब्दुल हमीद (परमवीर चक्र) ने पाक सेना के टैंकों को कब्रिस्तान में तबदील कर दिया था…

वर्तमान केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 35ए तथा 370 को निरस्त करने का साहसिक फैसला लिया था। उस समय देश की संसद में बहस के दौरान गृह मंत्री ने बयान दिया था कि वह जब भी जम्मू-कश्मीर का जिक्र करेंगे तो अक्साई चीन तथा पीओके उसमें शामिल होगा। इन दोनों क्षेत्रों को भारत में मिलाने के लिए उन्होंने जान की बाजी लगाने तक का दावा भी किया था। मगर जहां तक देश पर जान देने की नौबत आई है तो आग उगलते घातक हथियारों की गर्जना से कांपती सरहदों पर शहादतों का मुकाम केवल हमारे देश के जांबाज सैनिकों के ही हिस्से आया है। लेकिन विडंबना यह कि एक तरफ  केंद्र सरकार पीओके को भारत में मिलाने पर आमादा है।

पाक सेना के जुल्मोसितम से त्रस्त पीओके की मौजूदा आवाम भारत में मिलने के लिए आतुर है, वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र की सरकार हिमाचली अभिनेत्री कंगना रणौत द्वारा मुंबई पर पीओके वाले बयान से इतना बौखला गई कि उसे मुंबई स्थित कंगना का आशियाना अवैध नजर आने लगा। आखिर नौ सितंबर 2020 को उस पर बुल्डोजर चलाकर महाराष्ट्र सरकार ने अपनी सियासी ताकत का इजहार किया, जिस पर पूरे देश में एहतजाज हुआ। कंगना के जिस पीओके वाले बयान पर महाराष्ट्र सरकार की सियासी हरारत बढ़ी है और जिस पीओके को लेकर चीन की आस्तीन में बैठकर खैरात से पल रहा पाकिस्तान गलतफहमी के ख्वाब देख रहा है, वह पीओके जम्मू-कश्मीर का भौगोलिक हिस्सा था। उसे जम्मू-कश्मीर की डोगरा सल्तनत के परचम तले लाने में हिमाचली योद्धा जनरल जोरावर सिंह के अदम्य साहस की करामात थी जो उस रियासत के महाराजा गुलाब सिंह के सेनानायक थे। जोरावर सिंह ने फरवरी 1840 में अफगानों को हराकर जम्मू-कश्मीर रियासत की सरहदों का विस्तार स्कर्दू, बाल्टीस्तान व गिलगिट तक कर दिया था।

1947-48 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया, उस समय हिमाचली शूरवीर कर्नल शेर जंग थापा (महावीर चक्र) ने अपने सैनिकों के साथ पाक सेना को धूल चटाकर पीओके में स्कर्दू किले पर कब्जा कर लिया था। यदि मुंबई का संबंध मुंबा देवी से है तो कश्मीर प्राचीन से कश्यप ऋषि की तपोस्थली रही है। पाकिस्तान के कब्जे वाले उसी पीओके में नियंत्रण रेखा से 17 मील की दूरी पर नीलम घाटी में किशनगंगा नदी के किनारे पांच हजार वर्ष पुराना शारदा पीठ मंदिर मौजूद है। विद्या की देवी सरस्वती जी की आराधना का धाम यह मंदिर हिंदू धर्म के 18 महाशक्तिपीठों में से एक है जो कि प्राचीन से कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी रही हैं। पीओके के उसी शारदा गांव में भारतवर्ष के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक प्राचीन विख्यात विश्वविद्यालय शारदापीठ भी मौजूद था जिसके विशाल पुस्तकालय में सुप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी सहित कई विद्वानों द्वारा रचित साहित्य के हजारों ग्रंथों का संग्रहण था। भारत के लिए पीओके का मसला धार्मिक आस्था, संस्कृति व सभ्यता के साथ रणनीतिक तौर पर व सामरिक दृष्टि से देश की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।

 वर्षों से सितंबर महीना भारतीय सैन्य पराक्रम की अनगिनत शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है। 28 सितंबर 2016 की रात को भारतीय सेना के जवानों ने जान जोखिम में डालकर इसी पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक जैसे घातक हमले को अंजाम देकर कई आतंकी कैंप तबाह किए थे। 12 सितंबर 1897 को भारतीय सेना के 21 सिख योद्धाओं ने सारागढ़ी के युद्ध में दस हजार अफगानों से लोहा लिया था। 10 सितंबर 1965 को खेमकरण सेक्टर के युद्धक्षेत्र में भारतीय जांबाज हवलदार अब्दुल हमीद (परमवीर चक्र) ने पाक सेना के टैंकों को कब्रिस्तान में तबदील कर दिया था। 11 सितंबर 1967 को नाथुला (सिक्किम) में सैन्य संघर्ष के दौरान भारतीय रणबांकुरों ने चीनी सेना को धूल चटाई थी।

काश देश में भारतीय सैन्य इतिहास के इस शौर्य का जिक्र भी होता। देश के सभी राज्यों के सैनिक कश्मीर के लिए शहादतों का जाम पी चुके हैं और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। सैनिक देश का सबसे बड़ा सरमाया होते हैं जिनके दम पर हम किसी भी दुश्मन मुल्क को चुनौती देने का दंभ भरते हैं, मगर इसी महाराष्ट्र में जब पूर्व  सैनिकों से  बदसलूकी  की घटनाएं होती हैं तो देश की सियासत तथा मानवधिकारों के पैरोकार खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं क्योंकि वहां सियासी जमीन नजर नहीं आती। यदि देश के हुक्मरान हमारे आराध्य देव या महापुरुषों के सिद्धांतों का पालन नहीं कर सकते तो उनके नाम सियासी दलों से न जोड़े जाएं।

 कंगना रणौत का संबंध हिमाचल प्रदेश से है। राज्य के एक छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने फिल्मनगरी में कड़ी मेहनत के दम पर अपनी अलग शौहरत हासिल की है। फिल्म फेयर अवार्ड व कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त करके अपने प्रदेश को भी गौरवान्वित किया है। कुदरत की अनमोल नेमतों से लबरेज हिमाचल प्रदेश का बॉलीवुड के लिए भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। यूनेस्को की विश्व घरोहर सूची में शामिल कालका-शिमला हैरिटेज रेलवे टै्रक से लेकर चंबा, कुल्लु, किन्नौर व शिमला आदि जिलों में कई मशहूर फिल्मों की शूटिंग होती आई है। पर्यटन नगरी मनाली फिल्म जगत की पसंदीदा जगह रही है। कई फिल्मी सितारे राज्य की हसीन वादियों में सुकून के पल बिताने के लिए भी आते रहते हैं, मगर कंगना ने बालीवुड में नेपोटिज्म व माफियाओं की भूमिका को लेकर अपनी आवाज पूरी शिद्दत से बुलंद की है।

बहरहाल जहां तक अवैध निर्माण का सवाल है तो भारत के लिए मध्य एशिया का द्वार रहा पीओके 73 वर्षों से पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है जहां चीन सीपैक के जरिए अवैध निर्माण कर रहा है। भारतीय सैन्यशक्ति दोनों दुश्मन मुल्कों को नेस्तनाबूद करके वहां भारत की विजय पताका फहराने को बेताब है। देश के तमाम सियासी रहनुमा अपने जहन में पीओके तथा वहां मौजूद सांस्कृतिक धरोहर शारदा पीठ को भारतीय मानचित्र पर मिलाने का जज्बा पैदा करें।


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