धारा-118 पर धवाला ने घेरी सरकार, उद्योगों की मंजूरी में लेटलतीफी पर उठाए सवाल
सदन में भू-सुधार अधिनियम की धारा-118 को लेकर भाजपा के विधायक ने ही सरकार को घेरा लिया। विधायक रमेश धवाला ने कहा कि उद्योगों को जब 45 दिन में मंजूरियां देने का फैसला सरकार ने लिया है, तो क्यों मंजूरियां नहीं मिल रही हैं। उन्होंने कहा कि छह-छह महीने से मामले लटके हुए हैं और अभी भी उद्योगपतियों को चक्कर कटवाए जा रहे हैं। भाजपा विधायक द्वारा इस सवाल को उठाने से सदन तप जाता, मगर उस समय सदन में विपक्ष मौजूद नहीं था। ऐसे में राजस्व मंत्री की अनुपस्थिति में संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारद्वाज ने बताया कि धारा 118 के 87 मामले सरकार के पास लंबित हैं, जबकि 122 मामले अधूरी जानकारी के चलते वापस संबंधित डीसी को भेज दिए गए हैं। लंबित 87 मामलों की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद इन्हें मंजूरी दे दी जाएगी।
रमेश धवाला का सवाल था कि राज्य में उद्योग स्थापित करने को भूमि खरीद की प्रक्रिया को क्या सरल किया गया है और पूछा कि भू.अधिनयम की धारा-118 में कितने मामले स्वीकृत किए गए। इस पर शहरी विकास मंत्री ने कहा कि एक जनवरी, 2018 के बाद 31 अगस्त, 2020 तक धारा-118 के तहत अलग-अलग कार्यों के लिए 417 अनुमतियां दी गई हैं। आवासीय स्कीमों के लिए 388 मामलों को मंजूरी दी गई है। इससे पूर्व 2013 से 2017 के बीच कांग्रेस सरकार ने विभिन्न मामलों में 543 को मंजूरी दी और 844 हाउसिंग प्राजेक्टों की मंजूरी दी है। कुल मिलाकर कांग्रेस कार्यकाल में धारा-118 के 1387 मामलों को स्वीकृति दी, वहीं भाजपा के मौजूदा कार्यकाल में अभी तक 805 मामलों को मंजूरी दी गई।
श्री भारद्वाज ने कहा कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए भू-अधिनियम की धारा में कोई परिवर्तन नहीं किया है, केवल रूल्ज में परिवर्तन किया है, ताकि हिमाचल में औद्योगिक विकास हो। उन्होंने सदन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र भी किया जिन्होंने हिमाचल को विशेष औद्योगिक पैकेज दिया था। विधायक अरुण कुमार कूका ने भी लंबित मामलों को लेकर अनुपूरक सवाल किया।
कांग्रेस ने घूमने में उड़ाया पैसा
मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि वर्तमान सरकार ने एक बड़ी इन्वेस्टर मीट हिमाचल में करवाई है, जिसमें विदेशों से भी लोग आए हैं। यहां पर औद्योगिक विकास के लिए वर्तमान सरकार के प्रयास भी फलीभूत हुए हैं, परंतु पूर्व कांग्रेस सरकार दूसरे प्रदेशों में इन्वेस्टर मीट के नाम पर घूमती रही, जिसका कोई लाभ प्रदेश को नहीं मिला।
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