गेहूं की ब्रीडिंग को राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं, प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय फसल सुधार कार्यक्रमों में लाएगा तेजी

By: कार्यालय संवाददाता — पालमपुर Sep 29th, 2020 12:06 am

प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय उत्तर-पश्चिम हिमालय के किसानों के लिए फसल सुधार कार्यक्रमों में लाएगा तेजी

प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय उत्तर-पश्चिम हिमालय के किसानों के लिए विभिन्न फसल सुधार कार्यक्रमों में गति व सटीकता लाएगा। कुलपति पद पर नियुक्ति से पहले आनुवाशिंकी व पौध प्रजनन और कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभागों के विभागाध्यक्ष रह चुके प्रो. चौधरी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित ‘हाईटेक मॉलिक्यूलर साइटोजेनेटिक्स और टिश्यू कल्चर लैब’ में क्रोमोसोम निष्कासन आधारित बृहद प्रजनन तकनीकों के माध्यम से अनुकरणीय अनुसंधान व अविष्कार कार्य संपन्न हुए हैं। ये कार्य गेहूं और इंप्रैटा सिलिंड्रिका क्रॉस प्रणाली पर आधारित हैं, जो डब्ल्ड हैप्लाइडी (डीएच) ब्रीडिंग के लिए अग्रणी सिद्ध हुए। यह कार्य प्रजनन चक्र को अत्याधिक कम करके नए क्षितिजों को खोलने में भी सक्षम रहा है, जिससे गेहूं की रोटी (चपाती) और ड्यूरम (पास्ता) हेतु समृद्ध विभिन्न विकास कार्यक्रमों में तीव्रता आई है। विश्वविद्यालय ने देश के पहले डब्ल्ड हैप्लवाइडी गेहूं की उत्कृष्ट किस्म ‘हिमप्रथम’ को विकसित करके एक नया आयाम स्थापित किया है, जिसे 2016 में भारत सरकार की केंद्रीय उपसमिति द्वारा अधिसूचित किया गया था।

विभाग ने जापान व इंग्लैंड में अग्रणी प्रयोगशालाओं के साथ कार्य करके अंतरराष्ट्रीय सहयोगों को आकर्षित किया और कई प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय छात्रवृत्तियों के माध्यम से छात्र-विनिमय कार्यक्रमों में सहयोग दिया। उच्च तकनीक से सुसज्जित यह प्रयोगशाला भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से पहली बार आणविक साइटोजेनेटिक्स सुविधा के लिए स्थापित की गई है। भारत में लक्षित जीनों के भौतिक मानचित्रण के लिए त्वरित गति से वांछित पुनः-संयोजकों के चयन की सटीकता को बढ़ाने के लिए जीआईएसएच व एफआईएसएच जैसे टूल्स का उपयोग करके इस प्रयोगशाला में विभिन्न फसल प्रजातियों को प्रतिरोपित किया गया। डब्ल्ड हैप्लाइडी और मॉलिक्यूलर साइटोजेनेटिक्स तकनीकों के संयोजन ने कम से कम समय में लक्षित फसल सुधार के लिए तीव्र व अल्पावधि ब्रीडिंग हेतु नए क्षितिज खोले हैं। कुलपति प्रो. चौधरी के पास गुणसूत्र इंजीनियरिंग और आणविक प्रजनन के क्षेत्र में लगभग तीन दशक से अधिक समय का अनुभव है।


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