हिंदी दिवस: अंग्रेजी के सफर में पटरी से उत्तरी हिंदी

By: विशेष सूत्रधारः पवन कुमार शर्मा, अमन अग्निहोत्री, नीलकांत भारद्वाज, प्रतिमा चौहान, सौरभ शर्मा, खेमराज शर्मा Sep 14th, 2020 10:08 am

फख्र तो बहुत होता है..सुनने में और कहने में भी कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, पर आज अगर कुछ पन्ने पलटने लगें, तो हिंदी का वजूद खत्म होता सा दिखता है। ऐसा एहसास होना भी तो लाजिमी है न, क्योंकि हिंदी को छोड़ हम अंग्रेजी की दौड़ में जो शामिल हो रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी में बात करना प्रतिष्ठा समझती है…और इसी फेहरिस्त में कहीं न कहीं हिंदी पीछे छूटती जा रही है। 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस के विशेष अवसर पर इस बार दखल में प्रस्तुत है हिमाचल में हिंदी भाषा का सफर

विशेष सूत्रधारः पवन कुमार शर्मा, अमन अग्निहोत्री, नीलकांत भारद्वाज, प्रतिमा चौहान, सौरभ शर्मा, खेमराज शर्मा

प्रदेश में जो भी सरकार आती है, बड़े-बड़े दावे करती है कि हिंदी भाषा को तवज्जो दी जाएगी। सरकारी आदेश हों, चाहे कोई भी अधिसूचना, ये सभी हिंदी भाषा में ही डाली जाएंगी। यह दावा हर बार किया जाता है, लेकिन हमारी मातृ भाषा हिंदी की याद सरकारों को तभी आती है, जब हिंदी दिवस होता है। आज हिंदी का स्तर देखें, तो इसके राष्ट्रभाषा होने पर भी संदेह होने लगता है। प्रदेश के स्कूल-कालेजों में भी हिंदी विषय पढ़ाया जाता है, लेकिन अगर बात करें, तो जो रुचि पहले छात्रों को पढ़ने में भी होती थी, वह भी अब खत्म होती जा रही है।

प्रदेश विश्वविद्यालय में तो हिंदी दिवस पर कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। वहीं, पीजी करने वाले छात्र हजारों की संख्या में अप्लाई करते हैं। हालांकि सौ सीटें ही होने की वजह से हजारों छात्रों को दाखिला नहीं मिल पाता। फिलहाल लंबे समय से हिंदी भाषा को सरकारी कामकाजों में भी इस्तेमाल करें, इसे लेकर कई निर्देश सरकार द्वारा जारी होते भी हैं। बावजूद इसके मातृभाषा हिंदी को अभी भी केवल हिंदी दिवस पर भी महत्त्वता मिलती है। हैरानी इस बात की है कि अब युवाओं में भी हिंदी भाषा के शब्द, व्याकरण को समझने की क्षमता लगातार खत्म होती जा रही है। ऐसे में सरकार को जरूरत है कि मातृभाषा हिंदी का विकास करने के लिए इस ओर ध्यान दे और आज की पीढ़ी को भी मातृभाषा के साथ जोड़ने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।

प्रोफेसर राष्ट्र स्तर पर ले रहे प्रशिक्षण

इन दिनों विश्वविद्यालय के हिंदी प्रोफेसर का राष्ट्र स्तर पर प्रशिक्षण भी हो रहा है। इस तरह अब कई प्रयास हिंदी भाषा को लेकर किए जा रहे हैं, कितने सफल होते हैं, यह देखना अहम होगा। दरअसल कई बार लेखक भी यह बात कह चुके हैं कि आज की युवा पीढ़ी को भाषा का सही ज्ञान नहीं है। यही वजह है कि वे हिंदी भाषा के शब्दों का भी कई बार गलत इस्तेमाल कर देते हैं। फिलहाल प्रदेश विश्वविद्यालय का दावा है कि हिंदी भाषा का विश्वविद्यालय के कार्यों के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाएगा।

प्रदेश विश्वविद्यालय में हिंदी का अनुपात 50ः 50

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में तो हिंदी भाषा की स्थिति 50-50 प्रतिशत है। यानी की प्रदेश विश्वविद्यालय में भी हिंदी भाषा का प्रयोग कागजों व बोलचाल में पूरी तरह नहीं हो पाता। हालांकि पूर्व कुलपति एडीएन बाजपेयी के समय में जरूर हिंदी भाषा का प्रयोग 95 प्रतिशत प्रदेश विश्वविद्यालय में होता था। अब यही अनुपात 50 व 60 प्रतिशत तक ही सिमट गई है। इसके अलावा 1970 में प्रदेश विश्वविद्यालय में शुरू हुए हिंदी विभाग में हर साल 100 छात्र पीजी में दाखिला लेते हैं। इसके अलावा एमफिल में 15 सीटें हर साल भरी जाती हैं। हिंदी विभाग में पीजी करने के लिए हर साल आठ से दस हजार छात्र दाखिला लेते हैं।

पिछले वर्ष भी नौ हजार छात्रों ने हिंदी विषय में पीजी करने के लिए आवेदन किए थे, लेकिन कम सीटें होने की वजह से हजारों छात्रों के दाखिले नहीं हो पाते हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालय से पासआउट होने वाले छात्र एलटी व पीजीटी भी लग रहे हैं। सरकारी स्कूलों में कमीशन के तहत अभी तक लगभग 60 एलटी और 30 से 40 पीजीटी शिक्षक सरकारी स्कूलों में लगे हैं। प्रदेश विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में इस विषय को लेकर छात्रों को कई महत्त्वपूर्ण चीजें बताई जाती हैं।

हिंदी दिवस से एक हफ्ते पहले होते हैं कार्यक्रम

प्रदेश विश्वविद्यालय में हर साल हिंदी दिवस के एक हफ्ते पहले कई कार्यक्रम हिंदी से जुड़े हुए यहां करवाए जाते हैं। इसके अलावा अगर बात करें, तो छात्रों को ग्रुप डिबेट के बारे में भी बताया जाता है। वहीं, हिंदी में कविताएं, उपन्यास, साहित्य व इस तरह की चीज कैसे समझानी व लिखनी चाहिए, इस बारे में भी बताया जाता है। फिलहाल एचपीयू में तो हिंदी भाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

प्रदेश विश्वविद्यालय से 103 छात्र कर चुके हैं पीएचडी

प्रदेश विश्वविद्यालय में 1970 से हिंदी विभाग में अलग से कार्य करना शुरू हो गया था। वहीं, अभी तक 103 छात्रों ने विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से पीएचडी की डिग्री ले ली है। इसके अलावा हर साल औसतन पांच से दस छात्र यहां से पीएचडी की डिग्री पूरी करते हैं। विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में प्रदेश विश्वविद्यालय में 33 छात्र पीएचडी की डिग्री कर रहे हैं। विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के अनुसार हिंदी में पीएचडी करने के लिए छात्रों को गाइड मुहैया करवाए जाते हैं। इसके अलावा पांच से छह साल छात्रों को पीएचडी की डिग्री लेने में लग जाते हैं। बता दें कि विश्वविद्यालय से हिंदी की डिग्री लेने वाले छात्र सरकारी स्कूल, कालेज में प्रोफेसर के पद पर ड्यूटी देने के लिए जाते हैं।

क्या-कुछ चुनते हैं अभ्यर्थी

प्रदेश विश्वविद्याय में हिंदी विभाग से पीएचडी करने वाले छात्रों के पास विभिन्न प्रकार के विषय शोध करने के लिए होते हैं। बता दें कि विश्वविद्यालय में शोध करने वाले छात्रों ने अभी तक भाषा विज्ञान, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, कथा साहित्य, गद्य साहित्य, काव्य साहित्य, उपन्यास, कहानिया, लोक साहित्य, यात्रा साहित्य जैसे कई विषय शोध के लिए चुनते हैं। इसके अलावा छात्र तुलसीदास, प्रेमचंद जैसे कई जाने-माने कवि व साहित्यकारों की कहानियों व कविताओं पर भी शोध करते हैं।

हिंदी पर होते रहते हैं विशेष कार्यक्रम

एचपीयू में हिंदी भाषा पर विशेष तौर पर कार्य किया जा रहा है। साल भर विभाग में पढ़ने वाले छात्रों के लिए ग्रुप बनाकर लेखनी प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं। कविताएं लिखवाई जा रही हैं। हिंदी दिवस के एक हफ्ते पहले विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा में कई कार्यक्रमों को शुरू कर दिया जाता है। इस कार्यक्रम में छात्र तुलसीदास, मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के बारे में भी जानते हैं। वहीं, महिला दिवस पर भी विश्वविद्यालय में छात्र व छात्राएं हिंदी में लेखनी व भाषण जैसी कई प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। कविता वाचन भी हिंदी विषयों के छात्र विशेष तौर पर करते हैं। इसके अलावा प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को शब्दों का ज्ञान करवाया जाता है। वर्णमालाओं का ज्ञान ओर कई महत्त्वपूर्ण चीज़ें बताई जाती हैं

—भवानी सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, एचपीयू

स्कूलों में अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान..

प्रदेश के निजी और सरकारी स्कूलों की बात करें, तो हिंदी को लेकर यहां ज्यादा कुछ गतिविधियों का आयोजन नहीं किया जाता। हिंदी पखवाड़ा मनाने तक ही यह सीमित रह जाता है। इससे ज्यादा हिंदी के बढ़ावे को लेकर स्कूलों में कोई खास काम नहीं किया जाता। आए दिन यहां केवल अंग्रेजी के बढ़ावे को लेकर ही चर्चाएं की जाती हैं। अध्यापक तो दूर, अभिभावक भी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाने पर ही जोर देते हैं। ऐसे में हिंदी के बढ़ावे को लेकर केवल सरकार की बोलती है, जबकि जमीन पर इस तरह की कोई भी योजनाएं पूरी नहीं हो पाती हैं।

सरकार कहती है कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए विशेष मुहिम चलाई जाएगी, लेकिन आज तक ये मुहिमें सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई हैं। इन पर किसी तरह का काम नहीं किया जाता। कालेज और सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चे तो हिंदी का विषय तक नहीं चुनते। मात्र जो हिंदी का विषय आवश्यक और साथ होता है, उसी में पढ़ाई करते हैं। वे कोई भी हिंदी का विषय लेना तक पसंद नहीं करते। सरकारी स्कूलों के अध्यापक भी बच्चों पर अंग्रेजी में बात करने को जोर डालते हैं, जबकि स्कूलों में प्रार्थना पत्र तक अंग्रेजी में ही लिखाया जाता है।

सरकारी कार्यालयों में भी न के बराबर हो रहा इस्तेमाल

अगर सरकारी कार्यालयों की बात करें, तो यहां आज भी कोई नोटिफिकेशन जारी होनी हो, तो वह अंग्रेजी में होती है। किसी के ट्रांसर्फर ऑर्डर करने हों, तो वे भी अंग्रेजी में होते हैं। अगर हिंदी में कोई ऑर्डर जारी करना हो, तो उसमें भी हिंदी शुद्ध नहीं होती। ऐसे कई पत्र सरकारी कार्यालयों की ओर से जारी होते हैं, जिसमें ढेरों गलतियां देखने को मिल जाती हैं।

धीरे ही सही, पर हो रहा हिंदी का विस्तार

हिमाचल के गठन के पीछे भले ही पहाड़ी बोली, भौगोलिक परिस्थितियों और अलग पहचान का तर्क रहा हो। इसके बावजूद हिमाचल की पहचान देश के हिंदी भाषी राज्यों में होती है। यहां की स्थानीय बोलियों के इतर हिंदी संवाद की भाषा के रूप में समाज और घर परिवार में पैठ बना चुके हैं। वहीं साहित्य, रंगमंच व ललित कलाओं के संप्रेषण में भी हिंदी बेहतर स्थिति में है। हिंदी का उपयोग सरकारी कामकाज में भी हो ही रहा है। भले ही आज भी अंग्रेजी सरकारी फाइलों की नोटिंग में सवार है। इसके बावजूद आम आदमी का कामकाज भी हिंदी में चल रहा है। इसमें किसी तरह की परेशानी पेश नहीं आती।

सरकारी कार्यालयों में हिंदी में कामकाज करने को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार की योजना भी चलाई जा रही है। धीरे ही सही, पर हिंदी का विस्तार हो रहा है। अन्य राज्यों की तुलना में हिमाचल में हिंदी की स्थिति बेहतर है। हिंदी बोलचाल की भाषा के साथ-साथ अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। साहित्य, पत्रकारिता, रंगमंच और अन्य कलाओं के प्रचार-प्रसार में हिंदी की भूमिका अहम है। हिंदी सिनेमा और विज्ञापन की भाषा के रूप में गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी अपनी पैठ बना रही है। अगर इसे रोजगार से जोड़ दिया जाए, तो कोई कारण नहीं है कि युवा पीढ़ी इससे विमुख रहे

— मुरारी शर्मा, साहित्यकार, मंडी

अधिकारियों पर भी तो निर्भर करता है

प्रदेश के विभिन्न विभागों में काम करने के दौरान हिंदी के बारे में व्यक्तिगत अनुभव अच्छा रहा। मैं खुद भी आवश्यकता पर हिंदी का प्रयोग करता था। प्रशासनिक कर्यों में हिंदी सुचारू हो, इसके लिए प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की सरकार में हिंदी बहुत अधिक प्रचलित हुई थी। हिंदी को उस स्थिति में लाने के लिए उस समय काफी प्रयास करने पड़े थे। उनकी सरकार जाने के बाद दुर्भागयवश हिंदी फिर काफी पीछे खिसक गई। प्रशासनिक तौर पर हिंदी का उपयोग होता रहा है। पीडब्ल्यूडी, विद्युत आदि कुछ विभागों में तकनीकी मामलोें के चलते हिंदी का कम प्रयोग होता है।

हिंदी को प्राथमिकता देने वाले विभागों में भाषा कला संस्कृति, शिक्षा, लोक संपर्क विभाग, सहकारिता, राजस्व और सामान्य प्राशासन सहित अन्य विभाग हिंदी को प्राथमिकता देते हैं। हिंदी कुछ अधिकारियों की पहली पसंद भी रहती है। जहां विषय साहित्यिक हो और ऊपर नीचे के अधिकारी हिंदी जानने वाले हों, वहां हिंदी को प्राथमिकता मिलती है

—  केसी शर्मा, आईएएस अधिकारी

भाषा के साथ ऐसे होगा न्याय

हिंदी हमारी अस्मिता की पहचान है। हिंदी मातृभाषा ही नहीं, अपितु हमारी संस्कृति व संस्कार भी है, जिसके माध्यम से हम संस्कारित भी होते हैं और अपनी संस्कृति का संवर्द्धन, संरक्षण, परिक्षण करने में सक्षम होते हैं। हिंदी हमारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का स्तुत्य प्रयास तो करती है, साथ ही राष्ट्रीयता की उदात्त भावना भी जागृत करती है। हिमाचल में हिंदी की स्थिति काफी संतोषजनक कही जा सकती है, क्योंकि अधिकांश शिक्षण संस्थानों की भाषा हिंदी ही है। हिंदी को और अधिक सशक्त बनाने के लिए सरकार प्रशासनिक कामकाज में हिंदी लागू करे, तो इसे उचित स्थान मिलेगा। इसमें अधिकारियों का रोल भी अहम है

— डा. वाईके डोगरा, धर्मशाला

दयनीय है भाषा की स्थिति

हिंदी भाषी राज्य होने के बावजूद हिमाचल में हिंदी की दयनीय स्थिति व स्तर देखते हुए क्षोभ होता है। शंका होती है कि यह हिंदी भाषी राज्य है भी कि नहीं। अन्य हिंदी भाषी राज्यों से हिमाचल में हिंदी के स्तर की तुलना करना बेमानी है। भाषा का स्तर उसके साहित्य में झलकता है। हिमाचल में जो ठोस व स्तरीय लेखन हो रहा है, उसकी मान्यता हिमाचल में लेखक को दूसरे राज्यों में मान्यता मिलने के बाद ही मिलती है। लेखकों के प्रोत्साहन के प्रति अप्रत्याशित रूप से उदासीनता है

— खेमराज शर्मा, सोलन

सरकार का एक साप्ताहिक समाचार पत्र

प्रदेश में सरकारी स्तर पर केवल एक ही साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाश किया जाता है, जो कि गिरिराज है। यह शिमला जिला में हिंदी संस्करण में छपता है। इस समाचार पत्र में सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख किया गया होता है। सरकार के किए गए कार्यों पर विस्तार से चर्चा की गई होती है। सरकार की निविदाएं सूचनाएं पीडब्ल्यूडी, जल शक्ति विभाग की सूचनाएं इसी में प्रकाशित होती हैं।

हालांकि सरकार की ओर से अन्य समाचार पत्रों को भी निविदाएं प्रकाशित करने के लिए दी जाती हैं, लेकिन सबसे ज्यादा प्रदेश सरकार के अपने साप्ताहिक समाचार पत्र गिरिराज में प्रकाशित होती है। ऐसे में लोग इसे भी ज्यादा खरीदते हैं। सरकार की ओर से एक पत्रिका हिम प्रस्थ के नाम से दो माह में एक बार पर प्रकाशित की जाती है। खास बात यह है कि इस पत्रिका में सरकार प्रदेश की संस्कृति को बढ़ावा देने वालों के लेख प्रकाशित करती है। इस पत्रिका में सरकार प्रदेश के साहित्यकारों, कवियों, लेखकों, बुद्धिजिवियों के  विकासात्मक लेख, आलेख, कहानियां, गजल, लघुकथा, व्यंग्य, समिक्षाएं आदि प्रकाशित की जाती हैं, जिसे लोग पढ़ते हैं।

वजूद खोती जा रही मातृभाषा

युवा हिंदी में बात करना अपनी शान के खिलाफ समझता है। अंग्रेजी में बात करना स्टेटस सिंबल समझा जाता है। हिंदी पर स्कूलों में प्रयोग को लेकर भी कोई खास प्रयास नहीं किए गए हैं। मात्र हिंदी पखवाड़े में कुछ प्रतियोगिताएं करवाने तक ही ये सब समिति रह जाता है, जबकि प्रयोग तो आजतक कोई भी नहीं किए गए हैं, जो कि हिंदी को बढ़ावा दे सके, जबकि दूसरी तरफ सरकार ने भी अब कई प्राइमरी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम कर दिया है। काफी हद तक ये प्रयास भी सफल हुए हैं, जिसमें बच्चों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इससे साफ तो यह भी होता है कि हिंदी को लेकर आज के दौर में न स्कूलों में हिंदी को लेकर ज्यादा रुचि है और न ही सरकारी कार्यालयों में, जिससे दिन-प्रतिदिन हिंदी अपना वजूद खोती जा रही है।

अंग्रेजी में ही आता है अदालत का हर नोटिस

अगर न्यायालयों की बात करें, तो यहां आज भी सभी कार्रवाई अंग्रेजी में होती है, जबकि अदालत की ओर से कोई भी सूचना या नोटिस निकाला जाता है, तो वे अंग्रेजी में ही निकाला जाता है। ऐसे में सरकारी कार्यालयों और कोर्ट परिसर में आज भी हिंदी को लेकर इतनी ज्यादा रूचि नहीं है। क्योंकि सारा का सारा काम अभी भी यहां अंग्रेजी में ही होता है और लोगों को भी इसमें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

शांता के बाद किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया कार्य

सचमुच खेदजनक है कि हिंदी दिवस के करीब आते ही हम अपनी भाषा की गरिमा मान-सम्मान के लिए आंसू बहाने लगते हैं। बतौर मुख्यमंत्री शांता कुमार ने सरकारी कामकाज में हिंदी भाषा के प्रयोग को जिस संकल्प समर्पण भाव व प्रबल इच्छाशक्ति के बल पर लागू किया था, उसे याद कर विश्वास नहीं होता। मुख्यमंत्री वाईएस परमार के कार्यकाल में भी संपूर्ण कार्य हिंदी में ही करने का बीड़ा उठाया गया था। वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, ठाकुर रामलाल ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में खास रुचि नहीं दिखाई। वर्तमान मुख्यमंत्री पर अफसरशाही इस कद्र हावी प्रतीत होती है कि हिंदी में सौ फीसदी कामकाज की कल्पना करना ही व्यर्थ है। हिमाचल में हिंदी अखबारों में प्रचार संख्या में तो वृद्धि हुई है, लेकिन भाषा का स्तर बिगड़ा है।

मीडिया का यह कर्त्तव्य है कि वह पाठकों को संस्कारित करे। उनमें भाषा के प्रति आदर, लगाव व अनुसरण पैदा करे। न्यूज चैनल की भाषा आतंक पैदा करती है, दर्शक यह नहीं समझ पाता कि वह कौन सा चैनल देखे। रेडियो की भाषा का स्तर भी गिरा है, क्योंकि उद्घोषों या कैजुअल अनाउंसर के पास हिंदी भाषा की खुशबू या महक को बिखेरने का जादू गायब है। हिंदी भाषा के अधिकांश लेखक हिमाचल और बाहर अपनी महफिलों, उपन्यासों, कविताओं के शीर्षक अंग्रेजी में देना पसंद करते हैं। अर्थभाव का प्रभाव पैदा करने के लिए या आकर्षण। निजी स्कूलों में अंग्रेजी बोलने पर जोर है, तो सरकारी स्कूलों में न तो बच्चे, न ही अध्यापक, यहां तक कि भाषा अध्यापक भी न तो हिंदी की व्याख्या को समझते हैं, न ही शब्दों के सही उच्चारण को   —राजेंद्र राजन, लेखक-कहानीकार


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