न्याय को तरस रहा 32 हजार प्रतिनिधि चुनने वाला चुनाव आयोग, राजनीतिक उपेक्षा के चलते हालत खराब

By: विशेष संवाददाता — शिमला Sep 28th, 2020 7:30 am

काम बड़े-बड़े; पर व्यवस्थाएं ही नहीं, मात्र 33 कर्मचारी चुनते हैं ग्रामीण-शहरी संसद, पद भरने को कहा, तो कोविड का बहाना

ग्रामीण व शहरी संसद को चुनने वाला राज्य चुनाव आयोग उपेक्षा का शिकार है। प्रदेश सरकार द्वारा 73वें संविधान संशोधन के तहत गठित किए गए इस चुनाव आयोग का काम बहुत बड़ा है, मगर जिस तरह का काम है, उस तरह का सम्मान इसे नहीं मिलता। राजनीतिक उपेक्षा के चलते इसकी हालत खराब है। एक दफा फिर प्रदेश में पंचायतों व शहरी निकायों के चुनाव होने हैं। ऐसे में राज्य चुनाव आयोग के पास ढांचागत व्यवस्थाएं ही नहीं हैं। इसकी तुलना में राज्य चुनाव विभाग, जो कि सीधे केंद्रीय चुनाव आयोग से जुड़ा है, में स्थितियां काफी ज्यादा बेहतर हैं।

वहां कर्मचारियों की संख्या 350 से ज्यादा है और चुनाव में पांच साल में एक बार विधानसभा व एक बार लोकसभा का चुनाव करवाना होता है। वह प्रदेश में 68 विधायक व चार लोकसभा सदस्य चुनते हैं, तो राज्य चुनाव आयोग 32 हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों को चुनता है, जिनके चुनाव जनवरी में करवाए जाने हैं। दिलचस्प बात यह है कि राज्य चुनाव आयोग के पास कर्मचारी मात्र 33 हैं, जिनके सहारे यह आयोग चला है। अभी वित्त विभाग से दो पदों की मांग इस आयोग ने रखी थी, मगर वित्त विभाग ने यह कहकर टाल दिया कि कोविड है और आउटसोर्सिंग पर कर्मचारी रखें। इतना ही नहीं, खस्ता स्थिति यहीं से बयां हो जाती है कि राज्य के चुनाव आयोग, जिसका गठन वर्ष 1994 में हुआ था, वहां 26 साल में 22 सचिव बदल दिए गए हैं। यानी एक या डेढ़ साल से ज्यादा कोई सचिव यहां नहीं रहता।

 इस आयोग की बदहाली इसलिए है, क्योंकि इसमें रिटायरमेंट के बाद किसी आईएएस अधिकारी को लगाया जाता है और वह सरकार बदलने से पहले लगता है, लिहाजा दूसरी सरकार में उसकी नहीं चलती और फिर दुर्दशा चुनाव आयोग जैसी संस्था की होती है। जो है तो राज्य सरकार की संस्था, मगर उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। वर्तमान में राज्य चुनाव आयोग के पास अपना दफ्तर तक नहीं है। सचिवालय में टुकड़ों में उन्हें कमरे दिए गए हैं। जो प्रोपोजल दफ्तर बनाने का था, उस पर सचिवालय प्रशासन कुंडली मारकर बैठ गया। वहां कोई गतिविधि नहीं हो रही। ऐसे में समझा जा सकता है कि इस आयोग और इसमें काम करने वाले कर्मचारियों की क्या हालत होगी, जिनके वाहनों तक को सचिवालय में एंट्री नहीं मिलती। बहरहाल, न जाने कब चुनाव आयोग के दिन बहुरेंगे।

अधिकारियों की एक-दूसरे से बनती नहीं

एक तरह से यह कहा जाए कि व्यक्तिगत अहम के आगे संस्थाओं का नुकसान हो रहा है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि कुछ अधिकारी इस तरह का रवैया अपनाए हुए हैं, जिनकी एक-दूसरे के साथ नहीं बनती। इसका नुकसान संस्था को उठाना पड़ रहा है और सरकार तक उनकी आवाज नहीं पहुंच रही। यह आयोग एक तरह से पंचायती राज विभाग के साथ जुड़ा है, मगर वह भी इसे अछूता समझता है। लिहाजा पंचायती राज मंत्री तक भी इसकी बात नहीं पहुंच रही। क्योंकि अब चुनाव का भी समय है, लिहाजा वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से इस आयोग को उम्मीदें हैं कि शायद इसका भी इस सरकार में भला हो जाए।


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