पहाड़ को चीरतीं खड्डें

By: सूत्रधार : शकील कुरैशी, सूरत पुंडीर अमन अग्निहोत्री, नीलकांत भारद्वाज दीपक शर्मा, राजकुमार सेन Sep 2nd, 2020 12:06 am

बरसात अभी कदम भी नहीं रखती है, पर हिमाचल की नींद हराम हो जाती है। हो भी क्यों न…देवभूमि की खड्डें-नाले जब उफान पर आते हैं, तो नुकसान की कोई कसर नहीं छोड़ते। याद होगा आपको जाहू पुल हादसा! अब तक न जाने कितनी ही ज़िदगियां लील चुकी यें डरावनी खड्डें करोड़ों बहा ले गई हैं। हर हिमाचली का सुख-चैन छीनने वाली बरसात में किस तरह मचाती हैं कहर…अब तक दे चुकी हैं कितने जख्म….कहां तक पहुंची इनकी चैनेलाइजेशन… इन सवालों के साथ पेश का इस दखल का भाग-1

सूत्रधार : शकील कुरैशी, सूरत पुंडीर अमन अग्निहोत्री, नीलकांत भारद्वाज दीपक शर्मा, राजकुमार सेन

यहां खड्डें नहीं, दहशत बहती है

हमीरपुर में कुनाह, सीर, चैंथ, मान और सुक्कड़ खड्डों की दहशत वर्षों से रही है। ये खड्डें हर साल कुछ न कुछ नुकसान करती रहती हैं। हर साल ये आसपास की जमीन को बहाकर ले जाती हैं। चैंथ खड्ड को तो किसानों की दुश्मन कहा जाता है, क्योंकि इस खड्ड का प्रवाह हर साल उपजाऊ जमीन को बहाकर ले जाता है। इसके चैनेलाइजेशन की मांग काफी समय से उठ रही है। बात अगर मान खड्ड की करें, तो गौना के पास से बहने वाली इस खड्ड के कारण गलोल गांव एक टापू बन जाता है और गांव तक पहुंच पाना मुश्किल हो जाता है। हर साल लोग इस खड्ड को पार करते हुए फंस जाते हैं। इस पर एक पुल बनाया जाना भी प्रस्तावित है। खड्ड से हर साल आसपास के क्षेत्रों को नुकसान होता है, इसलिए यहां मान खड्ड तटीय समिति भी बनाई गई है, जो वर्षों से इस खड्ड के चैनेलाइजेशन की मांग कर रही है, लेकिन अभी तक मामला लटका हुआ है।

तीन लोगों समेत बह गया था जाहू पुल

एक और है जान की दुश्मन …सीर खड्ड। वर्ष 2015 में भयंकर तबाही मचाकर जाहू पुल को बहाकर ले जाने वाली और तीन इन्सानों की जिंदगियां लील लेने वाली इस खड्ड को जिले की सबसे खतरनाक और डरावनी खड्ड कहा जाता है। जिला हमीरपुर और मंडी के संगम से गुजरने वाली इस खड्ड के चैनेलाइजेशन की मांग वर्षों से उठ रही है, क्योंकि हर साल यह अपने साथ सैकड़ों कनाल जमीन बहाकर ले जाती है। बताते हैं कि पूर्व सीएम प्रो. प्रेम कुमार धूमल के कार्यकाल में किसानों और पंचायत प्रतिनिधियों की मांग पर सीर खड्ड के चैनेलाइजेश के लिए 64 करोड़ रुपएका प्रावधान भी हुआ था, लेकिन शिलान्यास के बावजूद इस योजना पर कोई काम नहीं हो सका। आज भी भारी बरसात में चंदरूही बाजार की  दुकानों और घरों में पानी घुसने का डर लोगों को सताता रहता है।

जब उफान पर आते हैं चंबा के नाले…

चंबा में दर्जनों ऐसे नाले हैं, जो बरसात में उफान पर आकर तबाही मचाते हैं। चुराह में पंगोला नाला डेंजर प्वाइंट के तौर पर उभरा है। नाले के पानी से भू-स्खलन व भूमि कटाव होने से तीसा मार्ग का काफी हिस्सा धंस भी जाता है। भटियात की कलम व चक्की खड्ड के उफान पर आने से मचने वाली तबाही से भी हर कोई वाकिफ है। सलूणी का घराट नाले की बाढ़ से जहां वाहनों की रफ्तार रुक जाती है, वहीं आसपास के इलाकों में तबाही का सैलाब आ जाता है। वहीं, भरमौर एनएच के दर्जनों नाले आफत से कम नहीं हैं। बग्गा के पास रूंगड़ी नाला अकसर यातयात ठप कर देता है। भट्ठी नाला भी तबाही लाकर कहर बरपा देता है।

ब्यास नहीं, मंडी को डराती है सुकेती…

मंडी जिला में ब्यास नदी इतनी तबाही नहीं लाती, जितनी जिला की बड़ी व खतरनाक खड्डें लेकर आती हैं। बरसात आते ही इन खड्डों के रौद्र रूप से लोग कांपना शुरू कर देते हैं। जिला में यूं 56 खड्डें और नाले हैं, लेकिन इन सब में अकेली सुकेती, कंसा, रत्ती खड्ड, गोहर उपमंडल की ज्यूणी, धर्मपुर की सोन खड्ड, लंबाडग, सरकाघाट में बरच्छवाड़ से लेकर जाहू तक पहुंचने वाली सीर खड्ड, रीशा व कटौला का बागी नाला, मंडी की स्कोडी, भड्याल नाला समेत सेकड़ नाला हर वर्ष भयंकर आपदा लेकर आते हैं।

आठ, अगस्त 2015 को धर्मपुर बस स्टैंड को डुबाने वाली सोन खड्ड को कौन भूल सकता है। सोन खड्ड 2015 में धर्मपुर बस अड्डे से दो करोड़ की नई बसें और बाजार तक बहा ले गई थी। वहीं इन सब खड्डों की भयानकता और नुकसान की बात करें, तो सुकेती खड्ड का ही एक नाम काफी है, जो हर वर्ष अपनी हदें तोड़कर लाखों करोड़ों बहा ले जाती है। दस साल में अगर देखें, तो सुकेती खड्ड नेरचौक से लेकर मंडी तक कई बार तबाही मचा चुकी है।

 बरसात में कंसा खड्ड से मिलन होने के बाद सुकेती खड्ड डडौर से ही भयंकर रूप धारण कर लेती है और हर दो वर्ष बाद इसमें ऐसी बाढ़ आती है कि गुटकर का पूरा ऑटोमोबाइल हब और करोड़ों का नुकसान होता है। इसके साथ बैहना, गुटकर, गागल और आसपास के दर्जनों गांवों की भूमि जलमग्न हो जाती है। पिछले एक दशक में मंडी जिला की ये भयंकर खड्डें व नाले 100 करोड़ से अधिक का नुकसान कर चुकी हैं।

2014 में पानी में तैर गई थी गाडि़यां

सुकेती खड्ड ने एक बार नहीं, मंडी के गुटकर स्थित ऑटो सेक्टर व हजारों बीघा भूमि को कई बार डूबाया है। 2014 और 2018 में सुकेती में आई बाढ़ गाडि़यां तक बहा ले गई थी। कई ऑटो कंपनियों के वर्कशॉप और पार्किंग में पानी घुस गया था। गुटकर बाजार में कई दुकानों तक पानी चला गया था, जिससे करोड़ों का नुकसान हुआ था।

तटीकरण को अब जाकर मिली हरी झंडी

सुकेती में हर दो वर्ष बाद ऐसी ही भयंकर बाढ़ आती है, जिसके पीछे अवैध खनन व तटीकरण न होना बड़ी समस्या है। तटीकरण को 12 करोड़ सुकेती व स्कोडी खड्ड के तटीकरण की योजना पर प्रदेश की सरकारें लंबे समय से काम कर रही हैं, लेकिन अब कहीं जाकर इन्हें हरी झंडी मिली है। इन दोनों खड्डों के तटीकरण को सराकार ने 12 करोड़ मजूंर किए हैं, लेकिन ये काम शुरू होने में अभी लंबा समय लगेगा। तटीकरण होने के बाद गुटकर व बैहना क्षेत्र को सुकेती की मार से मुक्ति मिलेगी। वहीं, सीर खड्ड के तटीकरण की योजना चली हुई है, जबकि सबसे लंबा सफर तय करने वाली ब्यास के तटीकरण को लेकर अब तक कोई योजना नहीं बनी है।

नहीं भूलाया जाता 2015 का वह मंजर

बाढ़ में बह जाते हैं सिरमौर के करोड़ों

बरसात में कहर बरपाने से सिरमौर की खड्डें भी पीछे नहीं रहती। नदियों से घिरे पांवटा साहिब में नदियां रौद्र रूप दिखाकर तबाही लाती हैं। हर साल बड़ी-छोटी नदियां करोड़ों रुपए का नुकसान कर जाती हैं। इसमें मुख्य नदी यमुना सहित सहायक नदियां बाता और गिरि नदी सहित कई खड्ड शामिल हैं। जिला में बरसात शुरू होते ही नदियों सहित कई खड्ड उफान पर रहते हैं। इनमें पांवटा साहिब में शुंकर खड्ड सहित गिरि नदी व शिलाई में नेड़ा खड्ड और टौंस नदी आदि शामिल है। शुंकर खड्ड कालाअंब से होकर कोलर होते हुए घुंघलो में बाता नदी में मिलती है। नेड़ा खड्ड की बात की जाए, तो यह टिंबी के पास से होकर टौंस नदी में मिलती है। वहीं टौंस नदी शिमला जिले से आती है, जो पांवटा साहिब के सहस्त्रधारा के पास यमुना नदी में मिलती है।

गिरि नदी शिमला जिले से निकलते हुए राजगढ़ होते रेणुकाजी और फिर सतौन से बांगरण होते मानपुर देवड़ा के पास यमुना नदी में मिल जाती है। अभी तक बाता नदी और शुंकर खड्ड का तटीकरण हो चुका है। जलशक्ति विभाग ने शुंकर खड्ड का तटीकरण का कार्य वर्ष 2017-18 में पूरा कर लिया है। इस खड्ड पर कोलर से लेकर घुंघलो तक के 11650 मीटर दायरे में चैनेलाइजेशन हुआ है, जिसमें 14 करोड़ 37 लाख रुपए खर्च हुए हैं। इससे 584.60 हेक्टेयर भूमि सुरक्षित हुई है। तटीकरण से पूर्व विभाग के रिकार्ड के मुताबिक इस खड्ड हर वर्ष करीब चार करोड़ का नुकसान करता था, जिसमें किसानों की जमीन और विभाग की योजनाएं शामिल थी, जो अब बच रहा है। बाता नदी के तटीकरण पर भी विभाग ने 34 करोड़ 67 लाख रुपए खर्च कर 1537.81 हेक्टेयर जमीन को बर्बाद होने से बचाया है। अभी यमुना, गिरि, जंबूखाला और बाता नदी के कुछ क्षेत्र का चैनेलाइजेशन प्रस्तावित है।

5500 करोड़ के फ्लड प्रोटेक्शन प्रोजेक्ट अधर में

पांच खड्डों की चैनेलाइजेशन को 976 करोड़ मंजूर, केंद्र से अगले साल मिलेगा पैसा बाढ़ नियंत्रण के लिए हर साल केंद्र से आता है बजट

हिमाचल प्रदेश में सैकड़ों ऐसी खड्डें हैं, जो बरसात के दिनों में उफान पर रहती हैं। इसमें अनगिनत बरसाती खड्डें हैं, जो मॉनसून में ही सामने आती हैं और इनसे लोग सहमे हुए रहते हैं। ऐसी कई बड़ी खड्डें भी प्रदेश में मौजूद हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड में हैं और उन खड्डों का चैनेलाइजेशन या तटीकरण आज तक नहीं हो सका है। प्रदेश में बाढ़ नियंत्रण को लेकर हर साल अलग से बजट निर्धारित किया जाता है, जिसमें ज्यादा मदद केंद्र सरकार की रहती है, क्योंकि खड्डों के तटीकरण के लिए पैसा वहीं से मिलता है।

हिमाचल की बात करें, तो यहां स्वां का चैनलाइजेशन सबसे प्रमुख है, जिस पर साढ़े 1200 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। चार चरण में यह प्रोजेक्ट पूरा किया गया है। इसके साथ भी ऐसी कई खड्डें जुड़ी हैं, जिन्हें चैनेलाइजेशन में शामिल किया जाना जरूरी है। प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को 5500 करोड़ रुपए के फ्लड प्रोटेक्शन के प्रोजेक्ट भेजे हैं। राज्य के जलशक्जि विभाग ने ऐसे कुछ प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे थे, जिसमें से इस साल के लिए 976 करोड़ रुपए की राशि अभी मंजूर हुई है। हालांकि यह पैसा केंद्र सरकार से अगले साल मिलेगा, लेकिन अहम बात है कि प्रदेश को पांच खड्डों के चैनेलाइजेशन के लिए मंजूरी मिल गई है। विभाग इन पर शुरुआती काम करने वाला है।

इनमें शिमला जिला के रोहडू की पब्बर खड्ड, यमुना बेसिन की खड्ड, नकेड़ खड्ड, सीर खड्ड तथा मंडी जिला की एक खड्ड के लिए पैसा मंजूर हुआ है। धनराशि की बात करें, तो पब्बर के लिए 190 करोड़ रुपए, यमुना के लिए 250 करोड़, नकेड़ के लिए 231 करोड़, सीर के लिए 160 करोड़ तथा मंडी के लिए 145 करोड़ रुपए की धनराशि मंजूर हो चुकी है। इन खड्डों पर अगले साल काम शुरू होगा। फ्लड प्रोटेक्शन के लिए कुल आठ योजनाएं केंद्र को भेजी गई थीं। बता दें कि यहां स्वां के साथ सिद्धार्था के चैनेलाइजेशन का काम चल रहा है।

ये प्रोजेक्ट लटके

प्रदेश में खड्डों की चैनेलाइजेशन के जो प्रोजेक्ट अधर में हैं, उनमें ब्यास, सतलुज व यमुना बेसिन की खड्डों के प्रोजेक्ट हैं। ऐसी खड्डें, जो बरसात में उफान पर रहती हैं और उनसे नुकसान भी काफी ज्यादा होता है, तो उनमें बाटा नदी, यमुना मेन,  पब्बर, सीर, सक्रेण, छौंच, नकेड़, सुकेती,  मारकंडा, सिरसा, पलचान से औट, पपलोह, मढ़ी, चिलाल, शिवधवाला, बकार खड्ड, मसोह, जंगी, बाडू, न्यूगल, शुकर खड्ड का नाम शामिल हैं।

अकेले जसवां परागपुर पर ही खर्च होंगे 708 करोड़…

जसवां परागपुर की कई खड्डें हैं, जिनके लिए 708 करोड़ रुपए का अलग प्रोजेक्ट जलशक्ति विभाग ने बनाकर केंद्र सरकार को भेजा है। अभी जो मंजूरी फ्लड प्रोटेक्शन में प्रदेश को मंजूर हुई है, उसके अलावा केंद्रीय मंत्रालय के पास दो हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं, जिन्हें अगले साल तक मंजूरी मिलने की उम्मीद है।

बिलासपुर को तीर सी चुभती है सीर

जिला बिलासपुर में हर साल बरसाती मौसम में बाढ़ के दौरान सबसे अधिक तबाही घुमारवीं की सीर खड्ड मचाती है। बारिश में सीर खड्ड का उफनता पानी इसके किनारे बसे लोगों की नींद उड़ा देता है। सीर खड्ड जाहू से लेकर बलघाड़ तक बहने वाली सीर खड्ड के किनारे हजारों लोगों की आबादी बसी है। हजारों लोगों की प्यास बुझाने वाली व सैकड़ों बीघा भूमि को सिंचित करने वाली सीर खड्ड बरसात में रौद्र रूप दिखाती है। बरसात में सीर खड्ड का जलस्तर बढ़ने से आसपास की उपजाऊ भूमि बर्बाद हो जाती है।

खड्ड में बनी जलशक्ति विभाग की योजनाएं प्रभावित हो जाती हैं। बम्म से लेकर जाहू तक पांच किलोमीटर दायरे में सीर खड्ड के दोनों ही किनारों पर चैनेलाइजेशन की गई है, लेकिन आगे घुमारवीं और झंडूता के बलघाड़ तक खड्ड को चैनेलाइज करने के लिए जलशक्ति विभाग ने इसकी मॉडल स्टडी करवाकर डीपीआर बनाकर भेज दी है। जाहू से लेकर बम्म तक पांच किलोमीटर के दायरे में किए गए चैनेलाइजेशन के बावजूद सीर खड्ड में बरसात के मौसम में बाढ़ का खतरा नहीं टला है।

चैनेलाइजेशन के लिए बहुत उठी आवाज़ें

घुमारवीं की जीवनी रेखा कही जाने वाली सीर खड्ड हर साल बारिश के मौसम में तबाही मचाती है। किसानों की सैकड़ों बीघा भूमि को बहाकर ले जाने वाली सीर खड्ड की चैनेलाइजेशन बम्म से आगे नहीं हो सकी है। सीर खड्ड पर महज जाहू से लेकर बम्म तक ही चैनेलाइजेशन हुआ है, जिससे बारिश का मौसम शुरू होने पर बाढ़ का खतरा मंडराना शुरू हो जाता है। हर साल सैकड़ों बीघा उपजाऊ भूमि पानी के बहाव में बह जाती है। इसके अलावा रही सही कसर खनन माफिया ने पूरी कर दी है। खनन से सीर खड्ड का जलस्तर नीचे गिर गया है, जिससे बारिश के मौसम में बाढ़ का खतरा अधिक बढ़ रहा है। सीर खड्ड के चैनेलाइजेशन के लिए विधानसभा से लेकर सड़कों तक आवाज उठी। कई बार इसके लिए सड़कों पर भी आंदोलन हो चुके। सीर खड्ड में जाहू से बम्म तक पांच किलोमीटर तक 1426.54 लाख रुपए से चैनेलाइजेशन हुआ है, लेकिन बम्म से नीचे घुमारवीं तक चैनेलाइजेशन न होने के कारण यहां सीर खड्ड का खतरा बरकरार है।

2007 की वह रात…

सीर खड्ड में 12 अगस्त, 2007 को आई भयंकर बाढ़ ने तबाही मचाई थी, जिसमें एक व्यक्ति बाढ़ की चपेट में आ गया था, जबकि कई गोशालाएं सहित सैकड़ों बीघा भूमि मिट्टी में मिल गई थी। वह काली रात आज भी लोगों के जहन में हैं। जब भी बारिश का मौसम शुरू होता है, तो लोग उस तबाही के मंजर की याद से कांप उठते हैं। इसके बाद हालांकि हर साल बरसात में भू-कटान की वजह से बंजर व उपजाऊ जमीन को नुकसान होता है।

बरसात में बिलासपुर की बड़ी खड्डों में अली, गंभर, गंभरोला, सीर, शुक्र व सरयाली का जलस्तर बढ़ा है, जिस कारण भूमि कटाव और उनके किनारे पर रहने वाले बाशिंदों और मवेशियों को भी नुकसान पहुंचा है। खड्डों का जलस्तर बढ़ने से हर साल नुकसान का आंकड़ा बढ़ता है। सरकार व प्रशासन को इन खड्डों की चैनेलाइजेशन करवानी चाहिए

संदीप सांख्यान, जिला कांग्रेस महासचिव

प्रदेश सरकार सीर खड्ड का चैनेलाइजेशन करवाने को वचनबद्ध है। सीर खड्ड की मॉडल स्टडी करवाई गई है। तलवाड़ा से बलघाड़ तक खड्ड का चैनेलाइजेशन करवाया जाएगा। इसके लिए डीपीआर बनाकर भेज दी है। इससे पहले पूर्व धूमल सरकार  के कार्यकाल में सीर खड्ड पर चैनेलाइजेशन जाहू से लेकर बम्म तक पांच किलोमीटर तक किया गया

राजेंद्र गर्ग, खाद्य आपूर्ति मंत्री एवं विधायक घुमारवीं


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