संपूर्ण साक्षरता स्वप्न या संकल्प: प्रो. मनोज डोगरा, लेखक हमीरपुर से हैं

By: प्रो. मनोज डोगरा, लेखक हमीरपुर से हैं Sep 8th, 2020 4:10 pm

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं

वैसे तो भारत में छह से 14 साल के आयु वर्ग के प्रत्येक बालक और बालिका को स्कूल में मुफ्त शिक्षा का अधिकार है, लेकिन यहां पर 40 फीसदी से अधिक बालिकाएं 10वीं कक्षा के उपरांत स्कूल त्याग देती हैं जिसका सबसे बड़ा कारण गरीबी व परिवार का दबाव माना जाता है। शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल करने के लिए भारत सरकार और प्रदेश सरकारों ने कई अभियान चलाए हैं। लड़कियों की शिक्षा पर बल दिया जा रहा है…

साक्षरता किसी भी समाज व राष्ट्र के विकास को तय करती है। साक्षरता का अर्थ होता है पढ़ने-लिखने की योग्यता या क्षमता, जबकि दूसरी ओर जब व्यक्ति को अक्षरों का ज्ञान नहीं होता तो वह निरक्षर कहलाता है। पुराना समय साधारण और सरल था। तब न तो जीवन इतना गतिशील था और न ही जीवन जीने के साधन इतने जटिल थे। जरूरतें बहुत ही सीमित थीं। दो वक्त की रोटी कमाकर व्यक्ति चैन की नींद सो जाता था, लेकिन आज का युग आधुनिकता का युग है। यहां साक्षर होना आवश्यक है अन्यथा आप समाज व समय के साथ नहीं चल सकते। वर्तमान समय में मनुष्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं ने आकाश की सीमाओं को चुनौती दी है। ऐसे में एक व्यक्ति का पढ़ने-लिखने से वंचित रह जाना एक अभिशाप के समान है क्योंकि एक अनपढ़ व्यक्ति न तो तेज रफ्तार युग के साथ चल पाएगा और न ही उसकी सोच की सीमा विस्तृत हो पाएगी। साक्षरता मानव की प्रगति और विकास का मूल मंत्र है। अनपढ़ और निरक्षर व्यक्ति अपना ही भला नहीं कर सकता तो स्पष्ट है कि वह समाज और राष्ट्र के किस काम आएगा। निरक्षर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में काफी हद तक असमर्थ होगा और यह एक चिंतनीय विषय है।

बात अगर देश की पूर्व स्थिति की करें तो स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व हमारे देश की जनसंख्या में अनपढ़ लोगों की संख्या बहुत अधिक थी, किंतु सरकार के अथक प्रयासों से आज समाज हर व्यक्ति को शिक्षित करने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। घर-घर और गांव-गांव शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है ताकि हर व्यक्ति के बौद्धिक स्तर में उन्नति हो। कोई भी व्यक्ति अंगूठाछाप न रहे, उसे कोई ठग न सके। हर वर्ग का व्यक्ति अपनी अच्छाई-बुराई समझे और अपनी दैनिक जीवनचर्या में सूझबूझ के साथ फैसले ले। उसकी दृष्टि का विस्तार हो। उसे अंधविश्वासों और शोषण से मुक्ति मिले क्योंकि शिक्षा एक वरदान है, इसे हासिल करना सबका अधिकार है, तो दूसरी तरफ  आधुनिक समाज में निरक्षरता को एक अभिशाप माना जाता है। आजकल विद्यालयों, निःशुल्क शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा एवं स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित कर हमारे देश के कई राज्यों ने 100 प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को हासिल कर लिया है। किंतु इस क्षेत्र में अभी बहुत अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। वह दिन कितना महत्त्वपूर्ण होगा जब हर भारतीय शिक्षित होगा। हम सबको इस दिशा में भरपूर सहयोग देना होगा। यह विषय साक्षरता का है तो इसमें देश की साक्षरता को सशक्त बनाने वाले महत्त्वपूर्ण तत्त्व शिक्षा व्यवस्था की भी बात करना आवश्यक है।

भारत सरकार ने हाल में ही नई शिक्षा नीति को अपनाया है जो कि भविष्य में एक आदर्श रूप की शिक्षा प्रणाली सिद्ध होने वाली है। नई शिक्षा नीति आने के बाद देश की साक्षरता दर में जरूर एक नया सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा। साक्षरता के महत्त्व को इस बात से अधिक समझा जा सकता है कि पूरे विश्व में आठ सितंबर अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 17 नवंबर 1965 में यूनेस्को में हुई थी और सबसे पहले यह दिवस 1966 में मनाया गया था। अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने की घोषणा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत व समुदाय को सामाजिक रूप से साक्षरता के महत्त्व को बढ़ाना है। साक्षरता आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से किसी भी देश का आधार होता है। समाज जितना अधिक साक्षर होगा, उतना ही अधिक वहां  के समाज और देश का विकास होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के माध्यम से साक्षरता को समझने की कोशिश करें तो भारत में साक्षरता दर 74.04 फीसदी है, जो कि 1947 में मात्र 18 फीसदी थी। भारत की साक्षरता दर विश्व की साक्षरता दर 84 फीसदी से कम है। भारत में साक्षरता के मामले में पुरुष और महिलाओं में काफी अंतर है। जहां पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 फीसदी है, वहीं महिलाओं में इसका प्रतिशत केवल 65.46 है। महिलाओं में कम साक्षरता का कारण परिवार और आबादी की जानकारी में कमी है। भारत में साक्षरता पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हुई है। जहां तक मेरा मानना है, आने वाले 15 से 20 सालों में भारत की वैश्विक साक्षरता दर 99.50 प्रतिशत होने की संभावना है, लेकिन उसके लिए सर्व शिक्षा अभियान, शौचालय की व्यवस्था, मिड-डे-मील योजना और मुफ्त शिक्षा जैसी अनेक योजनाओं को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।

वैसे तो भारत में छह से 14 साल के आयु वर्ग के प्रत्येक बालक और बालिका को स्कूल में मुफ्त शिक्षा का अधिकार है, लेकिन यहां पर 40 फीसदी से अधिक बालिकाएं 10वीं कक्षा के उपरांत स्कूल त्याग देती हैं जिसका सबसे बड़ा कारण गरीबी व परिवार का दबाव माना जाता है। शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल करने के लिए भारत सरकार और प्रदेश सरकारों ने कई अभियान चलाए हैं। लड़कियों की शिक्षा पर बल दिया जा रहा है, वहीं ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का भी आह्वान किया जा रहा है। स्कूलों में पहले साक्षरता की दर कम होती थी। लड़कियों को इसलिए स्कूलों में नहीं भेजा जाता था क्योंकि वहां शौचालय की पूर्ण व्यवस्था नहीं होती थी, लेकिन अब स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था है और साथ ही अनुसूचित जनजातियों की लड़कियों की साक्षरता के लिए अधिक से अधिक कदम उठाए जा रहे हैं। फिर भी साक्षर भारत का यह स्वप्न तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक सरकार के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान न दे। जब एक विकसित व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विकास लिए प्रयास करेगा तो संभवतः व्यक्ति का संपूर्ण विकास संभव है। भारत में साक्षरता के क्षेत्र में ज्यादा उत्थान न होने का सबसे बड़ा कारण बढ़ती जनसंख्या व गरीबी है। जब तक जनसंख्या पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जाता, तब तक संसाधनों की पूर्ति एकरूपता से सभी के लिए नहीं की जा सकती है।


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