सेब में सबसे बढ़ी गिरावट

By: जीवन ऋषि Sep 20th, 2020 12:10 am

धड़ाम से गिरी सेब मार्केट, 500 से 1600 तक बिक रहा सेब, आढ़ती बोले, ‘सुपर’ माल खरीद रही कंपनियां, मंडियों में आ रही छांट…

सितंबर माह में सेब के दामों में आई गिरावट हर रोज बढ़ती ही जा रही है, जिस कारण से उंचाइ वाले क्षेत्रों के बागबान बेहद परेशान है। गुरुवार को नारकंडा और मतियाना की सेब मंडियों में सेब के दाम 500 से लेकर 1600 रुपए तक रहे। मंडियों मे कुछ लॉट ही 1600 से लेकर 1900 तक बिक पाते है बाकि आम मार्केट की बात करे तो 1600 तक ही माल बिक  रहे है।

हालांकि सितंबर माह में दो सप्ताह तक मंडियों मे सेब की अराइवल बढ़ी थी, जिस कारण से रेट कम हुए थे, लेकिन पिछले तीन -चार दिनों से अब सेब की अराइवल फिर से कम हो गई है, लेकिन रेट बढ़ने के बजाए गिरते ही दिखाइ दे रहे है। वहीं आढ़तियों का कहना है कि सुपर क्वालिटी के सेब का दाम मंडियों में आज भी 1900 तक चल रहा है, लेकिन बागबान अच्छा सेब कंपनियों को दे रहे है और कलरलैस, रसटिंग, ओले वाला और हल्का दो नंबर का माल मंडियों में ला रहे है जिसका भाव 500 से लेकर 1500 तक ही लग पाता है। आढ़तियों की माने तो कश्मीर का सेब भी मंडियों मे आना शुरू हो गया है और आगे वाली मंडिया भी मंदी चल रही है तो आने वाले समय में रेट बढ़ने की संभावना भी कम है।

वहीं कंपनियों का मत है कि इससे पहले कभी भी कंपनियों ने 90 रुपए प्रति किलो तक सेब के रेट नहीं खोले थे। इस बार कंपनियां हाई रिस्क पर है 25 से 30 रुपए प्रति किलो छह माह तक सीए स्टोर सहित अन्य खर्चो में लग जाता है और इस बार सेब 110 रुपए से उपर प्रति किलो कंपनियों को बैठेगा और अगर मार्च के बाद सेब का बाजार मंदा रहता है तो कंपनियों को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। कंपनियों का दावा है कि इस बार बागबानों को मंडियों से बेहतर रेट कंपनियां दे रही है, जिस कारण से बागबानों ने कंपनियों की ओर रूख किया है।

कंपनियों और आढ़तियों की जुगलबंदी बागबानों पर पड़ी भारी

उंचाईं वाले क्षेत्रो के बागबान सेब के दामों में भारी गिरावट होने से परेशान है। बागबानों का आरोप है कि कंपनियों और आढ़तियों की मिलीभगत से हर साल सितंबर माह में जब हाइटो का सेब चलता है तो मार्केट में मंदी लाई जाती है। बागबानों का कहना है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रो का सेब ठोस, फुल कलर और स्टोर क्वालिटी का होता है, जिसको कंपनियों सहित बड़े आढ़ती स्टोर करते है और ऑफ सीजन में दोगुने दामो में बेचते है।

बागबानों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि कंपनियों और मंडियों में सेब के दामों को तय करने के लिए नियमावली बनाइ जाए, जिसमें सरकार की निगरानी में सेब कंपनियों, आढ़तियों के साथ साथ बागबान संघ के प्रतिनिधियों की भागेदारी भी सुनिश्चित की जाए और प्रदेश मे सेब उत्पादन के अनुमान को देखते हुए देश की बड़ी मंडियों के रेट को मद्देनजर रखते हुए रेट तय किए जाए, ताकि मार्केट में भारी उतार चढ़ाव से बचा जा सके और सभी बागबानों को सालभर की मेहनत का जायज दाम मिल सके।

रिपोर्ट : निजी संवाददाता,मतियाना

 इन फसलों का बीमा

खरीफ सीजन की टमाटर-आलू मटर, अदरक, फूलगोभी और बंदगोभी भी दायरे में

विधानसभा के मानसून सत्र में इस बार किसानों के मसलों  पर खूब मंथन हुआ है। इसमें कई सेक्टर में फार्मर्ज के लिए राहत भरे संकेत मिले हैं, तो कइयों से निराशा मिली है। पेश है  यह रिपोर्ट…

रिसर्च डेस्क

हिमाचल में ऐसे हजारों किसान हैं,जो अपनी फसलों का बीमा तो करवाना चाहते हैं, लेकिन सही जानकारी न होने से वे ऐसा नहीं कर पाते। अपनी माटी टीम ने इन्हीं किसानों की भावनाओं को समझते हुए विधानसभा की कार्यवाही से फसल बीमा संबंधी जानकारी दे रही है।  मानसून सत्र में नाचन के विधायक विनोद कुमार ने फसल बीमा को लेकर सवाल उठाया था। सवाल यह था कि हिमाचल में किन फसलों का बीमा किया जाता है। इस पर जवाब मिला कि मुख्यता मक्की, धान और जौ की फसलों का बीमा होता है। इसके अलावा नवीनीकरण योजना के तहत खरीफ फसल में आलू, मटर, अदरक, फूलगोभी और बंदगोभी का बीमा किया जाता है।  इसके अलावा रबी के सीजन में आलू, टमाटर, लहसुन और शिमला मिर्च का बीमा किया जाता है। तो किसान भाइयो पुसल बीमा से संबंधी इस जानकारी को गांठ बांध लें। और आने वाले रबी सीजन में तुरंत अपनी फसलों का बीमा करवा लें।

सब्जी मंडियों में कोरोना का डर खत्म

हिमाचल मे कोरोना लगातार बेकाबू होता जा रहा है, लेकिन कई ऐसे सेक्टर हैं, जहां लोग अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। कुछ ऐसे ही हालात प्रदेश की कई सब्जी मंडियों हैं। पेश है सोलन से यह हैरान कर देने वाली प्रदीप भाटिया के साथ सुरेंद्र ममटा की रिपोर्ट

इन तस्वीरों को गौर से देखिए, यह सोलन सब्जी मंडी है। सोलन सब्जी मंडी में बोली के दौरान ऐसा नजारा आम है। लोगों की रेलमपेल रहती है। कोरोना काल में इन दिनों यहां सोशल डिस्टेंसिंग मानों लोग भूल गए हों। अपनी माटी टीम द्वारा जुटाई गई जानकारी के अनुसार प्रदेश की कई सब्जी मंडियों में ऐसे हालात हैं। इस पर कई किसानों और आढ़तियों ने चिंता भी प्रकट की है। उनका कहना है कि एक तरफ कोरोना लगातार बढ़ रहा है और यहां ये हालात हैं।

इन पर अगर काबू न पाया गया, तो सैकड़ों किसान और उनके परिवार संकट में आ जाएंगे। जहां तक सोलन की बात है, तो इस मसले पर मंडी समिति कई बार कारोबारियों को चेतावनी दे चुकी है, लेकिन कई लोग नियम मानने को तैयार नहीं हैं। मंडी समिति के सचिव डा. रविंद्र शर्मा का कहना है कि मंडी परिसर में सरकारी नियमों के बारे में कई बार बताया गया है, लेकिन कुछ लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। नियम तोड़ने पर चालान भी काटे गए है। अब कोई आढ़ती या लेबर नियम तोड़ेंगे, तो उनपर सख्त कार्रवाई होगी।

खाबल में जीरो बजट खेती का कमाल

जीरो बजट खेती को लेकर अकसर दो तरह का रिएक्शन आता है। सरकार से जुड़े लोग जहां इसकी खूबियां गिनाते हैं,तो कई इसकी आलोचना करते हैं। इस सबके बीच अपनी माटी में हाजिर है जीरो बजट खेती पर होनहार महिलाओं की सक्सेस स्टोरी

हिमाचल सरकार का दावा है कि जीरो बजट खेती से 77 हजार किसान जुड़ चुके हैं। इसमें महिला किसान खूब उत्साह दिखा रही हैं। अपनी माटी टीम ने इसी जोश का पता लगाने के लिए मंडी जिला के खाबल गांव का दौरा किया। यह गांव उपमंडल मुख्यालय  पद्धर के   तहत  उरला पंचायत में आता है। गांव में कई महिलाएं जीरो बजट खेती कर रही हैं। मौजूदा समय में धान से लेकर कई नकदी फसलों की खेती की जा रही है। यह मुहिम इतने अच्छे से चल रही है कि इन महिला किसानों से खेती के टिप्स पाने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं।

खाबल गांव की सोहली देवी अपने समूह  लक्ष्मी ग्रुप की सदस्यों के साथ मिलकर प्राकृतिक खेती से अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। खेती के अलावा सोहली देवी ने एक देशी गाय पाल रखी है। सोहली बताती हैं कि उन्होंने एक संसाधन भंडार भी चला रखा है।  इस संसाधन भंडार में प्रकृतिक खेती में प्रयोग होने वाली हर चीज है, जैसे जीवामृत, घनजीवामृत, विजामृत, अग्नि अस्त्र आदि। सोहली ने एक साल के भीतर ही इस खेती में अपना नाम कमाकर कई अन्य महिलाओं को भी ट्रेंड कर दिया है। इस काम में  कृषि विभाग की ओर से बीटीएम पूजा, एटीएम देविंदर कुमार व प्रदीप ने उन्हें सही तरीके से गाइड किया।  हमने लक्ष्मी ग्रुप की  अन्य  सदस्यों सरिता देवी और रेखा देवी से बात की। उन्होंने  बताया कि इस योजना से उन्हें खूब लाभ हो रहा है। दूसरी ओर विभाग के विषयवाद विशेषज्ञ पूर्ण चंद ने बताया कि इस  योजना में किसानों को कई सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि  व्यक्तिगत रूप में किसान को देशी गाय खरीदने के लिए 50 प्रतिशत या अधिकतम 25000/-रुपए अनुदान दिया जाता है। इसके अलावा और कई लाभ दिए जाते हैं। बहरहाल सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तरह किसानों का रुझान तेजी से बढ़ने लगा है।

रिपोर्ट : स्टाफ रिपोर्टर, पद्धर

धर्मशाला के पास्सू में टूटा ओबीसी भवन का सपना, किसानों में गुस्सा बढ़ा

हिमाचल की दूसरी राजधानी धर्मशाला विधानसभा हलके का निचला क्षेत्र किसान बहुल है। इस क्षेत्र में ओबीसी भवन का काम ठप पड़ा है। एक बार फिर इस प्रोजेक्ट को धक्का लगा है। पेश है गगल से विमुक्त शर्मा की यह रिपोर्ट

धर्मशाला विधानसभा हलके तहत पास्सू गांव में ओबीसी भवन बन रहा है। लाखों रुपए की लागत से ओबीसी भवन की बिल्डिंग तो खड़ी कर दी गई है, लेकिन सियासी दांव पेंच में उलझे इस भवन की लंबे समय से फिनिशिंग नहीं हो पा रही है। इससे किसान बहुल इलाके में लोगों में रोष है। लोगों की उम्मीदों को इन दिनों एक और झटका लगा है। धर्मशाला के विधायक विशाल नेहरिया ने विधानसभा में प्रश्न उठाया था कि ओबीसी भवन क्यों लंबित है। इस पर जवाब यह मिला है कि सरकार के पास इस भवन के लिए अभी धन नहीं है।

बजट होगा, तब यह भवन आगे बढ़ेगा। इस सूचना के मिलते ही किसानों का गुस्सा सातवें आसमान पर है। किसानों का सवाल है कि आखिर सरकार के पास क्यों किसानों के लिए बजट नहीं होता। अपनी माटी टीम से समाजसेवी एवं किसान नेता राकेश चौधरी ने कहा कि इस भवन का न बनना हजारों लोगों से धोखा है। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर किसान हित में ऐसे प्रोजेक्ट रोके गए,तो वह बड़ा संघर्ष छेड़ देंगे। रिपोर्ट नगर संवाददाता, गगल

 बांस से फर्नीचर ही नहीं, सब्जी से लेकर हैल्थ सप्लीमेंट तक ये हैं इसके फायदे

डा. नताशा

18 सितंबर को हर साल विश्व बांस दिवस मनाया जाता है। भारत विश्व में सबसे ज़्यादा बांस उगाने वाला देश है। हिमाचल प्रदेश में कुल वन की॒तीन फीसदी भूमि में बांस के पौधे हैं। बांस को स्थानीय भाषा में बैंज या नाल बोला जाता है। इसका उपयोग पुराने समय से लेके 1500 अलग-अलग तरीक़ों से किया जाता है। बांस की टोकरी, किलता, सीढ़ी, शट्टेरिंग, छत, फर्नीचर इत्यादि के बारे में तो सब जानते हैं, परंतु इसकी ताजा कोंपले जिन्हें स्थानीय लोग मानू के नाम से जानते हैं खाने के लिए उपयोग की जाती हैं, जिसकी जानकारी कम ही लोगों को हैं। यहां लोग केवल इसका आचार बनाते हैं, जबकि इसे साधारण सब्जी की तरह, उबाल कर या सूखा कर भी खाया जा सकता है। इसके अलावा मानू को विभिन्न तरह के पकवानों में मिलाया जा सकता है। जैसे कि बिस्कुट, पापड़, बड़ी, कैंडी, सूप, सलाद। यह बहुत ही पौष्टिक होता है, जिसमें॒कारबोहाइड्रेट, प्रोटीन, अमीनो एसिड, खनिज, विटामिन, फ़ीनोल, फ्यतो-सटेरोल, एंटीनो एंड इडेंट, फाइबर काफी मात्रा में पाया जाता है, जो कि सेहत के लिए बहुत लाभदायक होते हैं। इसके साथ ही इन सब पोषक तत्त्वों की वजह से बहुत सी बीमारीयों जैसे की शुगर, कैंसर, मोटापा, पेट के रोग इत्यादी से बचाव होता है। इससे कई तरह की दवाइयों, सौंद्रय प्रसाधनों और॒ हैल्थ सप्लीमेंट का निर्माण किया जा रहा है जो कि फार्मा और कॉसमेटिक उद्योग के लिए कारगर सिद्ध हो रहा है।

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