सेना और किसान: कर्नल (रि.) मनीष धीमान, स्वतंत्र लेखक

By: कर्नल (रि.) मनीष धीमान, स्वतंत्र लेखक Sep 19th, 2020 12:06 am

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

भारतीय सेना और किसान का एक अनूठा रिश्ता है। हमारे दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश को ताकतवर और प्रगतिशील बनाने के लिए जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। उस नारे से उनका तात्पर्य था कि अगर किसी देश को तरक्की करनी है तो उसकी दो अहम जरूरतें हैं ः एक हमारी सेना देश की सरहद और सीमाओं को सुरक्षित रखने के काबिल हों और दूसरा देश का किसान हर देशवासी की भूख मिटाने और पेट भरने लायक अन्न पैदा करने में सक्षम हो। इस नारे के पश्चात भारत ने लगातार पंचवर्षीय योजनाओं में अन्य विषयों के विस्तार के साथ-साथ सेना के विस्तार एवं विकास तथा कृषि पर ज्यादा तवज्जो देते हुए, कृषि क्रांति एवं दुग्ध क्रांति को मुख्य विषय बनाया। उसका परिणाम यह है कि आज हमारी सेना दुनिया के सबसे ताकतवर देशों की सेनाओं में से एक है तथा कृषि के क्षेत्र में आज हमारा मुल्क आत्मनिर्भर बनकर अपने देशवासियों का पेट भरने में तो सक्षम है ही, पर दूसरे देशों में भी अनाज का अपार निर्यात करता है।

वर्तमान सरकार द्वारा पारित किया गया कृषि बिल जिसका उत्तर भारत में खुले तौर पर विरोध किया जा रहा है, किसानों का इस बिल को किसान विरोधी मानते हुए कहना है कि अगर किसान की फसल को सरकार मंडी में एमएसपी पर नहीं खरीदेगी तो बाहर बेचने से सही मूल्य नहीं मिलेगा। किसान के मन में शंका है कि आढ़तियों पर नकेल कसने की बात करके लाए गए इस बिल के परिणामस्वरूप कहीं किसान बड़े औद्योगिक घरानों के बंधुआ मजदूर बनकर न रह जाएं। सरकार द्वारा इन मुद्दों पर स्पष्टीकरण अति आवश्यक है। इस बिल से जब देश का अन्नदाता अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है, उसी समय बांग्लादेश ने इसे निर्यात संधि की अवहेलना कहते हुए भौंहें चढ़ा ली हैं। सरकार को किसानों की शंकाओं को दूर करते हुए इस मसले को सुलझाना चाहिए। दूसरी तरफ  सरहद के मौजूदा हालात भी पिछले 70 साल में सबसे खराब बने हुए हैं। पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को संवैधानिक राज्य बनाने की घोषणा करने जा रहा है तथा चीन व नेपाल हमारे देश की सीमा पर नाजायज कब्जा करने की फिराक में हैं।

देश के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनों सदनों में सीमा पर घुसपैठ की पुष्टि भी कर दी है। इसमें कोई शक नहीं कि हमारी सेना दुश्मन को हर तरह का सबक सिखाने में सक्षम है। पर युद्ध मात्र सेना के शौर्य और लड़ने की क्षमता से नहीं जीते जाते, बल्कि उसमें अन्य रणनीतिक और सहयोगी विषय मुख्य भूमिका निभाते हैं। 1971 में मानेकशॉ जी ने इंदिरा गांधी जी को अगस्त में बरसात के मौसम को बांग्लादेश के क्षेत्र में युद्ध लड़ने के अनुकूल न बताकर दिसंबर में लड़ने की बात कही थी। उसी तरह मौजूदा हालात के अनुसार आने वाले छह महीनों का मौसम अत्यधिक ठंडा व बर्फीला होने की वजह से चीन और नेपाल की सीमा पर युद्ध लड़ने के अनुकूल नहीं है। इसको समझते हुए आज देश को उस क्षेत्र में सेना के लिए पर्याप्त तैयारी करना अति आवश्यक है।


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