शराब बोतल की मानहानि: निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक

By: निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक Sep 28th, 2020 12:06 am

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक

शराब की बोतल को अपनी ताकत पर भरोसा था, इसलिए दनदनाती हुई घूम रही थी। उसने अपने साथ सिगरेट को जोड़कर कपल चैलेंज भी पेश कर दिया। दोनों को यह एहसास था कि उनके ऊपर केवल वैधानिक चेतावनी चस्पां है, वरना वे कपल बनकर किसी भी भारतीय पर भारी पड़ सकते हैं। भारतीय कानून में सिगरेट-शराब पर चेतावनी लिख कर उन्हें मारने की छूट है, लेकिन दूसरी ओर बिना चेतावनी लिखे किसी भारतीय को अभिव्यक्ति पर सजा संभव है। अंततः यमराज को सूचना मिली कि भारत के लोकतंत्र में बिना खाए-पीये भी कुछ लोग मर रहे हैं, तो उसने दूत भेज कर शराब की बोतल और सिगरेट उठा लिए। लाख कोशिश पर भी शराब की बोतल मर नहीं रही थी और न ही सिगरेट बुझ रहा था, तो यमराज ने उनसे पूछा कि उनके हुक्म की तामील क्यों नहीं हो रही। शराब ने मुंह खोला, तो यमराज को एहसास हुआ कि आखिर क्यों बंद बोतल ही सेहत के लिए हानिकारक होती है, खुलने पर तो कितने कमाल की होती है।

 शराब की बोतल को लगा कि यमराज ने उसकी मानहानि कर दी है, लिहाजा सिगरेट के साथ मिलकर अपने कपल चैलेंज को लेकर भारतीय अदालत में पहुंच गई। वहां उस दिन मानहानि के ही मुकदमे चल रहे थे। हर किसी भारतीय को शक था कि उसकी मानहानि हो रही है। शराब और सिगरेट की युगलबंदी के सामने अदालत का यह केस रोचक हो गया। लोग भूल गए कि संबित पात्रा कितनी बार कांग्रेस की मानहानि करने के बाद रोटी पचा पाते हैं और कांग्रेस के अधिरंजन चौधरी ने अनुराग ठाकुर को हिमाचल का छोकरा कह कर कितने ‘छोकरे’ बना दिए, लेकिन इन सब के बीच शराब की बोतल कह रही थी कि उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर यमराज ने डाका डाला है। उसे मारने की साजिश रचकर मानहानि हुई है। शराब की बोतल ने वहां लोगों से पूछा कि जो उसके साथ सेवन करते हैं, क्या उनकी कभी मानहानि हुई।

 उसके धंधे में कभी मानहानि हुई, फिर यह क्या कि संपादकों की तरह उसके खिलाफ मानहानि की सुनवाई करने यमराज धरती पर उतर आया। उसके वकील ने सामने खड़े संपादक की तरफ इशारा करके बोतल को वहां भेजा। शराब की बोतल बोली, ‘मैं सेहत के लिए हानिकारक, फिर भी मेरी मानहानि हो रही तो बेचैन हूं। आपको क्या हुआ?’ संपादक बोला, ‘मुझे खुद पता नहीं कि मीडिया में क्या हो रहा है। अब मीडिया को भी पता नहीं कि वह किसके लिए बोल रहा है, लेकिन यह पता है कि किसके लिए नहीं बोलना है। मैं मानहानि के मुकदमों की वजह से पत्रकारिता करता हूं, ताकि संविधान को भी सनद रहे कि मेरी वजह से ही अवमानना हो रही है।’ शराब की बोतल को अपने भीतर की ताकत का अंदाजा हो चुका था और यह भी तमाम वैधानिक चेतावनियों के, न कानून और न ही यमराज उसका कुछ बिगाड़ सकते थे। संपादक शराब की बोतल की अभिव्यक्ति के आगे बौना हो गया। उससे तो वे शराबी बेहतर जो खुलकर अभिव्यक्ति करते और फिर भी समाज इसे मानहानि नहीं मानता। संपादक को बस यही डर था कि कहीं उसके ऊपर भी वैधानिक चेतावनी चस्पां करके देश की सेहत के लिए हानिकारक न बता दिया जाए। अगर कहीं ऐसा हो गया तो अर्णब गोस्वामी जैसे हजारों संपादकों का क्या होगा।


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