उपनिषदों के सत्य

By: स्वामी विवेकानंद Sep 26th, 2020 12:20 am

गतांक से आगे…

यदि विश्व को कोई धर्म सिखाता है, तो वह अभय है। इसी मूलमंत्र का आश्रय लेना होगा, क्योंकि डर ही पाप है और यही दिव्य पाप का निश्चित कारण है। वीर्यवान बलवान बनने की चेष्टा करो। अपने उपनिषदों, उसी बलप्रद आलोकप्रद दिव्य दर्शन शास्त्र का फिर अवलंबन ग्रहण करो मजेदार, लेकिन दुर्बलता बढ़ाने वाले विषयों को छोड़ो। ये उपनिषद रूपी बहुत बड़े सत्य सहज ही समझ में आ जाने योग्य हैं। जिस तरह तुम्हारे अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए और किसी भी प्रमाण की आवश्यकता नहीं, उसी तरह उपनिषदों का हाल है। ये सहज ही समझ में आ सकते हैं। तुम्हारे आगे उपनिषदों के यही सत्य तत्त्व मौजूद हैं, उनको ग्रहण करो, उन्हें प्राप्त करके कार्यरूप में परिणत करो। ऐसा करने से अवश्य ही भारत का उद्धार होगा। हमें आगे की ओर बढ़ना ही होगा, लेकिन उस टूटे-फूटे मार्ग से नहीं जिसे हम स्वधर्म छोड़ देने वालों ने और पादरियों ने बतलाया है। हमें तो अपने भाव से और अपने ही मार्ग पर उन्नति करनी होगी। लेन-देन प्रकृति का नियम है।

भारत यदि फिर अपना सिर ऊंचा करना चाहता है, तो उसे अपना ऐश्वर्य निकालकर संसार की सारी जातियों में बेबूझ वितरण कर देना चाहिए, लूटा देना चाहिए और उसके बदले में जो कुछ मिल जाए, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। तुम लोग धर्म पर विश्वास न करो, किंतु यदि जातीय जीवन को अक्षुण्य रखना चाहो तो तुम्हें धर्म की रक्षा के लिए तत्पर होना ही पड़ेगा। एक हाथ से खूब दृढ़ता से धर्म को पकड़ो और दूसरा हाथ इसलिए बढ़ाओ कि जो कुछ अन्यथा जातियों के यहां सीखने लायक है, सीखो। लेकिन याद रखो। जो कुछ भी सीखो, उसे हिंदू जीवन के मूल आदर्शों के अनुरूप बना लो। हमारी जाति ने अपनी विशेषता गंवा दी है, इसी कारण भारत में इतने दुःख और कष्ट हैं।

अब हमें वह उपाय करना है जिससे कि उस जातीय विशेषता का विकास हो। इसके लिए हमें नीच जातियों को उठाना होगा। हिंदू मुसलमान और सभी ने उन्हें पैरों तले कुचल डाला है। अब उन्हें उठाने की जो शक्ति है, वह अपने भीतर लानी होगी। असली हिंदुओं को यह काम करना पड़ेगा। संसार में जहां भी जो कुछ दोष देखे जाते हैं, वे न तो देशों के हैं और न वहां पर माने जाने वाले धर्म के उन दोषोें की उत्पत्ति इसलिए हुई है कि धर्म का यथार्थ रीति से पालन नहीं किया गया। फलतः धर्म का कुछ भी दोष नहीं दोष मनुष्य का ही है। देश के सर्व साधारणों का अपमान करना ही प्रबल जातीय पाप है और यही हमारी अवनति का एक कारण है। जब तक भारत की जनता उत्तम रूप से शिक्षित नहीं होती, जब तक उसे खाने की अच्छी खुराक भरपेट नहीं मिलती और तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं मिलते।


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